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डॉ राजीव राज की कविताएँ

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  कविताएँ1 सब जले आचार जले सुविचार जले। मानवी लोक व्यवहार जले। हर चौखट पर लपटंे लिपटीं, अवतारों के दरबार जले। परिवर्तन की तोड़ खुमारी जाग बाबरे जाग। आग लगी है...

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