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सरिता शर्मा की कविता

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मैं नदी हूँ मैं तुम्हारे पास आऊंगी तुम समन्दर हो तुम्हे क्यों कर बुलाऊंगी मैं तटों के बीच बहती आ रही कल.कल नाम लेती है तुम्हारा हर लहर चंचल तुम...

सरिता शर्मा की कविता

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कट गया लो एक टूटा और बिखरा दिन बढ़ गया फिर दर्द का कुछ ऋण !फिर समन्दर का अहम आहत हुआ दर्द से दुहरी हुई नदिया होठ...

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