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‘मेरी खामोशियाँ भी बोलती हैं’ – रीता विजय की कविता

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मेरे अपने अहसास मेरी पहचानमेरी कविता बन गईगुफ्तगूँ की तरह मेरी खामोशियाँभी बोलती हैंहर लफ्ज़ गुफ्तगूँ हैहर लफ्ज़ तुम्हारा ही तो हैबार -बार टूटती हूँहज़ार...

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