20 जुलाई, 1932 को जन्मे प्रो. गुरुदास अग्रवाल जी ने 11 अक्तूबर, 2018 को अपनी देहयात्रा पूरी की। वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज़िला मुजफ्फरनगर के कांधला में जन्मे। उत्तराखण्ड के ज़िला ऋषिकेश के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में उन्होने अंतिम सांस ली।
स्वामी श्री ज्ञानस्वरूप सानंद
उनकी एक पहचान ‘जी डी’ के रूप में है और एक स्वामी श्री ज्ञानस्वरूप सानंद के रूप में। गंगा की अविरलता के अपने संघर्ष को धार देने के लिए उन्होने शारदापीठ एवम् ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी के शिष्य प्रतिनिधि स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद जी से दी़क्षा ली और एक सन्यासी के रूप में उनका नया नामकरण हुआ – स्वामी श्री ज्ञानस्वरूप सानंद।
उन्हे बतौर ‘जी डी’ याद रखने वालों की स्मृति में कई चित्र हैं: लीक से अलग पथ के पथिक छात्र का चित्र; अध्यापन को पेशा नहीं, व्यक्ति निर्माण का कार्य मानने वाले एक ऐसे आई आई टी प्राध्यापक का चित्र, जो कि न सिर्फ ज्ञान, अनुशासन, अध्ययनशीलता और वात्सल्य से भरा-पूरा था, बल्कि ज्ञान को व्यवहार में उतारने पर यक़ीन रखता था। ‘जी डी’ ने ग्रामोदय विश्विद्यालय, चित्रकूट में एक अवैतनिक प्राध्यापक के रूप में भी अपने इस चित्र को बरकरार रखा।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सलाहकार और सदस्य सचिव के रूप में ‘जी डी’, उनके अधीनस्थ वैज्ञानिकों-कर्मचारियों के लिए एक अच्छे प्रशिक्षक, अच्छे साथी और अच्छे अभिभावक थे। हवा, पानी और मिट्टी के सेहत की जांच के क्षेत्र में एक इंजीनियर के रूप में ‘जी डी’ के अप्रतिम योगदान के चित्र से पर्यावरण विज्ञान और अभियांत्रिकी जगत के लोग ही ज्यादा परिचित हैं। किंतु अपने लक्ष्य की प्राप्ति और आदर्श की पालना के लिए जिद्द की हद तक जाने वाले व्यक्ति के रूप में उनके चित्र से वे सभी परिचित हैं, जिन्होने उनसे कभी एक बार भी बात की है।
स्वामी श्री ज्ञानस्वरूप सानंद के रूप में उनका चित्र एक ऐसे गंगापुत्र का है, जिसने गंगा को विज्ञान से ज्यादा आस्था के विषय के तौर प्रस्तुत किया। स्वामी श्री सानंद ने तय कर लिया था कि कोई साथ आए, न आए.. मां गंगा जी को उनकी अविरलता वापस दिलाने के लिए उन्हे अपना बलिदान भी करना पड़े तो करने से नहीं चूकेंगे। अंत में उन्होने यही किया। उन्होने कहा था कि दशहरा तक उनका प्राणांत हो जाएगा। किंतु उनके द्वारा समय से कुछ पूर्व…अचानक उनके चले जाने से उनके स्नेहीजन के बीच इस शंका का बलवती होना स्वाभाविक है कि उनकी स्वाभाविक मृत्यु नहीं, हत्या हुई है।
किंतु इस बात में कोई शंका नहीं कि गंगा मंत्रालय के मंत्री श्री नितिन गडकरी का यह कथन झूठ है कि स्वामी श्री सानंद की मांगों में से 80 प्रतिशत मान ली गई हैं।
हक़ीक़त यह है कि गंगा मंत्रालय द्वारा 09 अक्तूबर, 2018 को जारी अधिसूचना को स्वामी श्री सानंद ने गंगा की अविरलता के लिए आवश्यक न्यूनतम प्रवाह की अपनी मांग की पूर्ति करने वाले मानक पर खोटा करार दिया था।
सूत्रों के मुताबिक उक्त अधिसूचना, गंगा संरक्षण एवम् प्रबंधन हेतु अध्ययन के लिए गठित आठ आई आई टी संस्थानों के साझा समूह की रिपोर्ट पर दो समितियों की द्वारा की टिप्पणियों के आधार पर तैयार की गई है। उठता प्रश्न यह है कि वे दो समितियां कौन सी हैं ? उनकी रिपोर्ट क्या हैं ? उन्हे सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया ?
गंगा संरक्षण एवम् प्रबंधन के लिए क़ानून, स्वामी सानंद की चार मुख्य मांगों में प्रमुख मांग थी। मंत्री महोदय कह रहे हैं कि इस संबंध में तैयार बिल के प्रारूप को संसद के अगले शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत प्रस्तुत किया जायेगा।
यहां याद रखने की बात यह है कि गंगा मंत्रालय द्वारा न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा तैयार राष्ट्रीय नदी गंगा (पुनर्जीवन, संऱक्षण एवम् प्रबंधन) बिल – 2017 के जिस प्रारूप को लेकर संसद में रखा जाना प्रस्तावित है, उसे लेकर स्वामी श्री सानंद की घोर असहमति थी। स्वामी सानंद जैसे गंगा क़ानून की मांग कर रहे थे; वह चाहते थे कि न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय की अघ्यक्षता में गठित समिति द्वारा तैयार राष्ट्रीय नदी गंगा जी (संरक्षण एवम् प्रबंधन) अधिनियम – 2012 के गंगा महासभा द्वारा प्रस्तावित प्रारूप को उसका आधार बनाया जाए।
गौरतलब है कि 2012 में तैयार राष्ट्रीय नदी गंगा जी (संरक्षण एवम् प्रबंधन) अधिनियम प्रारूप निर्माण समिति के स्वामी श्री ज्ञानस्वरूप स्वयं भी एक सदस्य थे।
स्वामी श्री सानंद के आमरण अनशन के दौरान उनकी गंगा मांगों पर बात तक न करना और उनके देहावसान के पश्चात् उनके योगदान को स्मरण करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का ट्वीट करने को आप किस श्रेणी की श्रृद्धा में रखेंगे ? गंगाभक्ति अथवा दिखावा व छल ??
कांग्रेस का संगठन भी स्वामी श्री सानंद को लेकर श्री राहुल गांधी जी के ट्वीट की दिशा में महज् खानापूर्ति करता दिखाई पड़ रहा है। उत्तराखण्ड क्रांति दल और समाजवादी पार्टी की इकाइयां स्वामी सानंद के बलिदान को भुनाने में लग गई हैं।
क्षोभ होता है कि स्वयं को हिंदू संस्कृति का वाहक कहने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत जी तथा हिंदू संप्रदाय के सर्वोच्च पद पर आसीन पुरी शंकराचार्य स्वामी श्री निश्छलानंद जी एवम् शारदापीठ व ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद जी ने जानते-बूझते स्वामी श्री सानंद के गंगा संकल्प की उपेक्षा की। समय-समय पर गंगा का प्रश्न उठाते रहे स्वामी श्री रामदेव जी तथा परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के स्वामी श्री चिंदानंद मुनि जी ने भी चुप्पी साधे रखी। कभी गंगा और धारी देवी का झण्डा थामकर मंत्री बनी सुश्री उमा जी के प्रयास एक बनकर उनकी कमज़ोरी के परिचायक बनकर हमारे सामने आये।
आवश्यकता है कि स्वामी सानंद ने अपनी गंगा मांगों को जहां छोड़ा था, भारत का गंगा समाज वहां से आगे बढ़ें; ताकि उन मांगों की अक्षरंश पूर्ति के लिए शासन को बाध्य कर सकें। शासन, यदि गंगा भक्त परिषद का गठन नहीं करती है, तो गंगा भक्त स्वयं यह पहल करें; स्वयं गंगा भक्त परिषद का गठन करें; गंगा संरक्षण एवम् प्रबंधन के संबंध में स्वयं निर्णय दें तथा शासन, प्रशासन और स्वयं गंगा समाज को उसकी पालना के लिए बाध्य और अनुशासित करने का काम भी स्वयं ही करें।
इसी आशय को केद्र में रखकर लिखित गंगा निवेदन प्रस्तुत कर रहा हूं। कृपया पढे़, संवेदनशील हों तथा गंगा अविरलता हेतु संकल्पित हो; स्वामी श्री सानंद की गंगा अविरलता की आवश्यकता का तर्क और उस पर भारत की केन्द्र सरकार के रवैये को जन-जन तक पहुंचाये, क्योंकि अविरलता सुनिश्चित के बिना, निर्मलता सुनिश्चित करने के समस्त प्रयास निरर्थक साबित होने वाले हैं।
तय अब हम को ही करना है
तय अब हम को ही करना है, गंगा तट से बोल रहा हूं…. गंगा तट पर देखा मैने साधना में मातृ के सानिध्य बैठा इक सन्यासी मृत्यु को ललकारता सानंद समय का लेख बनकर लिख गया इक अमिट पन्ना। न कोई नागनाथ मरा है नहीं मरेगा निगमानंद अपना मर जायेंगे जीते जी हम सब सिकंदर नही जियेगा सुपना निर्मल गंगा जी का। प्राणवायु नहीं बचेगी बांधों के बंधन में बंधकर खण्ड हो खण्ड हो जायेगा उत्तर का आंचल मल के दलदल में फंसकर यू पी से बंगाल देस तक डूब मरेंगे गौरव सारे। तय अब हमको ही करना है, गंगा तट से बोल रहा हूं…… लिख जायेगा हत्यारों में नाम हमारा पङ जायेंगे वादे झूठे गंगाजी से पुत जायेगी कालिख हम पर मुंड मुंडाकर बैठे जो हम गंग किनारे । गंगा को हम धर्म में बांटें या फंासें दल के दलदल में या मां को बेच मुनाफा खायें या अनन्य गंग की खातिर मुट्ठी बांध खङे हो जायें तय अब हमको ही करना है, गंगा तट से बोल रहा हूं…. गौ -गंगा -गायत्री गाने वाले, कहां गये ? इस दरिया को पाक बताने वाले, कहां गये ? कहां गये, नदियों को जीवित करने का दम भरने वाले ? कहां गये, गंगा का झंडा लेकर चलने वाले ? धर्मसत्ता के शीर्ष का दंभ जो भरते है, वे कहां गये ? कहां गये, उत्तर -पूरब काशी पटना वाले ? कहां गये गंगा के ससुरे वाले, कहां गये ? ”साथ में खेलें, साथ में खायें, साथ करें हम सच्चे काम’” कहने वाले कहां गये ? अरुण, अब उत्तर चाहे जो भी दे लो जीवित नदियां या मुर्दा तन तय अब हमको ही करना है, गंगा तट से बोल रहा हूं…. हो सके ललकार बनकर या बनें स्याही अनोखी दे सके न गर चुनौती, डट सकें न गंग खातिर अश्रु बनकर ही बहें हम, उठ खङा हो इक बवंडर अश्रु बन जायें चुनौती, तोङ जायें बांध-बंधन देखते हैं कौन सत्ता फिर रहेगी चूर मद में लोभ के व्यापार में कब तक करेगी गंग मात पर आघात । गिर गई सत्ता गिरे, मूक बनकर हम गिरेंगे या उठेंगे अन्याय के संग चलेंगे या उसकी छाती मूंग दलेंगे तय अब हमको ही करना है, गंगा तट से बोल रहा हूं….
____________________
परिचय -:
अरुण तिवारी
लेखक ,वरिष्ट पत्रकार व् सामजिक कार्यकर्ता
1989 में बतौर प्रशिक्षु पत्रकार दिल्ली प्रेस प्रकाशन में नौकरी के बाद चौथी दुनिया साप्ताहिक, दैनिक जागरण- दिल्ली, समय सूत्रधार पाक्षिक में क्रमशः उपसंपादक, वरिष्ठ उपसंपादक कार्य। जनसत्ता, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला, नई दुनिया, सहारा समय, चौथी दुनिया, समय सूत्रधार, कुरुक्षेत्र और माया के अतिरिक्त कई सामाजिक पत्रिकाओं में रिपोर्ट लेख, फीचर आदि प्रकाशित।
1986 से आकाशवाणी, दिल्ली के युववाणी कार्यक्रम से स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता की शुरुआत। नाटक कलाकार के रूप में मान्य। 1988 से 1995 तक आकाशवाणी के विदेश प्रसारण प्रभाग, विविध भारती एवं राष्ट्रीय प्रसारण सेवा से बतौर हिंदी उद्घोषक एवं प्रस्तोता जुड़ाव।
इस दौरान मनभावन, महफिल, इधर-उधर, विविधा, इस सप्ताह, भारतवाणी, भारत दर्शन तथा कई अन्य महत्वपूर्ण ओ बी व फीचर कार्यक्रमों की प्रस्तुति। श्रोता अनुसंधान एकांश हेतु रिकार्डिंग पर आधारित सर्वेक्षण। कालांतर में राष्ट्रीय वार्ता, सामयिकी, उद्योग पत्रिका के अलावा निजी निर्माता द्वारा निर्मित अग्निलहरी जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के जरिए समय-समय पर आकाशवाणी से जुड़ाव।
1991 से 1992 दूरदर्शन, दिल्ली के समाचार प्रसारण प्रभाग में अस्थायी तौर संपादकीय सहायक कार्य। कई महत्वपूर्ण वृतचित्रों हेतु शोध एवं आलेख। 1993 से निजी निर्माताओं व चैनलों हेतु 500 से अधिक कार्यक्रमों में निर्माण/ निर्देशन/ शोध/ आलेख/ संवाद/ रिपोर्टिंग अथवा स्वर। परशेप्शन, यूथ पल्स, एचिवर्स, एक दुनी दो, जन गण मन, यह हुई न बात, स्वयंसिद्धा, परिवर्तन, एक कहानी पत्ता बोले तथा झूठा सच जैसे कई श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम। साक्षरता, महिला सबलता, ग्रामीण विकास, पानी, पर्यावरण, बागवानी, आदिवासी संस्कृति एवं विकास विषय आधारित फिल्मों के अलावा कई राजनैतिक अभियानों हेतु सघन लेखन। 1998 से मीडियामैन सर्विसेज नामक निजी प्रोडक्शन हाउस की स्थापना कर विविध कार्य।
संपर्क -:
ग्राम- पूरे सीताराम तिवारी, पो. महमदपुर, अमेठी, जिला- सी एस एम नगर, उत्तर प्रदेश
डाक पताः 146, सुंदर ब्लॉक, शकरपुर, दिल्ली- 92
Email:- amethiarun@gmail.com . फोन संपर्क: 09868793799/7376199844
Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS .