लेखक म्रदुल कपिल कि कृति ” चीनी कितने चम्मच ” पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l
–चीनी कितने चम्मच पुस्तक की पांचवी कहानी –
_________उड़ान__________
पारुल पिछले 1 घंटे से on line Mens watches देख रही थी , उसने एक बार फिर से सारा हिसाब लगाया की अपनी पहली सैलरी से माँ के लिए २ साड़िया , भाई के लिए साईकिल लेनी है , और इसके बाद उसके लिए एक घडी , जिसके साथ वो हर पल रहना चाहती है , उसका जन्मदिन जो है।
पारुल राजपूत 21 वर्ष की खूबसूरत और शांत सी लड़की , भारत के लाखो लड़के लड़कियों की तरह वो भी I.A.S बनना चाहती थी, लेकिन उसके ग्रेजुएट होते ही एक हादसे में उसके पिता जी माँ , भाई और उसे इस दुनिया में अकेला छोड़ कर चले गए , ज़िंदगी को चलाने के लिए माँ ने पास एक स्कूल में क्लर्क के रूप में काम करना शुरू कर दिया था , और पारुल आस पास के बच्चो को को पढ़ाने लगी थी , ज़िंदगी मुश्किल से ही सही लेकिन फिर से चल पड़ी थी ,
कितना खुश थी उस दिन पारुल जब उसके पापा के दोस्त के लड़के ने उसे अपने ऑफिस में जॉब के लिए ऑफर किया था , टेलीफोन ऑपरेटर का काम था और बीस हजार की सैलरी . माँ को एक सहारा मिल गया था।
एक महीना कब बीत गया पता ही नही चला , सर बहुत ख्याल रखते थे उसका , कोई गलती होने जाने पर भी प्यार से समझाते थे , कभी कभी पारुल सोचती की अगर उसका बड़ा भाई होता तो बिलकुल सर के जैसा ही होता ,
आज सैलरी डे था , पिछले 15 दिन से पारुल सिर्फ यही प्लान कर रही थी की पहली सैलरी में उसे किसके लिए क्या करना है ? वो मुट्ठी भर पैसो से सबकी खुशिया खरीदना चाहती थी ,
तभी फ़ोन की घंटी बजी और सर ने उसे अपने केबिन में बुलाया।
पारुल ने केबिन में आ कर सर के सामने खड़ी हो गयी , उन्होंने उसे उसकी सैलरी का चेक देते हुआ बोला ” पहली सैलरी मुबारक हो ,”
पारुल ” ” Thanks u sir ‘
” पारुल एक काम करो कल की छुट्टी कर लो , और मेरे फ्लैट पर आ जाना ” सर ने पारुल के कंधे पर हाथ रखते हुआ बोला।
अवाक् सा हो कर पारुल ने बोला ” सर मै समझी नही ”
” अरे वो क्या है न की मेरी बीवी कुछ दिनों के लिए मायके गयी हुयी है , तो मै चाहता हू की तुम उसकी कमी पूरी करो ” हाथ का दबाव बढ़ते हुए सर ने बोला
पारुल ने अपने गुस्से को दबाते हुये बोला ” सर माफ़ करिये मै ऐसी लड़की नही हू ” और उनका हाथ झटक दिया।
” देखो पारुल ऐसी लड़की कोई नही होता है लेकिन हालात उसे बना देते है , तुम खुद ही सोचो जो काम कोई भी 5 हजार में कर सकता है मै उसके लिए 20 हजार दे रहा हू , तुम्हे उसके बदले मुझे भी कुछ चाहिए न ? ” बहुत आराम से उन्होंने उसकी बोली लगा दी थी।
पारुल बहुत कुछ बोलना चाह रही थी , लेकिन शब्दों ने साथ छोड़ दिया था , दुनिया का एक और रंग सामने था। शायद आज वो give & take के रिश्ते को समझ रही थी।
सर ने उसकी ख़ामोशी को सहमति मानते हुए फिर से कहना शुरू किया ” सोच लो , तुम्हारा ही फायदा है , डरो मत , तुम्हे मै बहुत आगे ले सकता हू , तुम अपने हिसाब से अपनी ज़िंदगी जी सकती हो , और मेरी बात न मानने पर तुम और तुम्हारा परिवार फिर से उसी हाल में होगा , शुरू में अजीब लगेगा फिर तुम्हे इन सब की आदत हो जाएगी , आगे बढ़ना है तो हालत से समझौता करना सीखो ”
पारुल ने सर की और देखा और मुस्कुरा उठी , उसने एक फैसला कर लिया था।
पारुल बिना कुछ बोले अपने बॉस के केबिन से निकल गयी , उसकी आँखों में आंसू थे , और दिल में भरोसा टूटने का दर्द , कुछ पल बाद उसने खुद को वाशरूम में आईने के सामने खड़ा पाया उसने अपने आँसुओं को पानी में मिला कर बहा दिया था , उधर पारुल का बॉस कल जब वो उसके साथ होगी तक के सपने देखना लगा था ,उसे पता था की पारुल न नही कर सकती , आखिर आज तक पता नही कितनी लड़कियों का उसने इस हाल में फायदा उठाया था , पारुल को बॉस के केबिन में जाते फिर आँखों में आंसू लिए वाशरूम में जाते हुए देख कर पुरे ऑफिस में खुसुर फुसुर शुरू हो गयी थी , मैनेजर रितिका के होंठो पर दर्द को छुपाती एक मुस्कान आ गयी थी , वो पारुल में खुद को देख रही थी दो साल पहले उसने भी तो इन्ही हालातो में समझौता किया था , और आज इस मुकाम तक पहुचने के लिए न जाने कितनी बार अपनी आत्मा को कुचला था ,
पारुल मुँह धूल कर अपनी सीट पर आयी , अपने बैग से एक डायरी निकाली ये वो डायरी थी जो उसके पापा ने उसे उसके जन्म दिन पर दी थी , उसके पहले ही पेज पर पापा ने २ लाईने लिखी थी जो मानो आज के ही लिए ही थी , पारुल ने उन लाइनो को पढ़ा एक बार , दो बार तब तक जब तक वो आंसुओ के कारण धुंधला नही गयी ;
” हार कर मंजूर मत करना समय का फैसला , जब तलक है साँस बाकि छोड़ना मत हौसला ”
पारुल को पता था की माँ को जब पता चलेगा की उसने जॉब छोड़ दी तो उन्हें बुरा लगेगा , लेकिन उसे पता था की उन्हें तब गर्व होगा जब वो जानेगी की उसने अपना जमीर नही बेचा , माँ का कुछ दिन और पुरानी साड़िया पहन लेना उसके कपडे उतरने से ज्यादा अच्छा है , भाई का कुछ दिन और पैदल स्कूल जा लेना अपने आत्मा के बोझ को ढोने से ज्यादा अच्छा है , उसको घडी देने से ज्यादा अच्छा है की उस से वो हर बार नज़ारे मिला कर बात कर सके ,
जरूरते कम कर ज़िंदगी जी जा सकती है , ये बात मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नही ,वो और ज्यादा मेहनत करेगी फिर से तैयारी करेगी , अब वो वही जॉब करेगी जंहा उसे काबिलियत के लिए लिया जायेगा न की जिस्म के लिए ,
उसे पता था ये सब बहुत कठिन है लेकिन उसके हौसले के सामने ये सारी मुसीबते एक दिन हार जाएगी ये भी वो जानती थी ,
resignation टाइप करते समय पारुल के हाथ एक बार भी नही कांपे , resignation letter ले कर पारुल बॉस के केबिन में जाने ही वाली थी कि बॉस ने एक साथ सब को मीटिंग रूम में बुलाया कोई नया product launch हुआ था ,उसके बारे में मीटिंग थी , पारुल मीटिंग रूम में सब से बाद में दाखिल हुयी , सर उसे देख एक अजीब सी मुस्कान मुस्काये , पारुल भी मुस्काई , लेकिन वो मीटिंग रूम की अपनी सीट पर नही रुकी वो बॉस की सीट तक गयी , और बोली
” सर एक मिनट ”
” जी पारुल बताये ” अपने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लिए सर उसकी तरफ मुड़े
” थूऊऊ , ” सबके सामने पारुल ने बॉस के मुह पर थूक दिया और बोली
” थू है Mr.आदित्य तुम्हारी जॉब पर , तुम्हारी सोच पर और तुम पर , तुम्हे आदत नही होगी न किसी मजबूर लड़की की न सुनने की , कोई नही पहले तुम्हे ये अजीब लगेगा और फिर आदत पड़ जाएगी ”
सब हैरान से पारुल को देख रहे थे , और पारुल ने अपनी उड़ान की परवाज भर दी थी ..
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म्रदुल कपिल
लेखक व् विचारक
18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया . ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी हाऊसिंग कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l
पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो , वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती जिंदगी का .