श्यामल सुमन की कविताएँ
1.इक बहाना चाहिए
प्यार मुमकिन है सभी से इक बहाना चाहिए
और समय पर आईना खुद को दिखाना चाहिए
जिन्दगी की राह में बेखौफ चलने का मज़ा
पास गिर जाए कोई उसको उठाना चाहिए
कैद कोई कर सका ना रौशनी को अबतलक
बुझ गए दीपों को दीपक से जलाना चाहिए
भूल हो जाए बुजुर्गों से अगर कुछ भूल से
गौर उन भूलों पे न कर भूल जाना चाहिए
है अमावस आज तो कल रात पूनम चाँदनी,
सोचकर ऐसा सुमन को मुस्कुराना चाहिए
2.जीने का अन्दाज वही
जिनसे मैंने जीना सीखा, खड़ा दूर क्यों आज वही
हुई कभी ना ऊँची बातें, है आँखों में लाज वही
पहले जो अपनापन पाया, बाहर से दिखता वैसा
अन्दर कुछ बदला सा क्यूँ है, बतलायेगा राज वही
बदल रहे तारीख हमेशा, सालों साल महीनों में
लगा रहा रोटी पाने को, खड़ा सामने काज वही
बिगड़ गए हालात देश के, जिनसे पूछो, वे कहते
खुद को जब कुछ करना पड़ता, मुर्दानी आवाज वही
प्रगतिवाद का पोषक बनकर, परिवर्तन की बात करे
लेकिन घर में देख रहा हूँ, जीने का अन्दाज वही
बदल रहे इन्सानी रिश्ते, आपस का विश्वास घटा
समझ न पाया क्यूँ ऊपर से, दिखता सतत समाज वही
क्या अच्छा है और बुरा क्या, सबको सब समझाते हैं
चाहे जो अंजाम सुमन का, लेकिन है आगाज वही
3.बेच रहे तरकारी लोग
प्रायः जो सरकारी लोग
आज बने व्यापारी लोग
लोकतंत्र में बढ़ा रहे हैं
प्रतिदिन ये बीमारी लोग
आमलोग के अधिकारों को
छीन रहे अधिकारी लोग
राजनीति में जमकर बैठे
आज कई परिवारी लोग
तंत्र विफल है आज देश में
भोग रहे बेकारी लोग
जय जयकार उन्हीं की होती
जो हैं अत्याचारी लोग
पढ़े लिखे भी अब सडकों पर
बेच रहे तरकारी लोग
मानवता को भूल, धर्म पर
करते मारामारी लोग
चमन सुमन का जल ना जाए
शुरू करें तैयारी लोग
4.सुमन पागल अरजने में
खुशी की दिल में चाहत गर, खुशी के गीत गाते हैं
भरोसा क्या है साँसों का, चलो गम को भुलाते हैं
दिलों में गम लिए लाखों, हँसी को ओढ़कर जीते
सहज मुस्कानवाले कम, जो दुनिया को सजाते हैं
है कीमत कामयाबी की, जहाँ पर लोग अपने हों
उन्हीं अपनों से क्यूँ अक्सर, वही दूरी बढ़ाते हैं
मुहब्बत और इबादत में, कोई तो फर्क समझा दो
मगर उस नाम पर जिस्मों, को अधनंगा दिखाते हैं
चलो बच्चों के सर डालें, अधूरी चाहतें अपनी
बढ़ी है खुदकुशी बच्चे, अभी खुद को मिटाते हैं
सलीका सालों में बनता, मगर वो टूटता पल में
ये दुनिया रोज बेहतर हो, सलीका फिर सिखाते हैं
भला क्या मोल भावों का, सुमन पागल अरजने में
पलट कर देख इस कारण, कई रिश्ते गँवाते हैं
5.निहारे नयन सुमन अविराम
झील सी गहरी लख आँखों में, नील-सलिल अभिराम।
निहारे नयन सुमन अविराम।।
कुछ समझा कुछ समझ न पाया, बोल रही क्या आँखें?
जो न समझा कहो जुबाँ से, खुलेगी मन की पाँखें।
लिपट लता-सी प्राण-प्रिये तुम, भूल सभी परिणाम।
निहारे नयन सुमन अविराम।।
दर्द बहुत देता इक कांटा, जो चुभता है तन में।
उसे निकाले चुभ के दूजा, क्यों सुख देता मन में।
सुख कैसा और दुःख है कैसा, नित चुनते आयाम।
निहारे नयन सुमन अविराम।।
भरी दुपहरी में शीतलता, सखा मिलन से चैन।
सिल जाते हैं होंठ यकायक और बोलते नैन।
कठिन रोकना प्रेम-पथिक को, प्रियतम हाथ लगाम।
निहारे नयन सुमन अविराम।।
6.मच्छड़ का फिर क्या करें
मैंने पूछा साँप से, दोस्त बनेंगे आप।
नहीं महाशय ज़हर में, आप हमारे बाप।।
कुत्ता रोया फूटकर, यह कैसा जंजाल।
सेवा नमकहराम की, करता नमकहलाल।।
जीव मारना पाप है, कहते हैं सब लोग।
मच्छड़ का फिर क्या करें, फैलाता जो रोग।।
दुखित गधे ने एक दिन, छोड़ दिया सब काम।
गलती करता आदमी, लेता मेरा नाम।।
बीन बजाये नेवला, साँप भला क्यों आय।
जगी न अब तक चेतना, भैंस लगी पगुराय।।
नहीं मिलेगी चाकरी, नहीं मिलेगा काम।
न पंछी बन पाओगे, होगा अजगर नाम।।
गया रेल में बैठकर, शौचालय के पास।
जनसाधारण के लिये, यही व्यवस्था खास।।
रचना छपने के लिये, भेजे पत्र अनेक।
सम्पादक ने फाड़कर, दिखला दिया विवेक।।
वर्तमान पेशा : प्रशासनिक पदाधिकारी टाटा स्टील, जमशेदपुर, झारखण्ड, भारत
साहित्यिक कार्यक्षेत्र : छात्र जीवन से ही लिखने की ललक, स्थानीय
समाचार पत्रों सहित देश के प्रायः सभी स्तरीय पत्रिकाओं में अनेक
समसामयिक आलेख समेत कविताएँ, गीत, ग़ज़ल, हास्य-व्यंग्य आदि प्रकाशित
स्थानीय टी.वी. चैनल एवं रेडियो स्टेशन में गीत, ग़ज़ल का प्रसारण, कई
राष्ट्रीय स्तर के कवि-सम्मेलनों में शिरकत और मंच संचालन
अंतरजाल पत्रिका “अनुभूति,हिन्दी नेस्ट, साहित्य कुञ्ज, साहित्य शिल्पी,
प्रवासी दुनिया, प्रवक्ता, गर्भनाल, कृत्या, लेखनी, आखर कलश आदि मे
अनेकानेक रचनाएँ प्रकाशित
गीत ग़ज़ल संकलन “रेत में जगती नदी” – (जिसमे मुख्यतया मानवीय मूल्यों और
संवेदनाओं पर आधारित रचनाएँ हैं) प्रकाशक – कला मंदिर प्रकाशन दिल्ली
“संवेदना के स्वर” – कला मंदिर प्रकाशन में प्रकाशनार्थ
“अप्पन माटि” – मैथिली गीत ग़ज़ल संग्रह – प्रकाशन हेतु प्रेस में जाने को तैयार
सम्मान –
पूर्व प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा प्रेषित प्रशंसा पत्र -२००२
साहित्य-सेवी सम्मान – २०११ – सिंहभूम जिला हिन्दी साहित्य सम्मलेन
मैथिल प्रवाहिका छतीसगढ़ द्वारा – मिथिला गौरव सम्मान २०१२
नेपाल के उप प्रधान मंत्री द्वारा विराट नगर मे मैथिली साहित्य सम्मान – जनवरी २०१३
अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन संयुक्त अरब अमीरात में “सृजन श्री” सम्मान – फरवरी २०१३
Email ID – shyamalsuman@gmail.com phone – : 09955373288
अपनी बात – इस प्रतियोगी युग में जीने के लिए लगातार कार्यरत एक जीवित-यंत्र, जिसे सामान्य भाषा में आदमी कहा जाता है और जो इसी आपाधापी से कुछ वक्त चुराकर अपने भोगे हुए यथार्थ की अनुभूतियों को समेट, शब्द-ब्रह्म की उपासना में विनम्रता से तल्लीन है – बस इतना ही।