शंशांक प्रभाकर के मुक्तक

 मुक्तक

लफ्जो के गांव से जादू चुरा के लाया हूं…..
मैं मोहब्बत की ही खुशबू चुरा के लाया हूं…
आप कहते है जिसे फन वो असलियत है मेरी…
मैं किसी आखं से आसूं चुरा के लाया हूं…

काँच के टूटे हुए टुकड़े में दरपन निकला
रेत के सीने में पोशिदा एक चमन निकला
आज के दौर में बदला है इस तरह इंसां
मैनें समझा था जिसे दोस्त वो दुश्मन निकला

दुनिया में वफाओं का सिला कौन करेगा
दुखते हुए ज़ख़्मों की दवा कौन करेगा
ख़्वाहिश है मेरी..मेरे सलामत रहें दुश्मन
वरना मेरे जीने की दुआ कौन करेगा

ख़ाली जेबों में ये सिक्कों सी खनक जाती है
रेत बन कर कभी मुठठी से सरक जाती  है
मौत पानी की तरह हमको बहा ले जाएगी
ज़िंदगी आग है शोलों में सिमट जाती है

जीवन का हर इक इक लम्हा इसी बोध में रहता है
दौड़ कहाँ पर होगी पूरी इसी शोध में रहता है
एैसे कर दूँ तन को मैं मिट्टी के हवाले आख़िर में
जैसे बच्चा बेफ़िक्री से माँ की गोद में रहता है

आँसू , मुस्कान ,ख़ुशी , दर्द , तू मुझको दे दे
होती मुश्किल है बहुत इन का क़र्ज़ रखने में
ये वो दौलत है जो मेहमां की तरह रूकती नहीं
बढ़ती जाती है ये उतना ही ख़र्च करने में….

इक नूर सा हर सिम्त बरसता हुआ मिला
हर गुल दरस को तेरे तरसता हुआ मिला
गुलशन ने यूँ चुराई तेरी सासों की ख़ुशबू
काँटा जो चुभा वो भी महकता हुआ मिला

वो आवारा आँधी को भी हवा सुहानी कहता है
कैसा है ये दौर जो आँसू पी-पी कर के जी-ता  है
ख़ून से जिनकी प्यास बुझ रही उनसे ही तुम पूछ रहे
राजनीति के नाले में क्या मीठा पानी बहता है

जब कभी हारा थका शाम को घर जाता हूँ
मुझको लगता है नगीने सा पसीना अपना
और फिर बच्चे मुझे देख के मुस्काते हैं
ऐसा लगता है कि जीना हुआ जीना अपना

उड़द की दाल…रोटी..बिन बुलाए छाछ आती है
वो छलकी बूँदें मटकी से हमें इक राज बताती है
मैं जब भी सूनीं पगडंडी पर चलता हूँ तो लगता है
अभी तक मिट्टी मेरे गाँव की मुझको बुलाती है

रेशमी धूप की सूरत में बन के शाम गाते हैं
नाम कुछ आज भी ऐसे हैं जो पैग़ाम लाते हैं
रेल वो यादों वाली उस तरफ़ से अब नहीं जाती
वो जिन शहरों से मेरे नाम के सलाम आते  हैं

डूब कर भी हम उबरना जानते हैं
और गिर कर भी सँभलना जानते हैं
रोशनी है इसलिए अब तक चरागों में
हम हवा का रूख बदलना जानते हैं

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शंशांक प्रभाकर

वरिष्ट पत्रकार ,लेखक व् कवि

किताबें : फूल खिले हैं गुलशन गुलशन (संचयन)

संपादन: शब्दलोक मासिक साहित्यिक पत्रिका (वर्ष २००३  २००८)

सम्मान :  १) छुपा रुस्तम (वाह वाह क्या बात है )
२) शिखर सम्मान (अलीगढ़)
3) युवा सम्मान (कानपुर)
4) नीरज शायर पुरूस्कार २०१५ (अलीगढ़)

साहित्यिक यात्राएं : इंग्लैण्ड (3 साल), मॉरीशस, ऑस्ट्रिया, बार्सिलोना(स्पेन ), पैरिस, स्विट्ज़रलैंड |

सम्प्रति : सहारा समय (संवाददाता )

संपर्क – : news.shashankprabhakar@gmail.com

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