धर्मनिरपेक्ष शासक थे छत्रपति शिवजी

–  तनवीर जाफरी  –

छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्मदिन शिवाजी जयंती के रूप में फरवरी 2016 में महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर मनाए जाने की तैयारियां चल रही हैं। Secular ruler Chhatrapati Shivaji.article on Secular ruler Chhatrapati Shivaji, article on Chhatrapati Shivaji , article on Secular ruler ,Chhatrapati Shivaji, Chhatrapati Shivaji ecular ruler ,ecular rulerइस अवसर पर पूरे राज्य में विशेषकर मुंबई में कई विशाल जुलूस निकाले जाने की तैयारियां की जा रही हैं जिसमें जहां उनके जीवन से संबंधित तमाम झांकियां पेश की जाएंगी वहीं इन कार्यक्रमों में अनेक लोग शिवाजी तथा उनके सहयोगियों की वेशभूषा धारण किए हुए भी नज़र आएंगे। इसके अतिरिक्त भी कई सांस्कृतिक कार्यक्रम व सभाएं शिवाजी महाराज की याद में बड़े पैमाने पर आयोजित किए जाने की योजना है। गौरतलब है कि हमारे देश में एक राजनैतिक विचारधारा ऐसी है जो महज़ अपने राजनैतिक लाभ की खातिर छत्रपति शिवाजी महाराज को एक कट्टर हिंदू शासक तथा देश को हिंदू राष्ट्र बनाए जाने के पक्षधर राजा के रूप में प्रचारित करती है। दरअसल अंग्रेज़ों ने भारत में अपने शासनकाल में देश को हिंदू व मुसलमानों के मध्य जिस प्रकार बांटने की साजि़श की उससे पूरी दूनिया अच्छी तरह वािकफ है। बांटो और राज करो की नीति पर चलते हुए यह अंग्रेज़ आज भी दुनिया के कई देशों में विद्रोह तथा उपद्रव की स्थिति पैदा किए हुए हैं। भारत में भी उन्होंने अपनी इसी नीति पर चलते हुए उस समय अपने वफादार  अंग्रेज़ व मराठा इतिहासकारों द्वारा इतिहास में कई ऐसी बातें लिखवाईं जिनसे भारतीय समाज को धर्म के आधार पर विभाजित करने में उन्हें सफलता हासिल हुई। दुर्भाग्यवश आज ऐसी विचारधारा जो अंग्रज़ों के उस भ्रमित करने वाले इतिहास से अपना राजनैतिक लाभ होते हुए देखती है वह उसी इतिहास को पढऩा व पढ़ाना चाहती है ताकि उस पर विश्वास करते हुए व उसे प्रचारित करते हुए उन्हें सत्ता की सीढिय़ों पर चढऩे में आसानी हो सके। ऐसे ही अंग्रेज़ इतिहासकारों ने छत्रपति शिवाजी को एक हिंदूवादी शासक के रूप में प्रचारित किया। जबकि इतिहास तो यही बताता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज दरअसल एक सच्चे धर्मनिरपेक्ष शासक थे तथा वे सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते थे।

सर्वधर्मसंभाव तथा धर्मनिरपेक्ष विचारधारा की शिक्षा शिवाजी को विरासत में हासिल हुई थी। शिवाजी के दादा मालोजी जोकि अहमदनगर रियासत में एक सुप्रतिष्ठिïत फौजी कमाण्डर थे, उन्हें शादी के दस वर्षों तक कोई सन्तान नहीं हुई थी। जबकि उनके छोटे भाई के घर आठ संतानें थीं। मालोजी ने पुत्र प्राप्ति के लिए तीर्थ, व्रत, पूजा-पाठ आदि सब कुछ कर डाला परंतु उन्हें संतान की प्रप्ति नहीं हुई। अन्त में किसी शुभचिन्तक की सलाह मानकर वे अहमदनगर िकले के बाहर स्थित शाह शरफ की मजार पर गए और सन्तान के लिए शाह शरफ पीर से मन्नत व दुआयें मांगीं। उसी वर्ष मालोजी के घर एक पुत्र पैदा हुआ तथा अगले ही वर्ष दूसरे पुत्र ने भी जन्म ले लिया। मालोजी को इस बात का पूरा विश्वास हो गया कि उन्हें शाह शरफ बाबा के आशीर्वाद से ही दोनों पुत्र प्राप्त हुए हैं। तभी उन्होंने अपने बड़े बेटे का नाम शाहजी और छोटे बेटे का नाम शरफ जी रख दिया। छत्रपति शिवाजी उसी पीर के आशीर्वाद का परिणाम अर्थात् शाहजी की सन्तान थे।

शिवाजी कुरान शरीफ, मस्जिदों, दरगाहों तथा औरतों का बहुत आदर करते थे। एक बार शिवाजी के एक हिन्दू सेनापति ने सूरत शहर को लूटा तथा वहां के मुगल हाकिम की सुन्दर बेटी को कैद कर उनके दरबार में लाया। शिवाजी के समक्ष उस सुन्दर कन्या को पेश करते हुए वह सेनापति बोला कि- ‘महाराज मैं आपके लिए यह नायाब तोहफा लाया हूं।’ शिवाजी अपने कमाण्डर की इस हरकत को देखकर गुस्से से आग बबूला हो गए तथा अपने उस सरदार को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा- ‘तुमने न सिर्फ अपने मजहब की तौहीन की बल्कि अपने महाराज के माथे पर कलंक का टीका भी लगाया।’ फिर कैद करके लाई गई मुगल हाकिम की सुन्दर बेटी की ओर देखकर शिवाजी बोले- ‘बेटी, तुम कितनी ख़्ाूबसूरत हो। काश मेरी मां भी तुम्हारी तरह ख़्ाूबसूरत होती तो मैं भी तुम्हारे जैसा ही ख़्ाूबसूरत होता।’ उसके पश्चात शिवाजी ने ढेर सारे तोहफे देकर उस मुसलमान शहजादी को अपनी एक फौजी टुकड़ी की देख रेख में उसके माता-पिता के पास आदर सहित वापस भेज दिया। इतना ही नहीं शिवाजी ने अपने उस सेनापति की करतूत के लिए सूरत के मुगल हाकिम से क्षमा याचना भी की। शिवाजी की फौज को उनका आदेश था कि लड़ाई के दौरान किसी भी मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंचे और यदि कहीं कोई कु रान शरीफ मिल जाए तो उसे आदर सहित मेरे पास लाया जाए। इस प्रकार प्राप्त किये गये कुरान शरीफ को शिवाजी प्राय: मुसलमान कािजयों को तोहफे के रूप मे पेश कर दिया करते थे।

हैदराबाद (सिन्ध) से आकर केलसी में बसे बाबा याकूत एक बड़े सूफी सन्त थे। उनका मानना था कि ईश्वर, अल्लाह एक ही हैं तथा कुल इन्सान आपस में भाई-भाई हैं। शिवाजी बाबा याकूत शहरवर्दी के इतने बड़े भक्त व मुरीद थे कि उन्होंने बाबा को 653 एकड़ जमीन जागीर के रूप में अता की तथा वहां एक विशाल ख़्ाानकाह का निर्माण करवाया। शिवाजी की मृत्यु के एक वर्ष बाद ही बाबा याकूत का भी देहान्त हो गया था। जब भी शिवाजी किसी युद्घ के लिए जाते थे तो अपनी विजय के लिए बाबा याकूत से दुआएं व मुरादें मांगकर जाते थे। अपने फरमान में शिवाजी ने लिखा भी है–‘हजरत बाबा याकूत बहवत थोरू बे’ अर्थात् बाबा याकूत बहुत बड़े सूफी-सन्त हैं। एक अन्य मुस्लिम सूफी मौनी बुआ जो कि पाड़ गांव में रहते थे उन पर भी शिवाजी को अत्यधिक विश्वास था तथा वे मौनी बुआ के बहुत बड़े भक्त थे। युद्घ के लिए जब शिवाजी कर्नाटक मोर्चे पर जाने लगे तो उन्होंने मोर्चे पर जाने से पहले मौनी बुआ के पास जाकर उनका आशीर्वाद लिया।

इतिहास कभी भी विश्वास के उस दस्तावेज को झुठला नहीं सकता जो हमें यह बताता है कि शिवाजी के सबसे विश्वासपात्र सहयोगी एवं उनके निजी सचिव का नाम मुल्ला हैदर था। शिवाजी के सारे गुप्त दस्तावेज मुल्ला हैदर की सुपुर्दगी में ही रहा करते थे तथा शिवाजी का सारा पत्र व्यवहार भी उन्हीं के िजम्मे था। मुल्ला हैदर शिवाजी की मृत्यु होने तक उन्हीं के साथ रहे। शिवाजी के अफसरों और कमाण्डरों में बहुत सारे लोग मुसलमान थे। हालांकि कुछ अंग्रेज व मराठा इतिहासकारों ने यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि शिवाजी का लक्ष्य हिन्दू साम्राज्य स्थापित करना था। परंतु ‘पूना महजर’ जिसमें कि शिवाजी के दरबार की कार्रवाईयां दर्ज हैं उसमें 1657 ई में शिवाजी द्वारा अफसरों और जजों की नियुक्ति किए जाने का भी उल्लेख किया गया है। शिवाजी की सरकार में जिन मुस्लिम कािजयों और नायब कािजयों को नियुक्त किया गया था उनके नामों का िजक्र भी ‘पूना महजर’ में मिलता है। जब शिवाजी के दरबार में मुस्लिम प्रजा के मुकद्दमे  सुनवाई के लिए आते थे तो शिवाजी मुस्लिम कािजयों से सलाह लेने के बाद ही फैसला देते थे।

शिवाजी के मशहूर नेवल कमाण्डरों में दौलत ख़्ाां और दरिया ख़्ाां सहरंग नाम के दो मुसलमान कमाण्डर प्रमुख थे। जब यह लोग पदम् दुर्ग की रक्षा में व्यस्त थे उसी समय एक मुसलमान सुल्तान, सिद्दी की फौज ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। शिवाजी ने अपने एक ब्राह्मण सूबेदार जिवाजी विनायक को यह निर्देश दिया कि दौलत खां और दरिया खां को रसद और रुपये पैसे फौरन रवाना कर दिए जाएं। परन्तु सूबेदार विनायक ने जानबूझ कर समय पर यह कुमुक (सहायता)नहीं भेजी। इस बात से नाराज होकर शिवाजी ने विनायक को उसके पद से हटाने तथा उसे कैद में डालने का हुक्म दिया। अपने आदेश में शिवाजी ने लिखा कि- ‘तुम समझते हो कि तुम ब्राह्मïण हो, इसलिए मैं तुम्हें तुम्हारी दगाबाजी के लिए माफ कर दूंगा? तुम ब्राह्मïण होते हुए भी कितने दगाबाज हो, कि तुमने सिद्दी से रिश्वत ले ली। लेकिन मेरे मुसलमान नेवल कमाण्डर कितने वफादार निकले, कि अपनी जान पर खेलकर भी एक मुसलमान सुल्तान के विरुद्घ उन्होंने मेरे लिए बहादुराना लड़ाई लड़ी।’

शिवाजी के जीवन,उनके शासन तथा उनके द्वारा जारी किए गए कई आदेशों से यह प्रमाणित होता है कि वह सम्प्रदाय या धर्म के आधार पर कभी भी पक्षपात नहीं करते थे। शिवाजी सही मायने में एक सच्चे धर्मनिरपेक्ष तथा राजधर्म निभाने वाले शासक थे। परंतु अपने निजी हितों को साधने के लिए आज जिस प्रकार महापुरुषों को तमाम स्वार्थी लोगों ने अपने धर्म की निजी जागीर बना ली है ठीक उसी प्रकार राजनैतिक लोगों ने भी ऐसे अनेक महापुरुषों को अपने धर्म अथवा क्षेत्र से जोडक़र उनकी छवि को धूमिल तथा सीमित करने का प्रयास किया है। वास्तव में छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे शासक केवल महाराष्ट्र अथवा भारतवर्ष के लिए ही नहीं बल्कि समूचे विश्व तथा मानवता के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करने वाले महान शासक का नाम है। उन्हें किसी धर्म,राजनैतिक दल अथवा किसी क्षेत्र तक सीमित रखना उनका सम्मान नहीं बल्कि यह उनका अपमान है।

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Author-Tanveer-Jafri-Tanveer-Jafri-writer-Tanveer-Jafriतनवीर-जाफरीतनवीर-जाफरी1About the Author
Tanveer Jafri
Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities

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1 COMMENT

  1. जिस मुस्लिम महिला का ज़िक्र आप ने किया है वो, जहाँ तक मुझे याद है, सूरत शहर के मुगल हाकिम की बेटी नही बलके मुंबई के करीब जो आज कल्याण शहर है उस कल्याण के नवाब की बहू थी.

    . During the raid on Kalyan (October 1667), the Bijapuri Governor Mulla Ahmed’s young daughter-in-law, who was extremely beautiful, fell in the hands of a Maratha officer Abaji Sondev. Abaji sent the lady with a suitable escort to Poona thinking that she would be an acceptable present for his young master, but Shivaji, on her arrival exclaimed, “Oh, how nice would it have been if my mother were as fair as you are”, implying that in that case, he too would have been equally fair, and at once sent her to her home with apologies for her capture. He also issued a stern warning that in future, during raids and war with the enemy, women on no account should be made to suffer or treated as booty.

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