सत्यपाल मलिक: संविधान का वह सिपाही जिसने सत्ता से सच कहने की कीमत चुकाई

Onkareshwar Pandey
Onkareshwar Pandey

 लेखक: ओंकारेश्वर पांडेय

“जब इतिहास की किताबें लिखी जाएँगी, तो यह जरूर लिखा जाएगा कि जिस दौर में राजभवन नौकरशाहों के अड्डे बन गए थे, एक जाट किसान का बेटा वहाँ संविधान की धज्जियाँ उड़ाने से इनकार कर रहा था।”

5 अगस्त 2025 – अनुच्छेद 370 हटाए जाने की छठी वर्षगांठ पर, सत्यपाल मलिक ने दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में अंतिम साँस ली। विडंबना देखिए – जिस शख्स ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहते हुए इस फैसले पर दस्तखत किए, वही बाद में इसके सबसे मुखर आलोचक बन गए।
पुलवामा का सच – एक राज्यपाल का पश्चाताप

फरवरी 2023 में ‘द वायर’ को दिए साक्षात्कार में मलिक ने जो खुलासे किए, वे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में दर्ज हो गए:

“वो 40 जवान नहीं मरने चाहिए थे। मैं उस वक्त राज्यपाल था जब उनका खून कश्मीर की बर्फ पर बहा। सच तो यह है कि गृह मंत्रालय ने जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर आईईडी हमले की तीन लिखित चेतावनियों को नजरअंदाज किया था। सिर्फ सामान्य अलर्ट नहीं, बल्कि ठीक वैसे ही हमले की सटीक जानकारी जो बाद में हुआ।”

उनकी आवाज़ भर्राई जब उन्होंने बताया:
“सीआरपीएफ ने 15 बार रोड की जगह हवाई सुरक्षा की माँग की थी। हर बार ‘प्रक्रियात्मक कारणों’ से मना कर दिया गया। और हमारे प्रधानमंत्री जी कहाँ थे उस दिन? जैसलमेर की रेत में ‘मैं भी चौकीदार’ का प्रचार वीडियो बना रहे थे।”

प्रतिक्रिया तत्काल थी – 72 घंटे के भीतर मलिक की सुरक्षा घटा दी गई, पेंशन रोक दी गई। पर वे नहीं झुके:
“मैंने हर दस्तावेज़ की दो कॉपियाँ बनाई हैं – एक सीबीआई के लिए, एक अपनी चिता के लिए।”

मोदी युग में संविधान की लड़ाई

2016 के नोटबंदी विरोध के बारे में मलिक ने अपनी अप्रकाशित डायरी में लिखा:

“गवर्नर्स कॉन्फ्रेंस में मैंने सीधे कहा – ‘सर, यह किसानों की कमर तोड़ देगा।’ पूरा हॉल सन्न रह गया। उन्होंने वही रहस्यमय मुस्कान दी और कहा ‘मलिक साहब, विश्वास रखिए।’ उसी शाम एक आरएसएस अधिकारी ने ‘सलाह’ दी कि राज्यपालों को सिर्फ औपचारिकताएँ निभानी चाहिए।”

आरएसएस नेता का प्रलोभन – ‘देशभक्ति की कीमत 300 करोड़’

अक्टूबर 2021 में झुंझुनू रैली में मलिक ने बताया: “एक आरएसएस संयुक्त सचिव मेरे कार्यालय में दो फाइलें लेकर आया। बिना अपॉइंटमेंट के। कहा – ‘मलिकजी, ये देशभक्ति की परीक्षा है। एक फाइल हाइड्रो प्रोजेक्ट की, दूसरी जमीन हस्तांतरण की। प्रत्येक के 150 करोड़।’ मेरे मना करने पर उस ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवादी’ ने धमकी दी – ‘नागपुर यह अपमान नहीं भूलेगा।'”

बिहार में राज्यपाल-मुख्यमंत्री टकराव

नीतीश कुमार के साथ भी सत्यपाल मलिक का संवैधानिक मुकाबला हुआ।

2017 में जब सत्यपाल मलिक बिहार के राज्यपाल बने, तो नीतीश कुमार ने सोचा होगा कि यह एक औपचारिक नियुक्ति है। पर मलिक ने राजभवन को जनता की आवाज़ का केंद्र बना दिया।

“राजभवन और सचिवालय के बीच की यह लड़ाई सत्ता और संविधान की लड़ाई थी।”

शराब घोटाला से लेकर भ्रष्टाचार तक (2018)

– मलिक ने नीतीश सरकार पर शराब माफिया को संरक्षण देने के आरोप लगाए
– एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा: “जब मैंने मुख्यमंत्री से इस पर सफाई माँगी, तो उन्होंने मुझे ‘राजभवन की सीमाएँ’ याद दिलाईं”
– नीतीश ने जवाब दिया: “राज्यपाल का काम संवैधानिक मर्यादाओं में रहकर काम करना है”

नियुक्तियों पर टकराव
– मलिक ने 12 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति रोक दी
– आरोप लगाया: “योग्यता नहीं, सत्ता के नजदीकी आधार पर चयन हो रहा है”
– नीतीश प्रशासन ने इसे “राज्यपाल का संविधान से ऊपर उठना” बताया

बिहार में भ्रष्टाचार के आरोप
– 2019 में मलिक ने एक बिल पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया
– कारण बताया: “इसमें खनिज संसाधनों की लूट का प्रावधान है”
– नीतीश समर्थकों ने प्रतिक्रिया दी: “राज्यपाल सरकार के कामकाज में दखल दे रहे हैं”

मलिक की मौत पर नीतीश कुमार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। पर बिहार के एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया:
“नीतीश जानते थे कि मलिक उनकी सरकार के कई दस्तावेज़ लेकर गए हैं। यह डर अब खत्म हो गया है।”

मोदी सरकार पर तीखे प्रहार:

मलिक ने 2022 के एक इंटरव्यू में कहा था:
“आज की केंद्र सरकार संविधान को ताक पर रख चुकी है। मैंने प्रधानमंत्री को सीधे कहा था – ‘सर, आपके मंत्री राज्यपालों को बाबू समझते हैं।'”

‘लोकतंत्र का दमघोंटू दौर’: मलिक के आरोप

1. संस्थाओं की गिरावट:
“राज्यपालों की नियुक्ति अब योग्यता से नहीं, वफादारी से होती है”

2. किसान आंदोलन पर:
“जब मैंने किसानों के पक्ष में बोला, PMO से फोन आया – ‘आपको संयम बरतना चाहिए'”

3. पुलवामा हादसे पर:
“सुरक्षा व्यवस्था की लापरवाही को ‘बलिदान’ बताकर राजनीति की गई”

उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए विपक्ष के नेता राहुल गाँधी ने कहा –
“जब संवैधानिक पदों ने रबर स्टैम्प बनना स्वीकार कर लिया था, सत्यपाल मलिक जी ने आज्ञाकारिता से ऊपर अपने शपथ को रखा।”

आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने कहा – “उन पर तो छानबीन हुई, पर आरएसएस के 300 करोड़ के घूस प्रस्ताव की जाँच क्यों नहीं हुई? यह चयनात्मक न्याय व्यवस्था का पर्दाफाश करता है।”

राज्यपालों के लिए आदर्श उदाहरण

उनके जीवन का सन्देश इतिहास में संवैधानिक पदों पर बैठने वाले लोगों के लिए एक आदर्श के रूप में हमेशा प्रासंगिक रहेगा। उनकी समाधि के पत्थर पर लिखा जाना चाहिए – “यहाँ वो शख्स दफन है जो मानता था कि राज्यपालों को आदेश मानने से पहले संविधान पढ़ना चाहिए।”

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 लेखक: ओंकारेश्वर पांडेय

लेखक नई दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार, अनेक पुस्तकों के रचयिता, रणनीतिकार और विदेश मामलों के जानकार हैं। ईमेल – editoronkar@gmail.com
WhatsApp – 9910150119
Mob – 9311240119

अस्वीकरण: इस फीचर में लेखक द्वारा व्यक्त किए गए विचार पूरी तरह से उनके अपने हैं और जरूरी नहीं कि वे आईएनवीसी के विचारों को प्रतिबिंबित करें


 

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