“सरहदों पर जो न मिटते हैं, वो कलम से लड़ते हैं, हम पत्रकार हैं हुज़ूर, जंग में भी ख़बर लिखते हैं।”
इस्राइली हमले के बावजूद कैमरे पर लौटीं बहादुर ईरानी एंकर “सहर एमामी”
तेहरान | 17 जून 2025
“आदाब-ओ-तहियात… मैं हूँ सहर एमामी… और इस वक़्त आप देख रहे हैं आईआरआईबी का ख़ास ब्रॉडकास्ट — आज फिर इज़राइली हमलों ने हमारे वतन को लहू-लुहान किया है… कई मासूम ज़ख़्मी हैं… और अफ़सोसनाक तौर पर, मौत की ख़बरें भी तस्दीक़ हो रही हैं… हम आपको दे रहे हैं ताज़ा-ओ-मुहिम ख़बरें, सीधा तेहरान से…”
यह शब्द उस वक्त गूंज रहे थे जब ईरान के सरकारी चैनल IRIB (Islamic Republic of Iran Broadcasting) की एंकर सहर एमामी लाइव बुलेटिन में थीं। कैमरा चल रहा था, बुलेटिन जारी था, और तभी…
एक ज़ोरदार धमाका — स्क्रीन थर्रा गई, कैमरा डगमगा गया। स्टूडियो की छत कांपी, और एक पल के लिए जैसे हर सांस थम गई।
यह एक इस्राइली मिसाइल हमला था — और वो भी ऐन उसी वक्त, जब सहर एमामी पूरी दुनिया को जंग की खबरें दे रही थीं।
सन्नाटा… फिर लौटी आवाज़
चंद लम्हों के लिए प्रसारण रुका, लेकिन सहर एमामी का हौसला नहीं। कुछ ही मिनटों बाद वही ऐंकर फिर कैमरे पर लौटीं — शायद कांपते हाथों से माइक संभाला हो, लेकिन आवाज़ में फिर वही स्थिरता, वही समर्पण।
“ये ऐंकर नहीं, हिम्मत की आवाज़ थी”
जब मिसाइलें गिर रही हों, दीवारें डोल रही हों, और फिर भी कोई सच को जनता तक पहुँचाने के लिए लौट आए — तो वो सिर्फ़ पत्रकार नहीं, ज़िंदा इतिहास होती हैं।
उनकी आंखों में डर नहीं था, बस जिम्मेदारी थी। उनके शब्द किसी हथियार से कम नहीं थे।
“ख़ामोशी भी चीख़ उठती है जब एक औरत हथियारों के बीच सच बोलती है।” — एक दर्शक की टिप्पणी
सहर — सुबह की पहली रौशनी
नाम के मुताबिक, सहर एमामी ने अंधेरे के बीच रौशनी की मिसाल पेश की। उन्होंने मिसाइलों की बारिश में भी पत्रकारिता का सूरज बुझने नहीं दिया।
“गर जवाब न दे सको, तो आवाज़ तो दो…”
सहर की आवाज़ वही जवाब थी।
ईरान की बेटी, जंग की रिपोर्टर
तेहरान के गलियों से लेकर सोशल मीडिया तक, हर ओर एक ही नाम था — सहर एमामी। लोग उन्हें कह रहे हैं:
- “ایران کی بیٹی” — ईरान की बेटी
- “جرأت کی آواز” — हौसले की सदा
“जब स्टूडियो बना रणभूमि, तब ऐंकर बनी आवाज़-ए-हक़” — फ़ैज़ान रिज़वी, वरिष्ठ पत्रकार
IRIB का बयान और सरकारी प्रतिक्रिया
IRIB ने आधिकारिक तौर पर सभी स्टाफ के सुरक्षित होने की पुष्टि की है। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, आपातकालीन प्रसारण योजना को तुरंत सक्रिय किया गया और प्रसारण जारी रखने की पूरी कोशिश की गई।
दुनियाभर की प्रतिक्रिया
- BBC: “ब्रॉडकास्टिंग इतिहास का असाधारण क्षण”
- The Guardian: “Iran’s Sahar defies bombs with a broadcast”
- Al Jazeera: “Courage has a name tonight — Sahar Emami”
पत्रकारिता की मिशाल
“शोर-ए-ग़ुल से न दब जाए कोई सदा-ए-हक़, हम वो सदा हैं जो तिलिस्म-ए-ख़ौफ़ तोड़ते हैं।”
सहर एमामी की वापसी सिर्फ़ हिम्मत नहीं थी, यह उस पत्रकारिता की मिसाल थी जहाँ एक औरत, एक कलमकार, एक रिपोर्टर, अपनी जान की परवाह किए बिना अपने फर्ज़ को पूरा करती है।
इतिहास की मिसाल — क्या इससे पहले कभी ऐसा हुआ है?
जंग के मैदान से लाइव रिपोर्टिंग नई बात नहीं, लेकिन इस तरह लाइव टेलीविज़न स्टूडियो पर मिसाइल हमला और फिर भी उसी ऐंकर का लौटना — यह दृश्य पूरी दुनिया में पहली बार देखा गया है।
- 2003: Reuters के मैज़ेन दाना की मौत बग़दाद में
- 2014: गाज़ा में सिनोमी कैंमीली और अली अबू अफ़ाफ़ की मौत
मगर 2025 की तेहरान की इस रात — वो अलग थी। क्योंकि इस रात कलम और कैमरा बमों से भी न डरे।
मध्य पूर्व में पत्रकारिता का खतरा
- CPJ रिपोर्ट (2024): 124 पत्रकार मारे गए, जिनमें 70% इस्राइल-गाज़ा युद्ध क्षेत्र से
- IFJ रिपोर्ट: मध्य पूर्व में 77 पत्रकारों की जान गई
- गाज़ा: अकेले 178 पत्रकार शहीद — 21वीं सदी का सबसे बड़ा ख़ूनख़राबा पत्रकारिता में
“ग़म-ए-हयात का क्या शिकवा करें, जब कलम चलती है तो बम भी थम जाते हैं।”
ईरानी महिला पत्रकारों की परंपरा
ईरान में महिला पत्रकारों ने सदियों से सत्ता, समाज और सेंसरशिप के सामने डटकर लिखा और बोला है। हिजाब के भीतर से भी आवाज़ें उठती रहीं — जो न्याय, अधिकार और स्वतंत्रता की मांग करती रहीं।
“हमारी आवाज़ें बंदूक़ों से बुलंद हैं।”
सहर एमामी — एक नाम नहीं, प्रतीक
उनकी वापसी एक पैग़ाम थी — कि पत्रकारिता सिर्फ़ पेशा नहीं, जिम्मेदारी है। और ये जिम्मेदारी तब सबसे बड़ी हो जाती है, जब हर लफ्ज़ मौत की नजर में हो।
“जला डालेंगे ज़ुल्म को अपने लफ़्ज़ों से, हम वो सहर हैं जो बग़ावत की पहली किरन होती है।”
Social Media पर #SaharEmami ट्रेंड कर रहा है। लाखों लोग उनकी बहादुरी को सलाम कर रहे हैं।
“वो जो कह दे सच्चाई बमों की गरज में, उसकी आवाज़ खुदा की ज़ुबान होती है…”
सहर एमामी आज एक रिपोर्टर नहीं, एक मशाल बन गई हैं — जो झुलसती ज़मीन पर भी सच का उजाला लेकर खड़ी हैं।
इस ग्राफिक में उर्दू में जो टेक्स्ट लिखा गया है, वह इस प्रकार है:
“جب میزائل گرے تب بھی وہ خبروں کی زباں بنی رہی۔۔۔”
“जब मिसाइल गिरे तब भी वो ख़बरों की ज़ुबान बनी रही…”
यह पंक्ति सिर्फ़ सहर एमामी नहीं, हर उस पत्रकार को सलाम है जो बमों की गूंज में भी सच्चाई की गूंज बनाए रखते हैं।
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लेखक ओंकारेश्वर पांडेय वरिष्ठ पत्रकार, रणनीतिकार, अनेक पुस्तकों के लेखक, विभिन्न अखबारों, टीवी चैनलों व डिजिटल मीडिया के पूर्व संपादक और यूनेस्को से संबद्ध थिंक टैंक –गोल्डेन सिगनेचर्स के संस्थापक हैं।
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