जब हम बाज़ार से कोई जानवर ख़रीदते हैं तो सबसे पहले उसकी नस्ल के बारे में पूछते हैं! जब हम बीज ख़रीदने जाते हैं तो भी बीज उन्नत-शील- नस्ल के बारे में पूछते है ं,लेकिन पूरे देश में जो करोड़ों की संख्या में पांच फ़ुट, साढ़े पांच फ़ुट के सांवले या काले रंग के पुरुष तथा साढ़े चार फ़ुट, पांच फ़ुट की महिला को देखते हैं तो आला दर्जे के ज़हीन आदमी से लेकर अनपढ़ व्यक्ति तक के मन में यह विचार क्यों नहीं आता कि आख़िर इसकी नस्ल कौन-सी है ? इस देश में जब विदेशी आक्रमणकारियों, क्रमशः सिकन्दर, महमूद,गज़नवी, नादिरशाह आदि के आक्रमण हुए – वे मात्र इस देश की धन दौलत, जानवर, घोड़े,हाथी, गाय, बकरी,भेड़ आदि की लूट के लिए हुए ! इसके बाद वे अपनी सेना सहित वापिस लौट गए ! लेकिन सम्राट बाबर ने दिल्ली का ताज़ जीतने और देश का बादशाह बनने के बाद, इस देश में ही परिवार सहित रहने का मन बनाया ! इसके बाद सम्राट अकबर के कालखंड में गंगा-जमुनी संस्कृति का -उदय!
आक्रमणकारी राजाओं की तलवार के आगे लाखों हिन्दुओं ने धर्म-परिवर्तन किया लेकिन तैमुर लंग, नादिरशाह की बर्बरता के साथ इस देश के लोंगों को सम्राट अकबर जैसा रहमदिल तथाहिन्दू-मुस्लिम के बीच सच्ची एकता कायम करने वाला एक अनोखा बादशाह भी मिला !सोचने की बात यह है कि अफ़गानिस्तान या अन्य दूसरे देशों से जितने भी आक्रमणकारी आये, उनकी तथा उनकी कौमों के जवानों की नस्ल कैसी थी ? वे सात फ़ुट ऊँचे कद वाले गोरे-चिट्टे लोग थे ! उस कद काठी व रंग-रूप के इंसान, कहीं आज दिखाई पड़ते हैं तो वह
उस कद काठी व् रंग-रूप के इंसान, कहीं आज दिखाई पड़ते हैं तो वह पंजाब प्रदेश में सरदार तथा कश्मीर प्रदेश में कश्मीरी हैं ! तो बाकी औसत कद-काठी तथा सामान्य रंग-रूप के करोड़ों मुसलमान हिन्दू कहाँ से आये ? निश्चित रूप से सब भाई-भाई हैं ! उनका खून एक है ! सवाल यह है कि हिन्दू-मुस्लिम के बीच वैमनस्यता और नफरत के बीज किसने बोए ? उत्तर एकदम साफ़ है राजनीति ने ! सबसे पहले अंग्रेज सरकार ने हिन्दू-मुस्लिम को लड़वाकर नफ़रत के बीज बोए ! राजनीति ने, कुर्सी व् पद की चाहत में, भारत देश का वर्ष 1947 में बंटवारा कराया ! उस समय के नेताओं ने दोनों देशों के लोगों को आपस में भाई-भाई का रिश्ता महसूस कराने और उन्हें एक दूसरे से जोड़ने के बजाय उनको अपनी सत्ता और कुर्सी के लिए आपस में लड़ाना शुरू किया ! भारत पाकिस्तान के बँटवारे के समय दोनों आज़ाद मुल्कों में हिन्दुओं-मुसलमानों का क़त्ल-आम हुआ ! यह सब तो अंग्रेजों की राजनीति के कारण हुआ, लेकिन आज़ादी के 67 साल बाद भी सभी राजनैतिक पार्टियों के नेताओं ने इसे सत्ता पाने का मूलमन्त्र समझ लिया जिसके चलते आज़ादी के 67 साल में लाखों हिन्दू-मुस्लिम दंगे राजनीतिज्ञों ने योजनाबद्ध तरीक़े से कराये ! जिसके कारण यहाँ लाखों हिन्दू-मुस्लिम, निर्दोष लोगों की जान गई ! वहीँ अरबों-खरबों की संपत्ति की लूट खसोट की गई या फिर या फिर उसे जला कर रख कर दिया गया ! हमें सोचने की जरुरत है कि आख़िर इन दंगों से किस का लाभ हुआ ? निश्चित रूप से सिर्फ राजनीतिज्ञों का !
ज्यादा नहीं, सिर्फ हम 50-60 वर्ष पहले के गावों का स्मरण करें तो दृश्य बिल्कुल साफ़ नज़र आता है कि यदि किसी हिन्दू परिवार की जवान लड़की बिना कारण घर के बाहर खड़ी दिखती थी तो बिना किसी खौफ़ के कोई बुजुर्ग मुसलमान डांटकर उसे घर के भीतर जाने को कह देता था, क्यों कि हिन्दू मुसलामानों के बीच चाचा, ताऊ, भाई, चाची आदि के स्वाभाविक रिश्ते थे !
आज किसी गाँव या शहर के किसी मोहल्ले में कोई कल्पना कर सकता है कि कोई हिन्दू या मुसलमान बुजुर्ग दूसरे वर्ग की जवान लड़की को उसी तरह डांट सकता है ! अब तो इतनी-सी बात में दंगा-फ़साद हो जायेगा !
हमारे देश में नफ़रत के बीज जो बरसों पहले बोए पना पल्ला झाड़ लेते हैं ! इस साज़िश से दोनों वर्गों के लोगों को न केवल सावधान रहना होगा, बल्कि ऐसी ताक़तों के ख़िलाफ़ गोलबंद होना होगा !
दूसरी तरफ़ बाहरी मुल्कों में क्या स्थिति है, देंखें ! मुझे याद है वर्ष 1992-93 में, जब ‘जनसत्ता’ मुंबई में रिपोर्टर के रूप में काम करता था ! उस समय ‘मलाड-ईस्ट’ (मुंबई) में रहने वाले जब्बार खान ट्रक ड्राइवर तथा मुमताज़ खान राजगीर मिस्त्री ने इराक़ से लौटकर बड़ी तकलीफ़ भरी आवाज़ में बताया था कि हम वहां से पैसा ज़रूर कमा लाये लेकिन इराक़ में हमें शहर से 30-35 किलोमीटर दूर रखा जाता था ! वे हमें ‘हिंदी’ (यानि हिन्दुस्तानी) मुसलमान मानते थे ! उन्हें डर था कि यदि हमें शहर में उनके साथ ठहराया जायेगा तो उनका ‘रॉयल ब्लड’ ख़राब हो जायेगा ! इतना ही नहीं, आज भी इराक़, ईरान और अरब मुल्कों में भारतीय, बंगलादेशी तथा पाकिस्तान के मुहाजिर मुसलमानों को ‘हिंदी मुसलमानों’ के रूप में देखा जाता है ! जब बाहरी देशों में हमें हिंदी-मुसलमान कहा जाता है, कनवरटीड मुसलमान के रूप में देखा जाता है तो समय की माँग है कि हम सभी हिन्दू-मुस्लिम भाई-बहन इस अकाट्य तथ्य को समझें कि हम सब भारत माता की संतान हैं ! हमारा रूप-रंग क़द-काठी, नस्ल सब एक है ! सबसे बड़ी बात ये हमारे खून का रंग और रिश्ता एक हैं !
यदि हम राजनीतिज्ञों की हिन्दू-मुस्लिम जैसे दो सगे-भाइयों को आपस में लड़ाने की, उनकी सत्ता और कुर्सी की राजनीति को समझ पाए तथा ऐसे राजनीतिज्ञों के विरूद्ध हम हिन्दू-मुस्लिम गोलबंद हुए तो महात्मा गाँधी, चंद्रशेखर आज़ाद, अशफाक़उल्ला खां, खुदीराम बोस, ऊधम सिंह, जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया जैसे नेताओं तथा उस्ताद तानसेन, बैजू बावरा, अकबर अली खां, पं. रविशंकर, पं. भीमसेन पं. जसराज बिरजू महाराज सोनल मानसिंह जैसे कलाकारों और डॉ. इक़बाल, दद्दा मैथली शरण गुप्त, गीतकार प्रदीप, गोपालदास नीरज, फ़िराक गोरखपुरी, महाप्राण निराला, मुंशी प्रेमचंद, बाबा नागार्जुन, दुष्यंत कुमार आदि साहित्यकारों के सपनों का भारत बना पायेंगे, जहाँ हिन्दू-मुस्लिम अपने को एक खून और खानदान समझें !
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वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘फेलो यू.पी. इलेक्शन वाच’
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# लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं