कविताएँ
1. कैसे वोट बैंक बढ़ाऊँ?
(हास्य कविता)
मुझे तो बस यही चिंता सत्ता रही
की बजी अब चुनाबी घंटी
मैं कैसे अपना वोट बैंक बढ़ाऊँ
सत्ता की गलियारों में फिर कैसे ऊधम मचाऊँ?चुनावी घोषणापत्र में
कितने अच्छे-अच्छे ऑफर
कोई ऑफर छूटे तो नहीं
भोली-भाली जनता को कैसे समझाऊं?फ्रीवाला ऑफर तो बहुत हो लिया
क्या करूँ? जो इनको ललचाऊँ
वोट सिर्फ मुझे ही देना भाई
हर किसी को यही बात समझाया.हम तो पहुँचे ही थे अभी
चुनावी ऑफर लेकर जनता के पास
इतने में ओ विपक्षी भी आ धमके
2. हमें झूठा बतलाकर, अपनी हवा-हवाई में लगे.
मैं उसे, वो मुझे झूठा कह रहा
चुनावी भाषणो से जनता को लुभा रहा
इन लुभावने घोषणाओं से कैसे भरमाऊँ?
मैं कैसे अपना वोट बैंक कैसे बढ़ाऊँ?जनता का कुछ भला नहीं
सिर्फ़ दिखावे के रंग-बिरंगे घोषणाएं
कुर्सी पे क़ाबिज़ हो सकूँ कैसे?
नेता हूँ, समझो हमारी भी जनभावनाएं.हर एक का विकास करूँगा
सिर्फ़ कहता, पर करता कभी नहीं
सत्ता मिले तो, कैसे अपनी सम्पति बढाऊँ?
मैं कैसे अपना वोट बैंक बढ़ाऊं?
3.हाई रे मेरी तोंद
(हास्य कविता)
उफ़ हाई रे मेरी तोंद
ये कितनी हिलती डुलती है
सेक्रेटरी से कितनी बार पूछा
चल ये बता क्या, ये दिखती भी है?
डरते डरते उसने इतना बताया
जनता सालों-साल तक लुटती है
बम्बई के शेयर बाज़ार की तरह
आपकी तोंद दिनोदिन कितनी चढ़ती है.
तो फिर तूँ ही बता
इस तोंद का मैं क्या करूँ?
इतने खर्च जो किये चुनाव लड़ने में
फिर मैं अपनी जेब ना भरूँ?
सेक्रेटरी को कितना समझाया
की इस तोंद के चर्चे ही मत किया कर
जनता को सिर्फ इतना बता
भ्रष्टाचार नहीं, कब्ज़ियत से ये ऐसी दिखती है.
मंत्रिपद मिलते ही मनो मुझको
मेरी तोंद में गुड़गुड़ाहट होने लगती
सरकारी ख़जाने पर कैसे हाथ साफ़ करूँ
यही तो हर पल चिंता रहती है.
भ्रष्टाचार के कई मिक्सचर मसाले
हमारी इस तोंद में भड़े-पड़े हैं
उजले कुर्ते से कितना इसको ढके रखा
फिर भी जनता देख ही लेती है
जनता भी कितनी अवल्ल दर्ज़े की वेबकूफ
जनसेवक बना हमें पार्लियामेंट भेजती है
हम तो अपनी सेवा में सरेआम रहते
क्या करें “किशन” ये तोंद इतनी हिलती डुलती क्यों है?
4. किसे फुर्सत है?
हर कोई भाग रहा किसे फुर्सत है?
शहर बन गया है तमाशाबीन
कोई दर्द से चीखता-कराहता
पर कोई करता तक धिनाधीन.कोई दौलत के पीछे तो
हर कोई शोहरत के पीछे
बेहताशा इस क़दर भाग रहा
की किसे फुर्सत है?इस भागम-भाग में तो लोग
अपने आप को भूल गए
रिश्ते-नाते सब ईधर-उधर
रिश्तों की मर्यादा टूटकर बिखर गए.बेशुमार दौलत की चाहत में
कुछ भी करने को तैयार
अब तो फ़र्ज़ अदायगी भी याद नहीं
कौन समझे, किसे फुर्सत है?बिकास की अंधी दौर में हम
प्रकृति को ही छेड़ बैठे
प्राकृतिक बिपदा दस्तक दे रही
फिर भी न सोचे, किसे जरूरत है?मनुष्य अपने ही बिनाश को है बेताब
वेबजह भी, हर कोई भागम-भाग
प्रकृति के साथ चलने में ही भलाई
मगर कौन सोचे, किसे फुर्सत है?अपनेपन की बजाय, अब तो लोग
फ़िल्मी ठुमको में खुशियाँ तलाशते
आस-पड़ोस के हँसी-ठहाके सब गायब
लाफ्टर और कॉमेडी नाईट से जी लेते.क्या हो गया उन सभी को?
अपने ही सामजिक कर्तब्य भूलकर
मनुष्य और मानवता सब पीछे छूटे
“किशन” किससे कहे, किसे फुर्सत है?
5. बूढा बरगद का पेड़ बोलामेरी ही टहनियों को काटकर
छाँव की तलाश में भटक रहे लोग
कराहते हुए कहीं यहीं पर जैसे
बूढा बरगद का पेड़ बोला.कुछ याद है “किशन” की सभ भूल गए?
अपने दादाजी की अंगुलियाँ थामे
मुझसे मिलने तुम भी आते
वो मुझसे और तुम चिड़ियों से बतियाते.मेरी डाल पे बैठे
वो चिड़ियों की टोली
हम सभी अरोसी-पड़ोसी बन जाते
बतियाते और कितनी खुशियां बाँटते.तुम सभी ने काट दी मेरी टहनियाँ
अब उन चिड़ियों के घर भी उजाड़ दिए
दर्द से कराह रहा मैं कब से
पर कोई नहीं सुनता.अब कोई भी ईधर को नहीं आता
न ही कोई पेड़ लगाता
कराहते हुए यहीं पर जैसे
बूढा बरगद का पेड़ बोला.ठंडी हवा, मीठे फल, धूप-छाँव
सब कुछ मैं तुम सबको देता
खुद जहरीला कार्बन पीकर रह लेता
पर शुद्ध ऑक्सीजन सभी को देता.फिर भी अंधाधुंद बृक्षों को काट रहे
प्रकृति की दी हुई चिजें उजाड़ रहे
पर्यावरण सरंक्षण की कौन सोचे?
बूढा बरगद का पेड़ बोला.
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किशन कारीगर
लेखक व् कवि
शिक्षा पीएच.डी, एमएमसी(मास कम्युनिकेशन),एम्.एड,बी.एड, पि.जी.डिप्लोमा(रेडियो प्रसारण)
मैथिली/हिंदी/ बांग्ला मे किशन कारीगर उपनाम से लेखन। हिंदी/मैथिली मे लिखित नाटक आकाशवाणी से प्रसारित। दर्जनो हास्य कथा, कविता, लघु कथा और राजनीतिक आलेख, विभिन्न पत्र पत्रिका मे प्रकाशित। विभिन्न प्रिंट/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संगठन जैसे -(हमार टिभी, चैनल१, टीवी १००, दूरदर्शन,खोज इंडिया, अमर भारती, पंजाब केसरी) मे कार्यानुभव, वर्तमानमे आकशवाणी दिल्ली मे संवाददाता पद पर कार्यरत और मिथिलांचल टुडे (मैथिलि पत्रिका) के (संस्थापक-संपादक)।
प्रकाशित कृति- किछु फुरा गेल हमरा (काव्य संग्रह), ठहक्का (हास्य कथा संग्रह)
शीघ्र प्रकाश्य- हिंदी में – किसे फुर्सत है (काव्य संग्रह), हाई मेरी तोंद (हास्य कथा संग्रह)
मैथिलि में- सिंगार-पेटार (ग़ज़ल संग्रह), किछु कहब- किछु सुनब (काव्य संग्रह) बांग्ला में- मोनेर कोथा (काव्य
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