अनंत कन्फ्यूज्योलॉजी के राजडियटों को समर्पित कविता : आखिर वे क्या हैं ? – पार्ट -2

Dr. DP Sharma
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डॉ डीपी शर्मा “धौलपुरी” की बारूदी कलम से कविता : आखिर मैं क्या हूं?

 

डॉ डीपी शर्मा “धौलपुरी” की बारूदी कलम से

 

वे मूर्ख तो हैं, मगर मूर्खता उनके भीतर नहीं, इसलिए वे मूर्खतावादी नहीं !
तो क्या वे महामूर्खतावादी हैं?

 

वे राजनीतिज्ञ तो हैं, मगर राजनीति उनके भीतर नहीं, इसलिए वे राजनीतिवादी नहीं !
तो क्या वे महामूर्खतावादी हैं?


वे भ्रमित तो हैं, मगर भ्रमता उनके भीतर नहीं, इसलिए वे भ्रमतावादी नहीं !
तो क्या वे महामूर्खतावादी हैं?

 

वे धार्मिक तो हैं, मगर धार्मिकता उनके भीतर नहीं, इसलिए वे धार्मिकतावादी नहीं !
तो क्या वे महामूर्खतावादी हैं?

 

वे पढ़ते तो हैं, मगर पठनशीलता उनके भीतर नहीं, इसलिए वे पठनशीलतावादी नहीं !
तो क्या वे महामूर्खतावादी हैं?

 

वे हिंदुस्तानी तो हैं, मगर हिंदुत्व उनके भीतर नहीं, इसलिए वे हिंदूवादी नहीं !
तो क्या वे महामूर्खतावादी हैं?

 

वे वफादार तो हैं, मगर वफादारी उनके भीतर नहीं, इसलिए वे वफादारवादी नहीं !
तो क्या वे महामूर्खतावादी हैं?

 

वे गद्दार तो हैं, मगर गद्दारी उनके भीतर नहीं, इसलिए वे गद्दारवादी नहीं !
तो क्या वे महामूर्खतावादी हैं?

 

वे मानव तो हैं, मगर मानवता उनके भीतर नहीं, इसलिए वे मानवतावादी नहीं !
तो क्या वे महामूर्खतावादी हैं?

 

वे महान तो हैं, मगर महानता उनके भीतर नहीं, इसलिए वे महानतावादी नहीं !
तो क्या वे महामूर्खतावादी हैं?


वे ज्ञानी तो हैं, मगर ज्ञानता उनके भीतर नहीं, इसलिए वे ज्ञानतावादी नहीं !
तो क्या वे महामूर्खतावादी हैं?

 

वे संवेदनशील तो हैं, मगर संवेदनशीलता उनके भीतर नहीं, इसलिए वे संवेदनशीलतावादी नहीं !
तो क्या वे महामूर्खतावादी हैं?

 

वे देशभक्त तो हैं, मगर देशभक्ति उनके भीतर नहीं, इसलिए वे देशभक्तिवादी नहीं !
तो क्या वे महामूर्खतावादी हैं?

 

आखिर वे हैं क्या?

 

वे क्या हैं?
वे क्या नहीं हैं?
यह तो अज्ञात!
मगर इतना सच है कि वे
मूर्खों में भी मूर्खश्रेष्ठ,
महामूर्खतावादी हैंं!

 

परिचय – :

डॉ डीपी शर्मा ( डॉ डीपी शर्मा धौलपुरी )

 परामर्शक/ सलाहकार
अंतरराष्ट्रीय परामर्शक/ सलाहकार
यूनाइटेड नेशंस अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन
नेशनल ब्रांड एंबेसडर, स्वच्छ भारत अभियान

Disclaimer – :  मेरे जज्वात व शब्दों से हैरानी होगी मगर भाव, भाषा और मन का भारीपन तो                             दिल की गहराइयों से निकलता है।
                   -:  कविता या मिसरों का किसी जीवित अथवा दिवंगत शख्स से कोई वास्ता नहीं है।

 
 

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