-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी –
मुहब्बत करेगी असर धीरे-धीरे। जी हाँ थोड़ा सब्र करिए जल्दबाजी से कोई परिणाम नहीं मिलने वाला। जब अच्छे दिनों के लिए मोदी जी को पी.एम. बनाया है तब उसका असर तो दिखेगा ही। क्षमा चाहूँगा मैं मोदी विरोधी नहीं हूँ, फिर भी जो कुछ बीते 11 महीनों से देख रहा हूँ उससे आभास होने लगा है कि मोदी से मुहब्बत करने का असर धीरे-धीरे पड़ने लगा है। कहने को मोदी जी भाजपा से सम्बन्ध रखते हैं। काँग्रेस से ऊबे लोगों ने उनसे मुहब्बत कर लिया। आखिर करते भी क्या पुरानी चीजें जब उबाऊ होने लगती है, तब लोगों को नई का स्वाद चखने की इच्छा हो आती है। 11 माह पूर्व जिस तरह से मोदी जी ने अपने व्यक्तित्व की आँधी चलाई थी, उसके प्रभाव से पुराने वट वृक्ष उखड़ गए और फिर मोदी की बागवानी लहलहाने लगी।
खैर! जो हो गया सो हो गया। परिणाम क्या हुआ- अच्छे दिन आ गए। किसके? हमारा कहना है मोदी जी के। पहले जानकार विरोधियों का कहना था कि मोदी जी के इर्द-गिर्द उद्योगपतियों की भरमार है। बड़े-बड़े औद्योगिक घराने मोदी जी के हमदर्द हैं, तब देश के लोग इसे राजनीतिक स्टंट कहा करते थे। इस कथन को बोलचाल की भाष में विरोधियों का प्रलाप कहा जाता था। धीरे-धीरे करके चुनाव के दौरान कही गईं बातें खुलने लगीं, उन पर से पर्दा उठने लगा है। भारत देश कृषि प्रधान देश है। किसानों का प्रतिशत 80 है। उनकी जमीनें छीनी जाने लगीं, सस्ते मुआवजे की एवज में उन्हें सरकार द्वारा अधिग्रहीत करके औद्योगिक घरानों को दी जाने लगीं। शुरू हो गया आन्दोलन, लेकिन अच्छे दिन आने की बातें कहकर किसानों को चुप कराया जाना शुरू हो गया। आन्दोलन थमने लगा और फिर शुरू हो गया किसानों पर प्रकृति का कहर। यह कहर क्या रहा? जैसे अग्निकाण्ड, जल व ओलावृष्टि तथा भूकम्प आदि। फिर भी किसान मरते हुए यह गाता रहा कि- क्या-क्या न सहे हमने सितम आपकी खातिर, अब जान भी जायेगी सनम आपकी खातिर….. मोदी सरकार की जय।
मोदी सरकार 26 मई 2014 को पदारूह हुई, तब से अब तक केन्द्र सरकार द्वारा अनेकानेक कार्य किए गए जिसकी चर्चा हर आम-खास में होती रही। मोदी सरकार गठन के पूर्व ही दिल्ली में विधान सभा चुनाव हुए थे, जिसमें एक ईमानदार छवि के अरविन्द केजरीवाल का व्यक्तित्व उभर कर लोगों के सामने आया, वह दिल्ली के सी.एम. बने, जिसे उनके विरोधियों ने सहज रूप से नहीं अपनाया। परिणाम यह रहा कि केजरीवाल ने केन्द्र सरकार के असहयोगात्मक रवैय्ये से क्षुब्ध होकर दिल्ली के सी.एम. पद से इस्तीफा दे दिया, नतीजा यह रहा कि कई महीनों तक दिल्ली की विधानसभा भंग रही। बाद में पुनः चुनाव हुआ और प्रचण्ड बहुमत से केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दिल्ली में सत्तारूढ़ हुई और फिर से अरविन्द जैसा ईमानदार व्यक्ति सी.एम. बना।
केजरीवाल का सी.एम. बनना फिर से विघटनकारी तत्वों को रास नहीं आया। ‘आप’ के नेताओं ने ईमानदार केजरीवाल का विरोध करना शुरू कर दिया, इसके बावजूद वह अपने पद पर डटे रहकर जनहितार्थ कार्यों को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। केजरीवाल जैसे ईमानदार छवि वाले राजनेता का विरोध क्यों हो रहा है? यह प्रश्न शोचनीय ही है। मीडिया में तरह-तरह की खबरें आती रहती हैं। दिल्ली की जनता वहाँ के लोग मीडिया की खबरों को नजरन्दाज करते हुए पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल से केजरीवाल सरकार के कार्यकाल में बेहतर जीवन जीने का यहसास कर रही है।
भ्रष्टाचार जो इस देश के हर वर्ग में व्याप्त है का समापन दो-चार महीने मे नहीं होने वाला। केजरीवाल का कार्यकाल अभी लम्बा है। समझदार लोगों को प्रतीक्षा करनी चाहिए। एक बात अवश्य चौंकाने वाली है, जो आप के संस्थापक सदस्य रहे हैं, वह क्यों सी.एम. केजरीवाल का विरोध कर रहे हैं…? क्या यह समझा जाए कि ये लोग किसी ईमानदार व्यक्ति को सहज रूप से पचा नहीं पा रहे हैं, या फिर कोई और कारण है…?
दिल्ली जैसे प्रदेश में जो देश की राजधानी में रहने वालों को कोई आपत्ति नहीं है। वे केजरीवाल जैसे सी.एम. की कार्यप्रणाली से राहत महसूस कर रहे हैं। उन्हें विश्वास है कि वर्तमान केजरीवाल सरकार में उनकी समस्याओं का अन्त होगा। ऐसे में सी.एम. केजरीवाल का विरोध करने वाले लोगों को किस बात से नाराजगी है, क्या वे नही चाहते कि भ्रष्टाचार का समापन हो और दिल्ली के लोगों को बेहतर प्रशासन मिले?
दिल्ली से भ्रष्टाचार खत्म होना शुरू हो गया है कि नहीं, इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं है, फिर भी यहाँ रहने वालों के मुँह से सुना है कि केजरीवाल सरकार जनहितार्थ कार्यों के प्रति कटिबद्ध है। दिल्ली की बात जब शुरू शुरू होती है तो भारत की राजधानी में स्थित देश की महापंचायत और उसके सदस्यों तथा पी.एम. की बरबस याद आने लगती है। इतिहास गवाह है कि दिल्ली की कुर्सी के लिए क्या कुछ नहीं हुआ है। मुगलकाल से लेकर वर्तमान तक हर महत्वाकाँक्षी व्यक्ति की नजरें दिल्ली के तख्तोताज पर ही टिकी रही है।
देश आजाद है, इसके बच्चा-बच्चा जानता है। मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं लोगों की जुबान पर है। वह देश की जनता के लिए क्या कर रहे हैं इसका भी प्रायः जिक्र हुआ करता है। वह किसानों, आम आदमियों के कितने हितैषी हैं, अभी यह तस्वीर धुँधली नजर आ रही है। किसानों को भूमिहीन किया जा रहा है, किसान आन्दोलित है, आत्महत्याएँ कर रहे हैं, यह जगजाहिर होने लगा है। भाजपा शासित राज्यों से लेकर गैर भाजपा सरकार वाले प्रान्तों की हालत कितनी बदतर है…? इस पर नित्य बहस होती है। लोगों का कहना है कि मोदी ऐसे डाक्टर की तरह हैं, जो मर्ज की जगह मरीज को ही खत्म कर रहे हैं।
इन्टरनेट के युग में गरीब से लेकर अमीर तक की स्टेटस आनलाइन होने लगी है। विज्ञान की इस तरक्की से वह दिन दूर नहीं जब लोगों का शरीर विकलाँग हो जाएगा। यदि आनलाइन का प्रचलन इसी तरह तेजी पर रहा तो देश का प्रत्येक नागरिक नाकारा हो जाएगा, और मोदी सरकार ने किसानों/आम लोगों को रोजी-रोटी का मोहताज बनाने के लिए यह प्रयास शुरू कर दिया है। ऐसा करके वो देश को विकासशील, विकसित की जगह अतिविकसित की श्रेणी में लाना चाहते हैं, जो शायद इस देश के रीतिकाल से मेल नहीं खाता।
बहरहाल! वोटर कार्ड, राशनकार्ड, आधार कार्ड, पैन कार्ड, स्मार्ट कार्ड, हेल्थ कार्ड, ग्रीन कार्ड, किसान क्रेडिट कार्ड, टिन कार्ड……..आदि ऐसे अनगिनत कार्डों को आनलाइन बनाने का प्रचलन शुरू हो गया है, लोग सब कुछ छोड़कर पहले इन कार्डों को बनवाना अवश्यक समझ रहे हैं। उनमें दो तरह की उत्सुकता है- एक यह कि इन कार्डों के बन जाने से मोदी सरकार से आर्थिक लाभ मिलेगा, दूसरे यह कि यदि नहीं बन पाया तो वह लोग इस देश की नागरिकता से भी वंचित हो सकते हैं। आनलाइन कार्यों में बिचौलियों की चाँदी कट रही है।
आनलाइन आवेदन का सीधा सा मतलब है कि इन्टरनेट पर आवेदन-पत्र भरा जाए और तदनुसार उसमें माँगी गई औपचारिकताएँ पूरी कर ली जाएँ। फिर प्रतीक्षा करें आप के ‘आनलाइन’ भरे हुए ‘कार्ड्स’ कब मिलते हैं। इसे कोई भी नहीं बता सकता। आधार कार्ड बनवाने का जो दौर चला था वह अभी भी खत्म नहीं हुआ है, लेकिन बजरिए डाक सेवा किसी को भी आधारकार्ड नहीं मिल सका है, सभी ने इन्टरनेट से पैसे खर्च करके प्रिण्ट निकलवाया है।
दो दशक पूर्व भारत के निर्वाचन आयोग ने सर्वमान्य ‘पहचान-पत्र’ बनवाना अनिवार्य किया था, जिसका नाम है, मतदाता पहचान-पत्र। प्रतीत हो रहा है कि वर्तमान सरकार में उसकी उपयोगिता बेमानी हो जाएगी। इस समय प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत बगैर कुछ दिए बैंकों में शून्य बैलेन्स से खाता खुलवाने के लिए भीड़ उमड़ रही है। लोगों का कहना है कि मोदी सरकार उन्हें मुफ्त में बीमा और अच्छा खासा आर्थिक इमदाद देने वाली है। भीड़ से बचने के लिए प्रत्येक बैंक ने अलग से व्यवस्था कर रखा है, जहाँ लोग जन-धन योजना का लाभ उठाने की लालसा लिए अपना बैंक खाता शून्य बैलेन्स से खुलवा रहे हैं। देखना है कि क्या हश्र होगा….?,
कार्ड्स इतने लेकिन पेट भरने, तन ढकने और रात बिताने की कोई व्यवस्था नहीं। राशनकार्ड्स के बावजूद कार्ड धारकों को खाद्यान्न उपलब्ध नहीं। एक योजना और भी ज्यादा प्रचलन में है वह है कन्या समृद्धि योजना, इसमें हर पुत्री के माँ-बाप को डाकघर या बैंक में एक खाता खुलवाकर प्रतिमाह एक हजार रूपए जमा करने हैं। डाकघर के नियमानुसार कन्या की समृद्धि के लिए बनाई गई इस योजना में 14 वर्ष तक कुल 1 लाख 68 हजार जमा करने पर कन्या के ब्याह तक कुल 6 लाख रूपए माँ-बाप को मिलेगे। बैंकों में कन्या समृद्धि के लिए संचालित कई तरह की योजनाएँ हैं…..आदि…आदि।
सरकारी इमदाद इस महँगाई में बरनॉल का काम करती है। इसी लिए लोग इस तरह के सरकारी प्रलोभन के वशीभूत घर का पैसा- जिसे वह कभी गुप्त रखा करते थे अब सार्वजनिक कर दे रहे है। मुझे तो आशंका है कि कही किसानों की जमीनों की तरह इनके पैसों पर भी सरकार अपना अधिकार न जमा ले। नित्य नई परियोजनाओं का शिलान्यास हो रहा है, फिर भी ढिंढोरा पीटने के बाद भी सरकार पर्याप्त बिजली नहीं दे पा रही है। एन.टी.पी.सी. सड़क एवं आवासीय कालोनियों के निर्माण हेतु लोगों की जमीनें कौड़ियों के मोल सरकार अधिग्रहीत कर ले रही है, जिसे अपने चहेतों को सस्ते में देकर आपसी मैत्री प्रगाढ़ तो कर ही रही हैं, साथ ही कई पति भी बनती जा रही है। क्षमा चाहूँगा जैसा कि सुना है- मोदी जी तो एक पति भी नहीं हैं, तब उनमें लखपति, करोड़पति या अरब होने की तमन्ना कैसे जागेगी?
बावजूद इन सबके मुझ जैसे लोगों के मुँह से बरबस ये पंक्तियाँ निकलने लगी है- पिया तोसे नैना लागे रे, लागे रे…….जाने क्या होगा अब आगे रे……। सीधे-सीधे यह कहूँगा कि मोदी जी से की गई मुहब्बत का असर धीरे-धीरे हो रहा है, आगे-आगे देखते जाइये और क्या-क्या होता है। ना राम ना रहीम, न गॉड, वाहे गुरू और न ही करतार, अपने तो प्रिय हैं मोदी सरकार।
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डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
वरिष्ठ पत्रकार/टिप्पणीकार
रेनबोन्यूज प्रकाशन में प्रबंध संपादक
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##**लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।