अब तो बंद करवा दो इन लाऊडस्पीकर्स को…

–  निर्मल रानी –

nirmalraninirmal-rani-invc-news,author nirmal raniमानव हत्याओं का तो हमारे देश से आदिकाल से ही गहरा नाता है। हमारे धर्मशास्त्र तमाम प्रकार के युद्ध और मानव हत्याओं की घटनाओं के िकस्सों से भरे पड़े हैं। हम बड़े गर्व से इस धरती को महाभारत की धरती भी बताते हैं। और यह सिलसिला आज तक जारी है। कहीं आतंकवाद के नाम पर तो कहीं देश की सीमाओं पर,कहीं धर्म व जाति के नाम पर कहीं सांप्रदायिक दंगों के रूप में मानव हत्याएं होती है। तो कहीं बदहाली व गरीबी या कजऱ् से तंग कोई किसान या मज़दूर खुद ही आत्महत्या कर बैठता है। कभी नक्सली व माओवादी घटनाओं में या इनसे होने वाली मुठभेड़ों में अनेकानेक जवान शहीद हो जाते हैं। परंतु आज के दौर में  घटित होने वाली ऐसी सभी घटनाएं या तो समाचार पत्रों में स्थान नहीं ले पातीं या फिर जनता ऐसी घटनाओं को बहुत जल्द भुला देती है।  परंतु कुछ घटनाएं ऐसी भी होती हैं जिनकी धमक लंबे समय तक न केवल देश में गूंजती रहती है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी यह खबरें विदेशी मीडिया व विदेशी नेताओं यहां तक कि हमारे देश में आने वाले पर्यट्कों का ध्यान भी आकर्षित करती हैं।

पिछले दिनों दिल्ली के निकट दादरी के बिसाहड़ा गांव में अखलाक अहमद नाम के एक अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति की भीड़ द्वारा पीट-पीट कर की गई हत्या का मामला ऐसी ही एक घटना है जिसने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। मृतक अखलाक अहमद का पुत्र भारतीय वायुसेना में अधिकारी है। इस घटना के वैसे तो कई राजनैतिक,सामाजिक व सांप्रदायिक पहलू हैं जिनपर इन दिनों देश में चर्चा छिड़ी हुई है। परंतु इन सबसे अलग इसी घटना से जुड़ा एक ऐसा पहलू भी है जो इसके पूर्व भी देश की कई इसी प्रकार की भडक़ाऊ घटनाओं में समान रूप से शामिल रहा है। और वह है दादरी की घटना में लाऊडस्पीकर के प्रयोग की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका का होना। इससे 2 वर्ष  पूर्व ऊत्तर प्रदेश के मुज़फ्फर नगर में भडक़ाए गए दंगों में भी भीड़ को उकसाने के लिए लाऊडस्पीकर का खुला इस्तेमाल किया गया था। मुरादाबाद के कांठ क्षेत्र में भी लाऊडस्पीकर को लेकर सांप्रदायिक तनाव फैल चुका है। देश में अनेक ऐसी घटनाएं हैं जिन्हें लाऊडस्पीकर की सहायता से अंजाम दिया गया है। सवाल यह है कि क्या 1861 में वैज्ञानिक जॉन िफलिप द्वारा लाऊडस्पीकर का अविष्कार इसी उद्देश्य से किया गया था कि इनका उपयोग सांप्रदायिकता को हवा देने,भडक़ाऊ व उकसाऊ भाषण देकर किसी एक धर्म विशेष के लोगों को दूसरे धर्म के विरुद्ध आक्रमण करने या उनके घरों को आग लगाने,तोडफ़ोड़ करने या उनकी हत्याएं करने के लिए किया जाए? निश्चित रूप से इसके अविष्कारकों ने तो इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी कि भविष्य में यही लाऊडस्पीकर मानवजाति का एक बड़ा दुश्मन भी साबित होगा।

हालांकि अदालतों द्वारा लाऊडस्पीकर के उपयोग के संबंध में कई बार निर्देश जारी किए जा चुके हैं। इसके गैर ज़रूरी इस्तेमाल पर लगभग पूरे देश में प्रतिबंध लगा हुआ है। किसी साधारण पारिवारिक कार्यक्रम के लिए भी यदि लाऊडस्पीकर का इस्तेमाल करना है तो इसके लिए बाकायदा मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होती है। परंतु हमारे देश में आज़ादी और मनमानी करने का यह आलम है कि लाऊडस्पीकर को सरकारी अनुमति लेकर बजाने के विषय पर तो संभवत: कभी कोई सोचता ही नहीं। जब चाहा,जिसने चाहा और जहां चाहा पूरी आवाज़ में लाऊडस्पीकर पर अपनी मनचाही बात कहना या गाना-बजाना अथवा कोई अन्य प्रचार करना शुरु कर देता है। यहां तक कि सुबह-सवेरे से ही गली-कूचों में कभी चूर्ण बेचने वाले,कभी अचार बेचने वाले कभी मंदिर-अनाथालय,दरगाह अथवा गौशाला के लिए चंदा मांगने वाले लोग अपने-अपने वाहनों पर लाऊडस्पीकर बांधकर शोर मचाते हुए बेधडक़ निकल पड़ते हैं। उन्हें इस बात की कोई िफक्र होती ही नहीं कि प्रात:काल का समय शांतिपूर्ण व प्रदूषणमुक्त वातावरण बनाए रखने का समय है। इस समय आम लोग अपने ज़रूरी कामों में लगे होते हैं तथा अपनी-अपनी दिनचर्या शुरु करने की तैयारी कर रहेहोते हैं। इसी बीच लाऊडस्पीकर की अनचाही आवाज़ उनका ध्यान भटका देती है। और इससे भी पूर्व प्रात:काल 4 बजे से गुरुद्वारे के शब्द,मस्जिद की अज़ान और मंदिरों के भजन-कीर्तन लाऊडस्पीकर के माध्यम से सोते हुए लोगों की नींद खराब करना शुरु कर देते है।

सुनने में तो यह भी आया है कि धर्मस्थलों के कई पुजारी व ज्ञानी लोग ऐसे भी होते हैं जो चार बजे के आसपास अपनी आंख खुलते ही लाऊडस्पीकर पर भजन या शब्दों की सीडी चलाकर स्वयं सो जाते हैं। और जनता उनके शोर-शराबे से विचलित होती रहती है। परंतु उन्हें इन बातों की कोई िफक्र नहीं होती। हालांकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लाऊडस्पीकर का शोर लोगों की श्रवण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है। परंतु हमारे समाज में तमाम लोग ऐसे मिलेंगे जिन्हें धीमी आवाज़ में कुछ सुनना तो भाता ही नहीं। यहां तक कि देश में विभिन्न त्यौहारों के अवसरों पर कई स्थानों पर तेज़ आवाज़ में लाऊडस्पीकर बजाने की प्रतियोगिताएं तक होती हैं। और इन कानफाड़ प्रतियोगिताओं को बहुत सारे लोग लाऊडस्पीकर के सामने खड़े होकर सुनते व आनंदित होते हैं। ऐसा नहीं है कि इस प्रकार का तमाशा सरकार की अथवा प्रशासन की नज़रों से छुपकर होता है। यह सब सार्वजनिक रूप से किया जाता है और बड़ी संख्या में आम जनता इस प्रकार के कार्यक्रमों में शरीक भी होती है। लेकिन कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं किसी सामाजिक आयोजन अथवा त्यौहार के नाम पर लोगों के स्वास्थय पर विपरीत प्रभाव डालने वाले  इस प्रकार के प्रदर्शनों की अनदेखी की जाती है। नतीजतन ऐसे आयोजकों की हौसला अफज़ाई होती है और ऐसे शोर-शराबे से भरे हुए प्रदर्शनों में इज़ाफा होता रहता है।

जहां तक विभिन्न धर्मस्थलों पर लाऊडस्पीकर बजाए जाने का प्रश्र है तो ऐसा कतई नहीं है कि किसी धर्मविशेष के लोग अपने धर्म से संबंधित धर्मस्थान पर बजने वाले लाऊडस्पीकर की आवाज़ें सुनकर खुश होते हों। बल्कि समझदार बुद्धिजीवी या गंभीर सोच रखने वाले सभी लोग ऐसे प्रत्येक शोर-शराबे के विरुद्ध हैं चाहे वे किसी भी धर्म से जुड़े धर्मस्थलों पर क्यों न किए जा रहे हों। परंतु एक सच्चाई यह भी है कि जब ऐसा कोई व्यक्ति इन धर्मस्थानों पर अनावश्यक रूप से होने वाले शोर-शराबे के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद करता है अथवा धर्मस्थान के संचालक या प्रशासन अथवा निकटवर्ती थाने में उसकी शिकायत दर्ज कराता है तो ऐसे व्यक्ति पर धर्म के तथाकथित ठेकेदार नास्तिक होने का ठप्पा लगा देते हैंं। यही वजह है कि देश का समझदार व इज्ज्ज़तदार तबका इस प्रकार के अवांछनीय शोर-शराबों को सहन करने के लिए मजबूर हो जाता है। परिणामस्वरूप लाऊडस्पीकर का धर्म के नाम पर दुरुपयोग करने वालों को ‘वाकओवर’ मिल जाता है और वे अपने इन गलत कामों को ही सही समझने लगते हैं तथा अपनी ‘धार्मिक दुकानदारी’ को और अधिक बढ़ाने के लिए दिन में कई-कई बार और कई-कई घंटों तक पूरे वाल्यूम पर धर्म के नाम पर शोर-शराबा करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हो जाते हैं।

परंतु दादरी,मुज़फ्फरनगर व कांठ जैसी घटनाएं तो कम से कम हमें यह सोचने के लिए मजबूर करती ही हैं कि धर्मस्थानों पर या धर्मविशेष को भडक़ाने के लिए बुलाई गई भीड़ को संबोधित करने के लिए व भडक़ाऊ भाषण देने के लिए अथवा अपने ज़हरीले विचारों को व्यक्त करने के लिए इन लाऊडस्पीकर्स का दुरुपयोग कब तक होता रहेगा। दादरी की घटना में सबसे पहला समाचार ही यही प्राप्त हुआ कि लाऊडस्पीकर पर मंदिर के पुजारी द्वारा यह घोषणा की गई कि अमुक व्यक्ति के घर में आपत्तिजनक मांस रखा हुआ है और इसी घोषणा को सुनकर गांव के लोग इकट्टे हुए और संबंधित व्यक्ति के घर पर धावा बोल दिया और एक व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या कर दी। यह मुद्दा इतना गंभीर हो गया कि भारत के राष्ट्रपति को इस विषय पर संज्ञान लेना पड़ा। उत्तर प्रदेश के एक मंत्री ने इस मामले को संयुक्तराष्ट्र संघ तक ले जाने की बात की। वायुसेना अधिकारियों ने पीडि़त परिवार को अपने संरक्षण में बुलाकर पनाह दी। यहां तक कि विदेशी मीडिया में भी यह विषय पूरी तरह छाया रहा। हालांकि यह सच है कि देश में सक्रिय सांप्रदायिक ताकतें अपने ज़हर फैलाने व समाज में आग लगाने के प्रयास में लगी रहती हैं। परंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि लाऊडस्पीकर जैसा यंत्र उनकी ज़हरीली आवाज़ को लोगों तक पहुंचाने में अपनी त्वरित व महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। कहना गलत नहीं होगा कि धर्मस्थानों पर या भीड़ को भडक़ाने में लाऊडस्पीकर की भूमिका अब इस हद तक नकारात्मक हो चुकी है कि इससे पूरे देश की बदनामी होने लगी है। लिहाज़ा लाऊडस्पीकर के संबंध में अदालत व प्रशासन द्वारा बनाए गए नियमों का बाकायदा पालन किए जाने की सख्त ज़रूरत है।

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nirmalraninirmal-rani-invc-news1परिचय -:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क : – Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City13 4002 Haryana ,  Email : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

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