31 मई – विश्व तंबाकू निषेध दिवस – यूं धुएं में न उङाओ जिंदगी यारो

– अरूण तिवारी –

arun-tiwariaruntiwari,अरूण तिवारीतम्बाकू नशा है और इसे इस्तेमाल करने वाले – नशेङी! संभव है यह संबोधन तंबाकू खाने वालों को बुरा लगे, लेकिन समय का सच यही है और विश्व तंबाकू निषेध दिवस की चेतावनी भी। भारत में जितनी भी चीजें नशे के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं, मात्रा के पैमाने पर इनमें तंबाकू का नंबर सबसे आगे है। 27 करोङ, 50 लाख तंबाकू उपभोक्ताओं के साथ भारत नंबर दो देश है। चीन का स्थान पहला है। 505 वर्ष पहले जब पुतर्गाली तंबाकू नाम का यह नशा लेकर हिंदुस्तान आये होेंगे, तब उन्होने यह नहीं सोचा होगा कि एक दिन भारत.. अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बङा तंबाकू उत्पादक देश बन जायेगा। आंध्र प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, बिहार और महाराष्ट्र भारत के बङे तंबाकू उत्पादक राज्य हैं। इस हकीकत को सिर्फ बङी आबादी से जोङकर नहीं बचा जा सकता। समस्या कहीं और ज्यादा जटिल है। निदान कहीं और ज्यादा जरूरी है।

भारत में तंबाकू के दुष्प्रभाव दुनिया के और देशों की तुलना में ज्यादा व्यापक और जटिल इसलिए हैं कि यहां तंबाकू के सेवन के तौर-तरीके ज्यादा विविध हैं। यहां तंबाकू पी जाती है, चबाई जाती है, खाई जाती है, चूसी जाती है.. धुंए में उङाई जाती है। दुनिया के किसी देश में सेवन के इतने प्रकार नहीं हैं। भारत में सिगरेट की तुलना में बीङी पीने वालों का प्रतिशत ज्यादा है। सच यह है कि सिगरेट की तुलना में बीङी, तीन गुना अधिक कार्बन मोनो आॅक्साइड व निकोटिन तथा पांच गुना अधिक तारकोल होता है। नशा बढाने के लिए चबाई जाने वाली खैनी में कई चीजों का मिश्रण उसे और ज्यादा खतरनाक बनाता है। मैनपुरी खैनी इसी कारण बदनाम हुई। पान में तंबाकू का चलन भारत में मुगलिया जमाने से है। पान की पीक से सरकारी दफ्तरों की दीवारें रंगी देखकर हमें अपनी तमीज पर तरस भले ही आता हो, लेकिन इसकी सामाजिक स्वीकार्यता में आज भी कोई परिवर्तन नहीं आया है। यह बहुत बङी बाधा है। हुक्का कभी देहात की पंचायतों तक ही सीमित था, बङों के सामने छोटों द्वारा हुक्का न पीने की अदब में बंधा था; अब यह उस हद से बाहर निकलकर अलग-अलग रंग, फ्लेवर और नशे के साथ ’हुक्का बार’ के रूप में किशोरों को अपनी चपेट में ले रहा है। कौन.. कितने छल्ले की दौङ खतरनाक साबित हो रही है।

एक शोधपत्र के मुताबिक भारत में कैंसर के आधे मरीज तंबाकू की वजह से शिकार बनते हैं। इनमें से 12 प्रतिशत पुरुष और 8 प्रतिशत महिला शिकार मुंह के कैंसर के होते हैं। 40 वर्ष से कम उम्र वाले दिल के मरीजों में 60 प्रतिशत की बीमारी की वजह तंबाकू का सेवन ही होती है। प्रति वर्ष करीब सवा करोङ लोगों के तंबाकू की वजह से अलग-अलग बीमारियों की चपेट में आने की आंकङा है। वास्तविक आंकङे इससे ढाई से तीन गुना अधिक होने का अनुमान हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान तो और भी डरावना है – ’’2020 तक एक वर्ष में 10 से 15 लाख भारतीय तंबाकू की वजह से मरने को मजबूर होंगे।’’ यह सच भी हो सकता है, क्योंकि आज ही भारत में करीब 10 लाख कर्मी तंबाकू उद्योग में काम करते हैं। इनमें से 60 प्रतिशत महिलायें और 12 से 15 प्रतिशत बच्चों के होने का अनुमान बताया गया है। ऐसे कर्मियों में  कुछ बीमारियों का होना आम है। बीङी उद्योग कर्मियों को टी बी होना आम है।

तंबाकू उत्पादन के पक्ष में तर्क देने वाले कह सकते हैं कि तंबाकू उद्योग भारतीय आर्थिकी में हर वर्ष कई हजार करोङ का योगदान करता है। केन्द्रीय आबकारी कर में इसका योगदान 12 प्रतिशत है। लेकिन वे भूल जाते हैं कि यदि 2004 में तंबाकू की राष्ट्रीय बिक्री 244 अरब की थी, तो इससे हुए बीमारों के इलाज का खर्च 277.81 अरब आया था। वे भूल जाते हैं कि तंबाकू की वजह से कितने बच्चे जन्म लेने के साथ ही मृत्यु की उलटी गिनती गिनना शुरु कर देते हैं। तंबाकू सेवन करने वाली महिलाओं के गर्भस्थ शिशु शिकारों का आंकङा लाख तक पहुंच गया है। तंबाकू सिर्फ मंुह, फेफङे, दिल, पेट और हमारे पूरे श्वसन तंत्र को ही अपना निशाना नहीं बनाता; यह तनाव भी बढाता है और कान तक में विकार पैदा भी करता है। तंबाकू कंपनियों के कचरे और आपराधिक विश्लेषण बताते हैं तंबाकू के दुष्प्रभाव सिर्फ सेहत पर नहीं है, इसके असर क्रमशः पर्यावरणीय और सामाजिक भी है। भारत में ज्यादातर किशोर जिज्ञासावश, बङों के अंदाज से प्रभावित होकर, दिखावा अथवा दोस्तों के प्रभाव में पङकर तंबाकू के शिकार बनते हैं। कम उम्र में तंबाकू के नशे में फंसने वाले नियम-कायदों को तोङने से परहेज नहंी करते। ऐसे किशोर मन में अपराधी प्रवृति के प्रवेश की संभावना अधिक रहती है। ऐसे चैरफा दुष्प्रभाव.. चैरफा रोकथाम की मांग करते हैं। ऐसे प्रयास हुए भी हैं, लेकिन नतीजे अभी भी नाकाफी ही हंै।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के ’नो टोबेको-2004’ प्रयासों का हिस्सा बने भारत में आज तंबाकू नियंत्रण हेतु एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है। ’कोप्टा’ कानून है। विज्ञापनों पर रोक है। सार्वजनिक स्थलो पर धूम्रपान निषेध के बोर्ड टंगे हैं। तंबाकू उत्पादों के पैकेट के 40 प्रतिशत हिस्से पर स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी व संबंधित चेतावनी दर्ज करने का नियम है। नियम के मुताबिक नाबालिगों को तंबाकू नहीं बेची जा सकती। 30 कमरों तक के होटलों और 30 सीटों तक केे रेस्तरांओं में घ्रूमपान पर रोक का कायदा है। स्वास्थ्य मंत्रालय में तंबाकू निषेध हेतु अलग से एक प्रकोष्ठ काम कर रहा है। बावजूद इसके आज भी भारत में तंबाकू उपभोक्ताओं की रफ्तार 2 से 5 फीसदी की दर से हर वर्ष बढ ही रही है; कायदे रोज टूट ही रहे हैं। क्यों ? बङा प्रश्न यही है।

रेलवे एक्ट-1989 ने ट्रेनों को धुंए से मुक्त करने की कोशिश की थी। वर्ष 2013 में 25 मई को रेलवे ने कहा कि टेªन में धुआं उङाने वालों की खैर नहीं। क्या हुआ ? अरूणांचल और जम्मू-कश्मीर को छोङ दें, तो कहने को पिछले चार सालों में सभी राज्यों में तंबाकू गुटखा पर प्रतिबंध लगा है। मध्य प्रदेश इनमें सबसे पहला और पं बंगाल अब तक का सबसे आखिरी राज्य है। लेकिन क्या तंबाकू गुटखा की बिक्री वाकई पूरी तरह रुक पाई है ?

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2001 में तंबाकू नियंत्रण न हो पाने को मानवाधिकार से जोङते हुए मुद्दे को एक महत्वपूर्ण आयाम देने की अह्म कोशिश की थी। माना था कि स्वच्छ हवा का आधिकार सभी को है; एक नवजात शिशु को भी और गर्भस्थ शिशु को भी। यह सेहत के अधिकार से जुङा मसला भी है और तंबाकू प्रभावों के बारे में शिक्षित होने से जुङा भी। लोगांे को इसके बारे में सही सूचना पाने का अधिकार है। लोगों को इसके दुष्प्रभाव से उबरने का अधिकार है। ऐसे तमाम अधिकारों की रक्षा का हवाला देते हुए आयोग ने जनस्वास्थ्य की दृष्टि एक उच्च स्तरीय नीति की सिफारिश की थी। कहा था कि तंबाकू नियंत्रण हेतु एक नोडल एजेंसी बनाई जाये।

ऐसे तमाम प्रयासों से चेतना निस्संदेह बढी है, लेकिन विरोधाभास बङा है कि उपभोग करने वालों की संख्या फिर भी कम नहीं हुई है। संकेत साफ है कि नियंत्रण कानून या सरकार से नहीं, स्वयं समाज की कोशिशों से संभव होगा। तंबाकू की गंध और धुंआ दूसरों को कम नुकसान नहीं करती। अतः आप तंबाकू सेवन करते हों या न करते हों; प्लीज! तंबाकू का नशा करने वाले को करना शुरु कीजिए रिजेक्ट और कहना शुरु कीजिए – नो !

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arun-tiwariaruntiwari,अरूण तिवारीपरिचय -:

अरुण तिवारी

लेखक ,वरिष्ट पत्रकार व् सामजिक कार्यकर्ता

1989 में बतौर प्रशिक्षु पत्रकार दिल्ली प्रेस प्रकाशन में नौकरी के बाद चौथी दुनिया साप्ताहिक, दैनिक जागरण- दिल्ली, समय सूत्रधार पाक्षिक में क्रमशः उपसंपादक, वरिष्ठ उपसंपादक कार्य। जनसत्ता, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला, नई दुनिया, सहारा समय, चौथी दुनिया, समय सूत्रधार, कुरुक्षेत्र और माया के अतिरिक्त कई सामाजिक पत्रिकाओं में रिपोर्ट लेख, फीचर आदि प्रकाशित।

1986 से आकाशवाणी, दिल्ली के युववाणी कार्यक्रम से स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता की शुरुआत। नाटक कलाकार के रूप में मान्य। 1988 से 1995 तक आकाशवाणी के विदेश प्रसारण प्रभाग, विविध भारती एवं राष्ट्रीय प्रसारण सेवा से बतौर हिंदी उद्घोषक एवं प्रस्तोता जुड़ाव।
इस दौरान मनभावन, महफिल, इधर-उधर, विविधा, इस सप्ताह, भारतवाणी, भारत दर्शन तथा कई अन्य महत्वपूर्ण ओ बी व फीचर कार्यक्रमों की प्रस्तुति। श्रोता अनुसंधान एकांश हेतु रिकार्डिंग पर आधारित सर्वेक्षण। कालांतर में राष्ट्रीय वार्ता, सामयिकी, उद्योग पत्रिका के अलावा निजी निर्माता द्वारा निर्मित अग्निलहरी जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के जरिए समय-समय पर आकाशवाणी से जुड़ाव।

1991 से 1992 दूरदर्शन, दिल्ली के समाचार प्रसारण प्रभाग में अस्थायी तौर संपादकीय सहायक कार्य। कई महत्वपूर्ण वृतचित्रों हेतु शोध एवं आलेख। 1993 से निजी निर्माताओं व चैनलों हेतु 500 से अधिक कार्यक्रमों में निर्माण/ निर्देशन/ शोध/ आलेख/ संवाद/ रिपोर्टिंग अथवा स्वर। परशेप्शन, यूथ पल्स, एचिवर्स, एक दुनी दो, जन गण मन, यह हुई न बात, स्वयंसिद्धा, परिवर्तन, एक कहानी पत्ता बोले तथा झूठा सच जैसे कई श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम। साक्षरता, महिला सबलता, ग्रामीण विकास, पानी, पर्यावरण, बागवानी, आदिवासी संस्कृति एवं विकास विषय आधारित फिल्मों के अलावा कई राजनैतिक अभियानों हेतु सघन लेखन। 1998 से मीडियामैन सर्विसेज नामक निजी प्रोडक्शन हाउस की स्थापना कर विविध कार्य।

संपर्क -:
ग्राम- पूरे सीताराम तिवारी, पो. महमदपुर, अमेठी,  जिला- सी एस एम नगर, उत्तर प्रदेश
डाक पताः 146, सुंदर ब्लॉक, शकरपुर, दिल्ली- 92
Email:- amethiarun@gmail.com . फोन संपर्क: 09868793799/7376199844

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