मणि मोहन मेहता की पांच कविताएँ
1-
अक्सर लौटता हूँ घर
अक्सर लौटता हूँ घर
धूल और पसीने से लथपथ
लौटता हूँ अक्सर
अपनी नाकामियों के साथ
थका-हारा
वह मुस्कराते हुए
सिर्फ थकान के बारे में पूंछती है
एक कप चाय के साथ
और मैं भूल जाता हूँ
अपनी हार
2-
इंच – इंच सरक रहा है
इंच – इंच सरक रहा है
घाटी पर
सरियों से लदा हाथ ठेला अपनी पूरी ताकत झोंक दी है
पसीने से लथपथ
उस ठेलेवाले ने
एक होड़ जारी है
भीतर के लोहे की
बाहर के लोहे के साथ
देखो
पसीना बह रहा है
झरने की तरह ।
3-
घोंसला
——
सिर्फ तिनकों के सहारे
नहीं बनते घोंसले ….
देखो , जरा गौर से
इस स्रष्टि को
कुछ टूटे हुए पंख भी
दिख जायेंगे
यहाँ – वहां ।
4-
इतवार और तानाशाह – मणि मोहन मेहता
आज इतवार है
अपने घर पर होगा तानाशाह
एकदम अकेला…
क्या कर रहा होगा ? ? ?
गमलों में लगे
फूलों को डांट रहा होगा ! ! !
हाथों में कैंची लिए
लताओं के पर कतर रहा होगा ! ! !
खीझ रहा होगा बीवी पर ! ! !
या फिर अपने कुत्तों से
चटवा रहा होगा तलुवे ! ! !
क्या आज फिर
टूटा होगा
उसके घर में एक आईना ?
क्या आज फिर चीख – चीख कर पूछ रहा होगा –
किसने तोड़ा है ये आईना ?
पता नहीं तानाशाह
इस वक्त अपने घर पर
किस तरह
मना रहा होगा इतवार ? ? ?
5-
डंपिंग ग्राउंड
———-
किसी मक्कार आदमी के ड्राइंग रूम में पसरे
उसके किंग साइज सोफे
और टायलेट में लगी
कमोड की तारीफ के बाद
ज़ेहन में बची रह गई भाषा से
कविता नहीं बनती
किसी तानाशाह की जीहुजूरी
और अभिनन्दन के बाद
ज़ेहन में बची रह गई भाषा से भी
बात नहीं बनती
क्योंकि कविता
भाषा का डंपिंग ग्राउंड नहीं होती ।
डंपिंग ग्राउंड
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किसी मक्कार आदमी के ड्राइंग रूम में पसरे
उसके किंग साइज सोफे
और टायलेट में लगी
कमोड की तारीफ के बाद
ज़ेहन में बची रह गई भाषा से
कविता नहीं बनती
किसी तानाशाह की जीहुजूरी
और अभिनन्दन के बाद
ज़ेहन में बची रह गई भाषा से भी
बात नहीं बनती
क्योंकि कविता
भाषा का डंपिंग ग्राउंड नहीं होती ।
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Asst. Profe. English Govt. College Ganj Vasoda M.P
Hobby – rachnayen likhna , kibaven padhna , dosto ke sath dosti ka
nairvah karna
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