लम्बी कविता
अन्धकार की बातें करते बीत गए यूँ साल भतेरे
अन्धकार की बातें करते
बीत गए यूँ साल भतेरे
तुमने जाने क्या सोचा है
मैंने तो बस यह सोचा है
एहसासों की दुनिया में मैं
अब कदम रखूंगा धीरे-धीरे
नई कहानी कुछ लिख दूंगा
कुछ लिखूंगा पानी- सानी
राहगीर बन कुछ लिख दूंगा
इस ज़मीर पर नई दीवानी
कोई जाने या न माने
नहीं रखूंगा कलम पैताने
अन्धकार की बातें करते बीत गए…धरती का बज गया अलार्म
नदिया- नाते टें बोल रहे
टें बोल उठी गौरैया
वोट – नोट में लिपटे रहकर
एक गया औ दूजा आया
प्रश्न खड़ा है अभी अनुत्तरित
लोक कहाँ है. तंत्र कहाँ है.
खोज लाये वो जंत्र कहाँ हैं
बातें खाना-बातें पीना
धन- यश की खातिर बस जीना
आखिर इसकी भी तो हद हो
रिश्तों में कुछ तो मन रस हो
कैसे रखूँ मैं कलम पैताने
अन्धकार की बातें करते बीत गए ….ऐसे प्यारे नहीं चलेगा,
नहीं चलेगी सीनाजोरी
नहीं चलेगी देखा-देखी
नहीं चलेगी हरम तिजोरी.
जाने मुट्ठी कब बंधेगी,
जाने नज़रें कब सधेंगी,
जाने कब धरा ध्वजा पर
मेरा मस्तक उठ जायेगा
जाने कब लोक भेष ले
ध्वजा प्रहरी बन जायेगा.
जाने- जानम के चक्कर में
प्रश्न रहे जो प्रश्न थे मेरे
संकल्पों में वक़्त लगेगा
पर नहीं रखूंगा कलम पैताने,
अंधकार की बातें करते बीत गए…तुमने भी कुछ सोचा होगा
तुम भी रुस्तम छिपे घनेरे
अपनी खातिर नहीं सही पर
मेरी खातिर ही बतलाओ
मेरी खातिर खुद को जानो
खुद की ताक़त को पहचानो
मर्म नहीं पर धर्म को जानो
सच कहता हूँ
एक बार जो धम्म बोलोगे
शांति प्रीत के रस घोलोगे
एक बार जो उठा फावड़ा
हर किसान का सच बोलोगे
बस एक बार जो निकल पड़े तुम
पगडंडी पर लोकतंत्र की
दंड ध्वजा का तुम्ही बनोगे
साथ तुम्हारे कलम मिलेगी
संकल्पों की राह चलेगी
नहीं रखूंगा इसे पैताने
अंधकार की बातें करते बीत गए…पर ये बातों से न होगा
शोणित लहू की चाह नहीं है
नहीं चाहिए बही खज़ाना
कुछ फटे हुए दिलों को सीना
कुछ चली हुई हरकत को पीना
कुछ आँखों में खुशियों खातिर
कुछ आँखों में तरल वेदना
कुछ माटी में अथक पसीना
कुछ बूंदे गर दें जाओगे
जीना सचमुच हो जायेगा
एक सुन्दर सार्थक जीना
क्या तुम ये करना चाहोगे ?
साल मुबारक करना चाहोगे ?
एहसासों से भरना चाहोगे ?
मैंने तो बस सोच लिया है
नहीं रखूंगा कलम पैताने
अंधकार की बातें करते बीत गए….
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अरुण तिवारी
लेखक ,वरिष्ट पत्रकार व् सामजिक कार्यकर्ता
1989 में बतौर प्रशिक्षु पत्रकार दिल्ली प्रेस प्रकाशन में नौकरी के बाद चौथी दुनिया साप्ताहिक, दैनिक जागरण- दिल्ली, समय सूत्रधार पाक्षिक में क्रमशः उपसंपादक, वरिष्ठ उपसंपादक कार्य। जनसत्ता, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला, नई दुनिया, सहारा समय, चौथी दुनिया, समय सूत्रधार, कुरुक्षेत्र और माया के अतिरिक्त कई सामाजिक पत्रिकाओं में रिपोर्ट लेख, फीचर आदि प्रकाशित।
1986 से आकाशवाणी, दिल्ली के युववाणी कार्यक्रम से स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता की शुरुआत। नाटक कलाकार के रूप में मान्य। 1988 से 1995 तक आकाशवाणी के विदेश प्रसारण प्रभाग, विविध भारती एवं राष्ट्रीय प्रसारण सेवा से बतौर हिंदी उद्घोषक एवं प्रस्तोता जुड़ाव।
इस दौरान मनभावन, महफिल, इधर-उधर, विविधा, इस सप्ताह, भारतवाणी, भारत दर्शन तथा कई अन्य महत्वपूर्ण ओ बी व फीचर कार्यक्रमों की प्रस्तुति। श्रोता अनुसंधान एकांश हेतु रिकार्डिंग पर आधारित सर्वेक्षण। कालांतर में राष्ट्रीय वार्ता, सामयिकी, उद्योग पत्रिका के अलावा निजी निर्माता द्वारा निर्मित अग्निलहरी जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के जरिए समय-समय पर आकाशवाणी से जुड़ाव।
1991 से 1992 दूरदर्शन, दिल्ली के समाचार प्रसारण प्रभाग में अस्थायी तौर संपादकीय सहायक कार्य। कई महत्वपूर्ण वृतचित्रों हेतु शोध एवं आलेख। 1993 से निजी निर्माताओं व चैनलों हेतु 500 से अधिक कार्यक्रमों में निर्माण/ निर्देशन/ शोध/ आलेख/ संवाद/ रिपोर्टिंग अथवा स्वर। परशेप्शन, यूथ पल्स, एचिवर्स, एक दुनी दो, जन गण मन, यह हुई न बात, स्वयंसिद्धा, परिवर्तन, एक कहानी पत्ता बोले तथा झूठा सच जैसे कई श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम। साक्षरता, महिला सबलता, ग्रामीण विकास, पानी, पर्यावरण, बागवानी, आदिवासी संस्कृति एवं विकास विषय आधारित फिल्मों के अलावा कई राजनैतिक अभियानों हेतु सघन लेखन। 1998 से मीडियामैन सर्विसेज नामक निजी प्रोडक्शन हाउस की स्थापना कर विविध कार्य।
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