कलीम के दोहे

कलीम के दोहे 

‘कलिमन’ बेहद लाज़मी , हर हीरेकी जाँच ।
हीरेसे भी आजकल , ज़्यादा चमके काँच ।।

‘चिक्की-कांड’ लगे मुझे , पकी-पकायी दाल ।
‘लोक-दुलारी’के लिए , स्वजन सजाए थाल ।।

ख़ुदसे भी बतियाय तो , ‘कलिमन’ रखियो ध्यान ।
दीवारोंको आजकल , हैं आंखें अरु कान ।।

अगर मुक़ाबिल आस्था , ‘कलिमन’ मेरे यार ।
तर्कोकी तलवारसे , लड़ना है बेकार ।।

कलिमन’ मेला कुंभका,पर्व पुण्यप्रद होय ।
उसमें भी पापी कई , देखे अपनी सोय ।।

इक दूजे की पीठका , घस-घस धोवै मैल ।
‘कलिमन’अचरजमें पड़े,किसकी कौन रखैल ।।

अपने घरमें ही जिसे , प्यार सहज मिल जाय ।
काहे बाहर जाय वो , कौन उसे ललचाय ।।

कल तक थी जो ‘योजना’, ‘नीती’ होवै आज ।
नाम बदलनेसे कभी , बदले नहीं मिज़ाज ।।

फ़र्क नहीं पड़ता मुझे,गर हो निंदा घोर ।
कौवेके कब शापसे , मरता कोई ढोर ।।

कलिमन’यूँ मस्तिष्कमें,आ जाएगी मोच ।
इतनी जल्दी क्या पड़ी , धीरे-धीरे सोच ।।

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poetkaleemkhan,kalimkhanपरिचय 

कलीम खान 

कवि व् ग़ज़लकार 

Very much interested in literature ( Gazals, poems in Marathi and Hindi on sensitive topic and Dohe)
He is retired HM.

Studied at S.M.D.Bharti High School,Arni.
Person with kind heart.

Literature, making new friends and to be honest with social responsibilities.

099 60 360130

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