– तनवीर जाफरी –
फ्रांस की राजधानी पेरिस गत् 13 नवंबर की शाम को एक बार फिर आतंकवादियों के हमले से थर्रा उठी। 26/11 को मुंबई में एक साथ कई स्थानों पर हुए आतंकी आक्रमण की तजऱ् पर ही पेरिस के केंद्र में स्थित चार ठिकानों पर एक साथ आत्मघाती हमले किए गए। जिसमें घटनास्थल पर ही 129 बेगुनाह लोग मारे गए तथा 370 से अधिक लोग घायल अवस्था में फ्रांस के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती किए गए। इन घायलों में 80 लोगों की स्थिति गंभीर थी। इस हमले की जि़म्मेदारी सीरिया व इराक में सक्रिय आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट(आईएस)द्वारा ली गई है। हालांकि आईएस के आतंकियों द्वारा सीरिया व इराक में एक साथ सैकड़ों लोगों की हत्याएं कर देना यहां तक कि बच्चों या औरतों को कत्ल कर देना कोई नई बात नहीं है। परंतु इन्हीं आतंकियों द्वारा जब अमेरिका अथवा यूरोप की धरती पर किसी भी आतंकी घटना को अंजाम दिया जाता है तब न केवल पूरे विश्व का ध्यान इस ओर आकर्षित होता है बल्कि स्वयं यूरोप व अमेरिका में भी खलबली भी मच जाती है। इस बार भी पेरिस हमले के बाद ऐसा ही देखा जा रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि आतंकी घटनाएं तथा इन घटनाओं में किसी भी देश अथवा धर्म के बेगुनाह लोगों का मारा जाना कतई निंदनीय, गलत,गैरइस्लामी व अमानवीय कृत्य है। इन आतंकियों द्वारा अंजाम दी जाने वाली प्रत्येक घटना इस्लाम को बदनाम करती है तथा मानवता को भी शर्मसार करती है। लिहाज़ा क्या पेरिस,क्या न्यूयार्क तो क्या सीरिया,इराक,मुंबई,काबुल अथवा कराची या लाहौर गोया दुनिया के किसी भी देश में ऐसी घटनाओं को रोकने की कोशिश पूरे विश्व को मिलकर करनी चाहिए। और पूरे संसार को ऐसे सभी दुर्दांत आतंकी संगठनों के विरुद्ध एकजुट होकर उस समय तक कार्रवाई करनी चाहिए जब तक ऐसे संगठनों का वजूद पूरी तरह से खत्म न हो जाए। परंतु क्या ऐसा कर पाना संभव है? क्या वास्तव में पूरी दुनिया एक स्वर में आतंकवाद को धरती से समाप्त करने के नाम पर एकजुट हो सकती है?
इस प्रश्र का जवाब जानने के लिए पिछले दिनों रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन द्वारा जी-20 देशों के सम्मेलन के पश्चात दिया गया अत्यंत महत्वपूर्ण बयान नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सही मायने में आतंकवाद की जड़ कहां है यह बात पुतिन के इस बयान से ही साफ ज़ाहिर हो जाती है। उन्होंने साफतौर पर यह कहा कि ‘पूरी दुनिया के लिए खतरा बनते जा रहे आतंकी संगठन आईएस को विश्व के 40 से अधिक देश वित्तीय सहायता पहुंचा रहे हैं और इनमें जी-20 के कुछ देश भी शामिल हैं।’ आईएस के कब्ज़े वाले तेल क्षेत्रों से सस्ते दामों पर तेल खरीदने की लालच में तथा इस्लामी जगत में बड़े पैमाने पर आपसी संघर्ष छेडऩे की खातिर यह बड़ी साजि़श रची जा रही है। दूसरी ओर कुछ लोगों का यह भी मानना है कि आईएस के आतंकी जहां अपनी कट्टरपंथी विचारधारा का विरोध करने वाले मुसलमानों को सीरिया व इराक में आए दिन बड़ी संख्या में मार रहे हैं वहीं यह लोग पश्चिमी देशों से मुस्लिम देशों पर किए गए अत्याचार का बदला भी ले रहे हॅै। गोया उनके द्वारा अंजाम दी जाने वाली आतंकी वारदातें ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ स्वरूप अंजाम दी जा रही हैं। गौरतलब है कि अमेरिका ने 2003 में इराक पर केवल इस बहाने आक्रमण किया था कि सद्दाम हुसैन ने इराक में सामूहिक विनाश के हथियार छुपा रखे हैं। अमेरिका ने इराक को इसी बहाने न केवल तबाह कर डाला बल्कि तानाशाह सद्दाम हुसैन से अपनी रंजिश निकालते हुए उसे इराक में ही एक विशेष अदालती टिब्यूनल का गठन कर दुजैल में 148 शिया समुदाय के लोगों की हत्या के जुर्म में 30 दिसंबर 2006 को फांसी पर भी लटका दिया। अपने इस तीन वर्ष के सैन्य हस्तक्षेप के दौरान अमेरिका ने इराक में लगभग 10 लाख से भी अधिक लोगों की हत्याएं का डालीं। और यदि इराक,अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान में अमेरिका द्वारा की गई सैन्य कार्रवाई की बात की जाए तो रित्गर्ज यूनिवर्सिटी में मीडिया स्टडीज़ की प्रोफेसर दीपा कुमार के अनुसार इन तीन देशों में अमेरिका ने 13 लाख से अधिक लोगों की हत्याएं की हैं।
परंतु अमेरिकी सैन्य कार्रवाई को दुनिया न तो आतंकी कार्रवाई कह सकती है न ही इन कार्रवाईयों पर वैश्विक मीडिया अथवा संयुक्त राष्ट्र संघ शोर-शराबा करता है। कुछ लोग पश्चिमी देशों के विरुद्ध आतंकवादियों द्वारा की जाने वाली न्यूयार्क व पेरिस जैसी कार्रवाईयों को उसी क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में भी देख रहे हैं। परंतु यह फलसफा भी पूरी तरह से गैर इंसानी व गैर इस्लामी है। किसी शासक अथवा किसी शासन या किसी तानाशाह या किसी सिरफिरे राष्ट्राध्यक्ष द्वारा लिए गए किसी गलत फैसले का भुगतान किसी देश व धर्म के किसी बेगुनाह व्यक्ति को हरगिज़ नहीं करना चाहिए। यदि क्रिया की प्रतिक्रिया के इस फलसफे को सही ठहराया जाने लगा तो पूरा विश्व बारूद के ढेर पर बैठा नज़र आने लगेगा। घर-घर संघर्ष की आग भडक़ती दिखाई देने लगेगी। प्रत्येक व्यक्ति जिसके हाथ में ताकत है तथा प्रत्येक शक्तिशाली समुदाय,समाज अथवा देश क्रिया की प्रतिक्रिया के फलसफे के आधार पर स्वयं को सही ठहराते हुए आतंक का पर्याय बनता नज़र आएगा। लिहाज़ा किसी के गलत काम की सज़ा किसी दूसरे को देना या उसी जि़ममेदार व्यक्ति के धर्म अथवा देश के लोगों को कथित प्रतिक्रिया स्वरूप अपने आतंक का निशाना बनाना पूरी तरह से गलत तथा निंदनीय हैं। ऐसी प्रत्येक तथाकथित ‘प्रतिक्रिया’ की निंदा की जानी चाहिए। परंतु यदि रूसी राष्ट्रपति पुतिन की बात सही है और ज़ाहिर है विश्व की महाशक्ति का कोई सरबराह इतनी गैरजि़म्मेदाराना बात बिना किसी प्रमाण के कतई नहीं कर सकता तो यह भी स्पष्ट है कि क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में प्रचारित की जाने वाली न्यूयार्क व पेरिस जैसी घटनाएं अपने-आप में एक बड़ी साजि़श का ही नतीजा हैं।
और यदि राष्ट्रपति पुतिन की बात सही है तो निश्चित रूप से आईएस के लड़ाकों से अधिक जि़म्मेदार वह देश हैं जो इन मानवता के दुश्मनों को पैसा तथा हथियार उपलब्ध करा रहे हैं। रूस भी आतंकी घटनाओं का कम भुक्तभोगी नहीं है। अभी गत् 31 अक्तूबर को ही मिस्र के सनाई प्रायद्वीप में एक रूसी विमान को आईएस के आतंकियों ने गिरा दिया था। इसमें सवार 224 लोग मारे गए थे। ज़ाहिर है इस घटना ने भी रूस को एक बड़ा आघात पहुंचाया है। लिहाज़ा यदि पुतिन द्वारा पूरी जि़म्मेदारी के साथ दुनिया के 40 देशों को आईएस जैसे खूंखार आतंकी संगठन को वित्तीय सहायता पहुंचाई जाने का दावा किया जा रहा है तथा इस साजि़श में गु्रप 20 के कुछ देशों को भी शामिल बताया जा रहा है तो पुतिन के इस कथन को हल्के ढंग से लेने के बजाए पूरे विश्व को इन आतंकी समर्थक शक्तियों को बेनकाब करने के पक्ष में एकजुट हो जाना चाहिए। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ को भी इस विषय पर संज्ञान लेना चाहिए। राष्ट्रपति पुतिन ने पिछले दिनों जी-20 की बैठक के दौरान सदस्य देशों से इस प्रकार की सभी ज़रूरी सूचनाएं भी सांझा की हैं। यहां तक कि उन्होंने जी-20 देशों के अपने सहयोगियों को विमान से ले गई पैट्रोलियम पदार्थों के व्यापार की तस्वीरें भी दिखाई हैं। आईएस के विषय में एक और सवाल वैश्विक राजनीति पर नज़र रखने वाले विश£ेषकों द्वारा प्राय: यह भी किया जाता है कि आिखर आईएस के आतंकी उस इज़राईल पर अथवा इज़राईली हितों पर आतंकी हमले क्यों नहीं करते जो इज़राईल फिलिस्तीन में आए दिन बेगुनाह मुसलमानों और छोटे बच्चों को कत्ल करता रहता है? यदि आईएस इराक,अफगानिस्तान या पाकिस्तान में पश्चिमी देशों के सैन्य हस्तक्षेप तथा यहां के मुसलमानों पर नाटो सेनाओं के हमले का बदला अमेरिका व यूरोप की धरती पर लेता रहता है फिर आिखर उसे फि़लिस्तीन की धरती पर इज़राईली सेना द्वारा आए दिन किए जाने वाले हमलों तथा इसमे मारे जाने वाले बेगुनाह मुसलमानों की हत्याओं का बदला लेने की िफक्र क्यों नहीं होती? आिखर इसके पीछे के रहस्य क्या हैं?
आईएस को संरक्षण दिए जाने को लेकर जहां कई पश्चिमी देश संदेह के घेरे में हैं वहीं सऊदी अरब भी वैचारिक दृष्टिकोण से स्वयं को अलग नहीं रख सकता। गौरतलब है कि आईएस ने अपनी आतंकी इबारत लिखने के शुरुआती दौर में ही सर्वप्रथम सैकड़ों सूफी-संतों,पीर-पैगंबरों की दरगाहों,उनकी मज़ारों व इनके अनुयाईयों की मस्जिदों को ध्वस्त कर अपनी वैचारिक पृष्ठभूमि का परिचय भी दे दिया था। यही वह विचारधारा भी है जिसकी सऊदी अरब का शासक वर्ग अर्थात् सऊद घराना सरपरस्ती करता है। लिहाज़ा जब तक वैश्विक स्तर पर आईएस जैसे आतंकियों का समर्थन बंद नहीं होगा तथा इन्हें वैचारिक समर्थन व संरक्षण प्रदान करने वाले देश इसे ऑक्सीजन देते रहेंगे तब तक आतंकवाद का यह दानव समाप्त नहीं किया जा सकेगा।
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Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities
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