अजेय “कामता-शिवा” शुक्ला की कविता : ठुल्ला
ठुल्ला
तुमने आते ही ये क्यों पूछा ?
मैं इतना आवारा कैसे हुआ ?
तुमने देखी हैं भीड़ से भरी वो गलियां
जहाँ मेरा भी एक बचपन था
आता था एक पुलिसवाला, रोज सुबह
मैंने कभी उसका चेहरा नहीं देखा
बस आँखें नीचे किये नेम-प्लेट पढ़ लेता था
आते ही बैठ जाता था नुक्कड़ पर ,चाय की दुकान पर
जहाँ से दिखता था पूरा चौराहा
मुझे बुलवा लेता था
और मैं बस्ता फेंक कर काम पर लग जाता था
किसने सीखा दीं थी धाराप्रवाह गालियां देना
याद नहीं है
पर उन गालियों से वसूली खूब होती थी
आखिर तीस परसेंट मेरे भी तो थे
गुजरने वाली लड़कियां
माता जी और बहन जी से कब आइटम बन चुकीं थी
पता ही ना चला
लाते – लाते सभी बोतलों का नाम भी जान चुका था
और स्वाद भी
अब जब आवारगी मेरी आदत हो गयी है
तो तुम कहाँ से आ गए हो ?
पुलिस तो तुम भी हो बस नेम-प्लेट बदल ली है
क्यों वसूलने नहीं देते हफ्ता गुजरते ट्रकों से
क्यों पकड़ते हो मेरे चेलों को, उनसे शब्द आइटम सुनकर
नुक्कड़ की मेरी महफ़िल पर अब ताश कौन खेलेगा ?
कौन लाएगा अब मेरे लिए बोतलें ?
मुझे रोटी मेरे आवारापन और तुम्हारे नकारापन से ही तो मिलती थी
तो मेरे लिए तुम “ठुल्ला” हो
गुजरने और गुजर जाने वाली लड़कियों के लिए
वो “ठुल्ला” था
कमाल है “ठुल्ला” तेरा मतलब
अपने अपने शब्द ….अपने अपने मायने
——————————————————
अजेय “कामता-शिवा” शुक्ला
कवि व् लेखक
श्रीयुत अजेय शुक्ला मूलतः कानपुर (उ. प्र.) के निवासी हैं l आप हिन्दी – लेखन के मूर्धन्य हस्ताक्षर हैं l
वर्तमान में लेखन की व्यंग्य – विधा में आपकी कलम का शायद ही कोई सानी हो l