– तनवीर जाफ़री –
तालिबानों द्वारा विगत 15 अगस्त को दहशत फैलाकर व हथियारों के बल पर काबुल के सत्ता केंद्र पर क़ब्ज़ा जमाया गया और उनकी दहशत के चलते ही किसी बड़ी अनहोनी को टालने की ग़रज़ से राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी को आनन फ़ानन में देश छोड़कर भागना भी पड़ा। राष्ट्रपति ग़नी के अनुसार यदि वे देश छोड़कर न भागते तो ख़ूनी हिंसा हो सकती थी इसी को टालने के लिये वे काबुल छोड़ कर भाग निकले। ज़ाहिर है जिस संभावित ख़ूनी हिंसा का वे ज़िक्र कर रहे थे उसकी पूरी संभावना तालिबानी लड़ाकों की तरफ़ से ही थी। कोई भी सभ्य समाज इसे न तो सत्ता परिवर्तन मान सकता है न ही इसे जनभागीदारी की सरकार कहा जा सकता है। ख़ासकर तब जबकि दुनिया के ‘मोस्ट वांटेड’ आतंकी सत्ता पर क़ाबिज़ हों। हालांकि तालिबानियों द्वारा इसे आज़ादी के तौर पर पेश किया जा रहा है। जबकि इसमें आज़ादी जैसा कोई मसअला था ही नहीं। फ़रवरी 2020 में अफ़ग़ानिस्तान में हुए चुनावों में राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी लगभग 51 प्रतिशत मत प्राप्त कर अफ़ग़ानी जनता द्वारा दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए थे। यानी वहां अफ़ग़ानी जनता द्वारा निर्वाचित सरकार ही कार्यरत थी और उसी की देखरेख में अफ़ग़ानिस्तान में अनेक विकास परियोजनायें चल रही थीं। रहा सवाल अमेरिकी फ़ौजों की अफ़ग़ानिस्तान से वापसी का तो इसमें भी तालिबानों की सशस्त्र मुहिम की कोई भूमिका नहीं थी। क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सत्ता में आते ही स्वयं 31 अगस्त 2021 तक सभी अमेरिकी सैनिकों के अफ़ग़ानिस्तान छोड़ देने की समय सीमा निर्धारित कर दी थी। लिहाज़ा तालिबानों द्वारा ‘आज़ादी ‘ हासिल करने जैसा प्रोपेगंडा करना दुनिया की आँखों में धूल झोंकने जैसा ही है।
तालिबानी नेता यह भी भली भांति जानते हैं कि यदि वे चुनाव के रास्ते से अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता हासिल करना चाहें तो यह उनके लिए टेढ़ी खीर साबित होगी। क्योंकि वहां की शांतिप्रिय आम जनता ख़ासकर उदारवादी वर्ग व महिलायें तालिबानियों के वहशीपन तथा धर्म के नाम पर अपनाई जाने वाली अधर्मिता,उनके क्रूर बर्ताव तथा संकीर्ण मानसिकता से बख़ूबी वाक़िफ़ है। अफ़ग़ानिस्तान से आने वाली तस्वीरों में जिस तरह मंहगे से मंहगे व अति आधुनिक हथियारों से लैस तालिबानी लड़ाके राष्ट्रपति भवन से लेकर वहां की सड़कों तक जिस अंदाज़ में घूमते दिखाई देते हैं उसे देखकर तो यह समझना ही मुश्किल है कि कौन तालिबानी लड़ाका है तो कौन सुरक्षा कर्मी। ज़ाहिर है इसतरह की तस्वीर किसी अराजक व असभ्य देश की ही हो सकती है। एक मशहूर कहावत है ‘लुच्चे सबसे ऊँचे ‘,इसी कहावत के तहत आज हाथों में हथियार धारण कर तथा शरीया क़ानून लागू करने का भय फैलाकर तालिबानों ने दुनिया को यह दिखने का प्रयास किया है कि वे ही देश की आवाज़ हैं और पूरा देश उनके साथ है। परन्तु दरअसल अफ़ग़ानिस्तान में दिखाई देने वाला तालिबानी वर्चस्व महज़ एक धोखा और छलावा के सिवा और कुछ भी नहीं ।
सही मायने में अफ़ग़ानिस्तान में दिखाई दे रहे घटनाक्रम का न तो इस्लाम से कोई वास्ता है न ही इसमें दुनिया के मुसलमानों के हितों जैसी कोई बात है। यह शुद्ध रूप से सत्ता व साम्राजयवाद का खेल है जो चंद कट्टरपंथियों द्वारा अफ़ग़ानिस्तान के जाहिल व बेरोज़गार लोगों को ‘धर्म की अफ़ीम’ खिलाकर धर्म और शरीया के नाम पर खेला जा रहा है। इस्लाम की उत्पत्ति के समय से ही ऐसी शक्तियां सक्रिय हो चुकी थीं जो धर्म और सत्ता का घालमेल कर आम लोगों को धोखे में रखकर मुफ़्त में स्वयं सत्ता का भरपूर आनंद लेती रही हैं। इसी सोच के तमाम आक्रांता भी थे जिनके मुंह पर तो इस्लाम और मुसलमान होता था मगर उनके कृत्य ग़ैर इस्लामी तो क्या बल्कि ग़ैर इंसानी हुआ करते थे। जिस तरह दुनिया में उन अनेक लुटेरे आक्रांताओं ने इस्लाम का नाम बदनाम किया है ठीक उसी तरह यह तालिबानी भी अपनी क्रूरता का परिचय देकर पूरी दुनिया में इस्लाम और मुसलमानों को बदनाम व रुस्वा कर रहे हैं। दुनिया के मुसलमानों से कथित तालिबानी प्रेम इनकी चीन नीति से भी स्पष्ट है जिसके अंतर्गत चीन के वीगर मुसलमानों के साथ बड़े पैमाने पर होने वाली ज़्यादतियों के बावजूद इन्होंने उस मसअले पर ख़ामोश रहने का निर्णय लिया है। पाकिस्तान द्वारा तालिबानों को कथित तौर पर दिया जाने वाला नैतिक व सामरिक समर्थन भी ‘हम तो डूबे हैं सनम तुमको भी ले डूबेंगे ‘ नीति पर आधारित लगता है। पाकिस्तान से लेकर अफ़ग़ानिस्तान तक बच्चे बच्चे को यह पता चल चुका है कि तालिबानों की वापसी में पाकिस्तान की अहम भूमिका है। जबकि इससे पहले अफ़ग़ानिस्तान के विकास में तथा उसे पुनः खड़ा करने में भारत जो भूमिका अदा कर रहा था उसे पाकिस्तान पचा नहीं पा रहा था। कुल मिलाकर अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा ऐसी राजनैतिक स्थिति में जबकि सत्ता क्रूर व अपराधी मानसिकता के लोगों के हाथों में हो और स्वयं अफ़ग़ानी नागरिकों को ही तालिबानों पर भरोसा न हो तो दुनिया आख़िर इनपर कैसे भरोसा करे ?
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Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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