जम्मू में हिंदू मतदाताओं के ध्रुवीकरण के जरिये 35:10 के फॉर्मूले पर जीत के प्रयास में बीजेपी
– ओंकारेश्वर पांडेय –
हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में जिस संजौली मस्जिद का निर्माण 1960 से पहले हुआ था और उसमें अवैध निर्माण भी 2010 में मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के समय शुरू हुआ, उसको लेकर विवाद आज अचानक इतना तूल क्यों पकड़ रहा है? मौजूदा मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इसे सांप्रदायिक नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था का मामला बताया है। लेकिन दरअसल यह मसला न तो सांप्रदायिक है, और न ही कानून व्यवस्था का, बल्कि यह सीधे सीधे राजनीतिक मामला है जिसे जम्मू-कश्मीर में इसी महीने हो रहे चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है।
विवाद की शुरुआत
संजौली मस्जिद का विवाद तब उभरा जब कुछ हिंदू संगठनों ने इसके अवैध निर्माण का आरोप लगाया। उनका कहना था कि मस्जिद का निर्माण बिना प्रशासनिक मंजूरी के हुआ और इसे एक मंजिला से पांच मंजिला तक बढ़ा दिया गया। इस मुद्दे ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा का ध्यान भी आकर्षित किया, जहां ग्रामीण विकास मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने इसकी जांच की मांग की।
इस लेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार “ओंकारेश्वर पांडेय ” है
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प्रशासनिक प्रतिक्रिया
प्रशासन ने विवाद को नियंत्रित करने के लिए सख्त कदम उठाए। बुधवार को जब मस्जिद के खिलाफ हिंदू संगठनों ने प्रदर्शन किया, तो शिमला में तनाव बढ़ गया। विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस को लाठीचार्ज और वाटर कैनन का इस्तेमाल करना पड़ा। दो व्यक्तियों की गिरफ्तारी भी हुई। जिला दंडाधिकारी ने संजौली क्षेत्र में सभी प्रकार के धार्मिक और भड़काऊ गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया।
राजनीतिक दृष्टिकोण:
अब इस विवाद ने राजनीतिक रंग ले लिया है। कांग्रेस और बीजेपी नेताओं के बयान इस मामले को और भड़का रहे हैं। कांग्रेस विधायक हरीश जनारथा का कहना है कि मस्जिद का निर्माण 1960 से पहले हुआ था, लेकिन अवैध विस्तार 2010 में हुआ। वहीं, मुख्यमंत्री सुक्खू ने इसे सांप्रदायिक मुद्दे के रूप में न देखने की अपील की है।
अदालत की प्रतिक्रिया:
संजौली मस्जिद विवाद अदालत में है, जहां मस्जिद प्रबंधन से इसके विस्तार के बारे में सवाल किया गया है। स्थानीय निवासियों का दावा है कि इस विस्तार से सामाजिक तनाव और सुरक्षा खतरे पैदा हो रहे हैं।
संजौली मस्जिद विवाद का चुनावी महत्व
संजौली मस्जिद विवाद का संबंध जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों से भी जोड़ा जा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक महादेव चौहान का मानना है कि इस समय इस विवाद को उठाने का एक अहम उद्देश्य हिंदू मतदाताओं का ध्रुवीकरण करना है, जिसका सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को मिल सकता है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद राज्य में हो रहे पहले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इस विवाद को एक संवेदनशील मुद्दा बनाकर उभरा जा रहा है, जिसे बीजेपी अपने पक्ष में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है।
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव
जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव तीन चरणों में होंगे – 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को होंगे। चुनावों के नतीजे 4 अक्टूबर को हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणामों के साथ घोषित होंगे। 2018 में पीडीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार गिरने के बाद से यहाँ कोई निर्वाचित सरकार नहीं रही है।
चुनावों पर विवाद का असर:
संजौली मस्जिद विवाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। राज्य में अनुच्छेद 370 हटने और इसे संघ शासित प्रदेश बनाये जाने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो गई है, जिनमें से जिसमें जम्मू क्षेत्र में 6 नई सीटें जुड़ी हैं और अब वहां कुल 43 सीटें हो गयी हैं।
जम्मू-कश्मीर में चुनाव और हिमाचल प्रदेश
पश्चिमी हिमालय पर्वत-शृंखला में बसे हिमाचल प्रदेश की 1170 कि.मी. लंबी सीमाओं में से उत्तर में जम्मू-कश्मीर, दक्षिण में हरियाणा, पश्चिम में पंजाब, पूर्व में तिब्बत (चीन), तथा दक्षिण-पूर्व में उतराखंड से लगती हैं। हिमाचल प्रदेश के चम्बा और काँगड़ा जिले तो सीधे जम्मू कश्मीर से लगते हैं, जबकि ऊना, चम्बा, सोलन, बिलासपुर, काँगड़ा जिले पंजाब से। सोलन, सिरमौर जिले हरियाणा से लगते हैं, तो किन्नौर, शिमला, सिरमौर उत्तराखण्ड से। वैसे हिमाचल का सिरमौर जिला उत्तर प्रदेश से भी लगता है। उधर किन्नौर और लाहौल -स्पीति जिले भी जम्मू कश्मीर के निकट चीन (तिब्बत) से लगते हैं।
जम्मू-कश्मीर में पहला चुनाव और संजौली मस्जिद विवाद
राजनीतिक विश्लेषक हिमाचल के संजौली मस्जिद विवाद को जम्मू-कश्मीर के चुनाव में लाभ लेने के दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हैं। उनके मुताबिक इस विवाद का एक अहम उद्देश्य हिंदू मतदाताओं का ध्रुवीकरण है, जिसका सीधा लाभ बीजेपी को मिल सकता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में, बीजेपी ने जम्मू क्षेत्र की दो सीटें जीती थीं। अब संजौली मस्जिद विवाद का उपयोग करके बीजेपी जम्मू क्षेत्र में हिंदू मतदाताओं का भरपूर समर्थन पाने का प्रयास कर रही है।
चुनावों पर संजौली मस्जिद विवाद का असर
यदि संजौली मस्जिद विवाद के चलते हिंदू मतदाता जम्मू क्षेत्र में एकजुट होते हैं, तो हिंदू बहुसंख्यक सीटों पर बीजेपी की पकड़ और मजबूत हो सकती है। वैसे भी अनुच्छेद 370 हटने के बाद से बीजेपी ने राष्ट्रवाद, सुरक्षा और धार्मिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दों पर अपनी स्थिति मजबूत की है, जिसका लाभ उसे जम्मू में मिल सकता है। बीजेपी के चुनाव प्रभारी राम माधव का दावा है कि बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी और अगली सरकार राष्ट्रवादियों की बनेगी। उन्होंने जम्मू रीजन में 35 सीटें और कश्मीर में 10 सीटें जीतने यानी 35:10 का फॉर्मूला पेश किया है।
अन्य पार्टियों की स्थिति
इस चुनाव में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) ने राज्य में अनुच्छेद 370 की बहाली का मुद्दा उठाया कांग्रेस भी राज्य की बहाली की बात कर रही है, लेकिन वह अनुच्छेद 370 पर सीधा रुख अपनाने से बच रही है।
जम्मू के मुस्लिम बहुल जिले और बीजेपी की चुनौती
जम्मू के मुस्लिम बहुल पांच जिलों—डोडा, राजौरी, पुंछ, रामबन, और किश्तवाड़—में 16 सीटें हैं। इनमें से 5 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं, जिन पर बीजेपी को जीत का भरोसा है, लेकिन बाकी 11 सीटों पर मुकाबला मुश्किल है। जम्मू में 35 सीटें जीतने के बीजेपी के लक्ष्य में यही मुस्लिम बहुल जिले सबसे बड़ी चुनौती हैं, जहां पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस का दबदबा है। 2014 के विधानसभा चुनावों में जम्मू की 37 सीटों में से 25 पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी। इनमें से उपरोक्त मुस्लिम बहुल जिलों में उसे महज 6 सीटें मिली थीं, वह भी मुस्लिम वोट बंटने से पहले। पर अब नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस का मजबूत प्रदर्शन चुनौती पेश कर रहा है। इन दलों ने यहां चार से सात सीटें जीती थीं। तो अब जम्मू रीजन की 43 सीटों में बीजेपी को आरक्षित और हिंदू बहुल सीटों पर जीतने की उम्मीद है, लेकिन मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत मुश्किल है।
कश्मीर घाटी में बीजेपी की स्थिति:
उधर कश्मीर घाटी में बीजेपी ने कभी कोई सीट नहीं जीती, लेकिन इस बार पार्टी ने 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। राज्य में 10 साल बाद हो रहे विधानसभा के चुनाव में बीजेपी घाटी में निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन कर रही है, जिनके जीतने की संभावना है। साथ ही गुलाम नबी आजाद और इंजीनियर राशिद जैसे नेताओं के साथ गठजोड़ कर बीजेपी नेशनल कॉन्फ्रेंस को कमजोर करने की रणनीति पर काम कर रही है।
हिंदू मतदाताओं का ध्रुवीकरण और बीजेपी की संभावनाएं
हिमाचल के संजौली मस्जिद विवाद जैसे मुद्दों को लेकर यदि बीजेपी जम्मू क्षेत्र में हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करने में सफल रहती है, तो बीजेपी को 35 सीटों तक पहुंचाने का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। और 35:10 फॉर्मूले के तहत बीजेपी अगर जम्मू की 35 और कश्मीर की 10 सीटें जीतती है, तो यह राज्य के चुनावी परिदृश्य को पूरी तरह बदल सकता है।
(लेखक ओंकारेश्वर पांडे एक प्रसिद्ध पत्रकार, राष्ट्रीय सहारा के पूर्व वरिष्ठ समूह संपादक, पूर्व संपादक-एएनआई, राजनीतिक टिप्पणीकार, रणनीतिकार, जम्मू-कश्मीर मामलों के अध्येता और विचारक हैं। उन्होंने हिंदी में 350 पन्नों की एक पुस्तक ‘घाटी में आतंक और कारगिल‘ लिखी, जिसका विमोचन तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने किया था। उन्होंने अब तक 10 पुस्तकें लिखी हैं। LinkedIn- https://bit.ly/3BBYqfn Email- editoronkar@gmail.com)
(Author Onkareshwar Pandey is an expert of Jammu-Kashmir affairs, author of ‘Ghati Mein Aatank Aur Kargil,’ a Senior Journalist, and Founder of the Indian Thought Leaders Forum. Contact: Mob – 9311240119, editoronkar@gmail.com)
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