– नूर जम्शेद्पुरी –
– ग़ज़ले –
ये ज़िन्दगी है क्या पहेलियों की इक किताब है
सवाल हैं कई मगर नहीं कोई जवाब हैये मुद्दतों से जो मेरी नज़र में है बसा हुआ
उड़ा रखी है मेरी नींद मेरा कैसा ख्वाब हैनज़र तो आये राह में हसीन रास्ते मगर
क़दम बढ़ाये जब वहां मिला फक़त सराब हैउसी को होगा याद जिसने खुद को यां भुला दिया
किताबे इश्क़ का अजब सबक अजब निसाब हैकिसी का कुर्ब और किसी का साथ दोस्तो यहाँ
जो खुश नसीब लोग हैं उन्ही को दस्तियाब हैनिगाह मुन्तज़िर रही कि पाऊं इक झलक मगर
हैं बज़्म में अज़ीज़ सब हमीं से इक हिजाब हैवरक़ पलट के देख लूंगी मैं कभी भी कल मेरा
किसी किताब में रखा ये ख़ुश्क सा गुलाब हैनहीं बचा है रंगों रूप में अगरचे नूर अब
ताखाय्युलात में मगर अभी तलक शबाब है2
उल्फत का निगाहों में समुन्दर न मिलेगा
कल वक्त कोई आज से बेहतर न मिलेगाहम तकते थे महमान की कल राह मगर अब
खुश अपनों की आमद से कोई घर न मिलेगाबेलौस जो कर गुज़रे यहाँ कौम की ख़िदमत
ऐसा कोई इस दौर में रहबर न मिलेगामुँह फेर ग़रीबों से अगर जाये गा कोई
कल उसके लिए खुलता कोई दर न मिलेगादौलत जो बहु लाएगी कल देखना उसमे
इक शर्म-ओ-हया का कोई जेवर न मिलेगाफूलों का चमन मिलता है काँटों से गुज़र कर
किस्मत का यहाँ कोई सिकंदर न मिलेगाजो साथ गुज़ारे हैं तेरे दीद के काबिल
नज़रों को मेरी फिर कोई मंज़र न मिलेगासब कोशिशें बेकार हैं पाने की तेरी, नूर
जबतक कि तेरे दिल के ये अन्दर न मिलेगा
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वो यूँ दिल में समाता जा रहा है
हर इक वादा निभाता जा रहा हैयकीं के जुगनुओं से कोई देखो
मेरी पलकें सजाता जा रहा हैतमन्ना दिल में जीने की लगे है
कोई फिर से जगाता जा रहा हैबिछा कर फूल राहों में मेरी वो
हर इक काँटा उठाता जा रहा हैखिला कर कुछ वफ़ा के फूल मेरे
जगह दिल में बनाता जा रहा हैबचाना नूर मक़सद है हवा से
दिए की लौ बचाता जा रहा है
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नूर जहाँ
शिक्षिका व् शायरा
तखल्लुस ( कलमी नाम) नूर जम्शेद्पुरी
मूलतः जमशेद पुर झारखण्ड की रहने वाली हैं ,अभी रियाद के स्कूल में शिक्षिका हैं , पिछले 12 सालो से यहाँ बच्चो को उर्दू पढ़ा रही हैं , नूर जम्शेद्पुरी का गज़लों ,अद्व ओ अदावत से
पुराना नाता हैं अब 600 से ज़्यादा गज़ले लिख चुकी हैं l
संप्रति- : रियाद (सऊदी अरब) में International Indian public school में वरिष्ठ शिक्षक पद पर कार्यरत
संपर्क – Phone no…00966568417298 E mail: noorja2@yahoo.com