लेखक म्रदुल कपिल कि कृति ” चीनी कितने चम्मच ” पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l
-चीनी कितने चम्मच पुस्तक की चौदहवी कहानी –
_____प्यार__________
वो पिछले 26 मिनट से अपने हाथ में पकड़ी हुयी फोटो को देखे जा रही थी , एक तस्वीर हाथ में थी और एक दिल में , दिल और दिमाग के बीच एक अजीब सी कशमकश सी चल रही थी , न चाहते हुए भी दिमाग ने दोनों की तुलना करनी शुरू कर दी :
तरस्वीर वाला उसकी अपनी जात का है और दिल वाला गैर जात , तस्वीर वाला घर वालो की पसंद है और दिल वाला सिर्फ उसकी , तस्वीर वाला Air Force में एक अच्छी और बड़ी पोस्ट में है , और दिल वाला एक गुमनाम सी Company में Marketing में , तस्वीर वाले के अदब में पता नही कितने सर हर रोज झुकते होगे और दिल वाले को पता नही अपनी नौकरी बचाने के लिए कितने लोग के सामने हर रोज सर झुकना पड़ता होगा , तस्वीर वाला देखने में भी कितना सुन्दर है और दिल वाला धुप में रहते रहते काले होते रंग , निकलते पेट , सफेद होते बालो के बाद भी बेफिक्र , माँ बता रही थी की तस्वीर वाले के घर में सब बहुत पढ़े लिखे है , और घर भी बहुत बड़ा है और दिल वाले के घर वालो की सोच भी २ कमरो में रहते रहते छोटी हो गयी है …
तस्वीर वाले से शादी के बाद दीदी और बाकी सहेलिया जो अपने पति पर इतराती रहती है सब के मुह पर ताला लग जायेगा , और दिल वाले से शादी के बाद सब के मुंह खुल जायेगे ,
तस्वीर वाले का साथ एक सुनहरा कल है , और दिलवाले का साथ एक अँधेरी सुरंग में कदम रखना।
तस्वीर वाले के पास उसे देने के लिए सब कुछ है , और दिल के पास सिर्फ प्यार …
उसने दिल को हरदम के लिए खामोश करने फैसला कर लिया था …
लड़के ने ढलते हुए सूरज को देखते हुए बियर का तीसरा कैन भी खत्म कर दिया , वो पिछले 37 मिनट से शहर से बहार पिकनिक स्पॉट में बदल चुके गंगा के घाट के किनारे बैठा था , हल्की हल्की सी बारिश भी शुरू हो गयी थी ,
“बता किस कोने में सुखाऊ तेरी यादे , बारिश बाहर भी है और अंदर भी “
उसने मन ही मन सोचा की उसे भी मुझसे दूर जाने की बात महीने के आखिरी में ही बोलनी थी जब जेब में सिर्फ 3 ही बियर के पैसे थे ,
पिछले 2 दिनों से उसने खुद को सब से काट सा लिया था ,वो अकेले रहना चाह रहा था , हरदम सब का साथ देने वाले को आज किसी के साथ की जरूरत नही थी .
उसके भी दिल और दीमक में जंग छिड़ चुकी थी ,
दिल : जो भी हो वो खुश तो रहेगी ,
दिमाग : और तुम …?
दिल : वो खुश तो मै खुश ,
दिमाग : गलती किसी है ?
दिल : सिर्फ मेरी , मै उनके लायक न बन पाया
दिमाग़ : तूने सब कुछ तो किया , आज एक मुकाम पर तो है ,
दिल ; मैंने नही सब उनके प्यार और साथ के जूनून ने करवाया , लेकिन फिर भी मै न अपने आप को बदल पाया और न हालात को , उसने सच ही तो कहा है मेरा साथ एक अँधेरी सुरंग में चलने के जैसा है ,
दिमाग : तो क्या उनकी कोई गलती नही है ,
दिल : नही जरा भी नही , जब किसी को सोना मिल सकता है तो वो पीतल से समझौता क्यों करे
दिमाग : क्या तू उन्हें किसी और के साथ देख पायेगा …????????????????
( इस बार दिल खामोश था , उसके पास सब के हर सवाल का जवाब था , लेकिन आज इस सवाल का कोई जवाब न था , अनगिनत किस्से कहनियों को शब्द दिए थे उसने , पर आज इस सवाल में वो निशब्द था ,)
दिल : तो अब आगे क्या ।?
उसने खाली सी नजरो से ढलते हुए सूरज की तरफ देखा ,
दिल : लेकिन मेरे बाद माँ बाप का क्या होगा …?
दिमाग : बीमे के 15 लाख मिल जायेगे , उनकी कट जाएगी ,
अब दिल और दिमाग जंग छोड़ कर यादो के गलियारे में पहुंच गए थे , यादे जो बीते 6 सालो में हर पल जहन में जमा होती गयी थी ,
कॉलेज के पहले दिन की लड़ाई से लेकर , उस दिन के आखरी कॉल तक , पैदल चलने से ले कर , बारिश में भीगते हुए लांग ड्राइव तक ,वो पहला शेर जो पहली बार लिख दिया था उसे
” इश्क़ ने महबूब को अपना खुदा तक कह दिया; जब भी आँखें बंद की, बस तेरा चेहरा दिखा।”
याद आ रहा था की जब तुम एग्जाम देकर पसीने से भीगी हुयी बहार आई थी , और मैंने सबके सामने तुम्हरे चेहरे को साफ करने लगा था , कितना डाटा था तुमने मुझे इसके लिए , सारे सपने सारी सोच तो तुम से शुरू और तुम पर ही खत्म होती थी , बेडरूम के पर्दो के रंग से ले कर बच्चो के कपड़ो तक हर सपना तो हमने साथ में ही देखा था , देखो मैंने तुम्हारे लिए जिम भी शुरू कर दिया था , उसे तो हर पल लगता था की वो उसके साथ बहुत खुश है , ये गीत ,गजल सब तुम्हारे लिए ही तो था , वो तो हमेशा यही सोचता था की घर भले ही छोटा हो पर हमारा प्यार इतना बड़ा है कि इसमें सब कुछ आ जाता , पर शायद वो गलत था वो .
अब अँधेरे ने दिन को अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया था , ठीक उसकी ज़िंदगी की तरह
लड़के ने सब खत्म करने का फैसला ले लिया था …।
तभी उसे लगा कि शायद कोई उसे कोई उसे पुकार रहा है
लड़के ने पलट कर देखा ढलते अंधरे के बीच एक 6 -7 साल का बच्चा खड़ा हुआ था , नंगे पैर एक गन्दी सी हाफ पैंट और काली हो चुकी बनियान में , उसके हाथ में 2 भुट्टे थे जो वो उसे बेचना चाह रहा था ,
लड़के ने उसे पास बुलया और ध्यान से देखा रंग गोरा था , लेकिन गरीबी की धुंध ने उसे ढक लिया था ,
बच्चे ने बोला ” भइया भुट्टा ले लो , 10 का 1 है , लेकिन ये आखरी है तो 15 के ले लो ” एक पल के लिए लगा की ज़िंदगी ने कितनी जल्दी इसे सारा मैनेजमेंट सीखा दिया है।
लड़के ने पूछा ” तुम्हे डर नही लगता है , अँधेरे में यंहा घूमते हुए .? ”
बच्चा ” भइया हम तो बहुत दिन से यही कर रहे है , अम्मा चाय बनाती है , भुट्टा भून कर देती है और हम सब को बेचते है , पूरा दिन का यही काम है ”
लड़का ” और तुम्हरे पापा क्या करते है ”
बच्चा ” 2 साल पहले पी कर वो इन्ही गंगा में कूद कर मर गए रहे “
लड़का आवक रह गया था ये सुन कर , उस बच्चे से नजरे मिला पाने की ताकत नही थी उसमे , उसने अपनी जेब से आखरी 20 का नोट निकल कर उसके हाथ में पकड़ा दिया , बच्चे ने भुट्टा देना चाहा तो इंकार कर उसके सर पर हाथ फिरया , बच्चा ख़ुशी से वापस भाग गया ,
लड़का खुद में ही शर्मिंदा था ,
क्या करने जा रहा था वो ? किसी एक के प्यार को न पा सकने पर उन के प्यार को अनदेखा कर रहा था जिन्होंने उसे इतना बड़ा किया ?
इतनी जल्दी वो कैसे हार गया था ?
वो सपना कैसे भूल गया था , कि उसे उन सब के लिए कुछ करना जिसे उसकी जरूरत है ?
मेरा प्यार इतना छोटा कैसे हो सकता है ?
क्या उस छोटे से बच्चे का उसके प्यार पर हक़ नही है ?
बाहर अँधेरा बढ़ रहा था , और भीतर एक नया उजाला फ़ैल रहा था ,
उसने एक फैसला कर लिया था , कि उसे उन सब का हो जाना है जिन्हे उसके साथ और प्यार की जरूरत है। .
तभी उसके मोबाईल की SMS टोन ने टिक टिक किया , और उसके चेहरे पर एक मुस्कान फ़ैल गयी
मैसेज था ” i love you मुन्ना , मैंने बहुत सोचा पर मै तुम्हारे बिना नही रह सकती हू , मुझे सिर्फ तुमहरा साथ चाहिए और कुछ भी नही “
लड़की के दिल ने दिमाग का फैसला मानने से इंकार कर दिया था .
_______________
म्रदुल कपिल
लेखक व् विचारक
18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया . ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी हाऊसिंग कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l
पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो , वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती जिंदगी का .