सुलक्षणा राजवंशी की पाँच रचनाएं
1-
चुपके से
झील में
उतर जाते हो
चन्दा
तुम
कितना
शरमाते हो……!
2-
बर्फ़ कई दिनों से जमी थी उसपर
आख़िर कल रात पिघल कर बादल
धरती की गोद में बरस/ बिलख पड़ा……
अब तक नम है नर्म दूब………..!
3-
चाँद की गोद में
सर रख कर
कर रहा है आराम
दिन भर का
हारा थका सूरज……
ओढ़ा दी है
रत्नजड़ित चूंदड़ी
चन्दा ने
रश्मियों को……….
लौट आओ
सूरज के जागने से पहले……!
4-
कुआं कभी नहीं आया
चलकर तेरे पास
बुझाने को अपनी प्यास
बावरी नदी
कहाँ चली जाती है तू
समन्दर खारे के पास……..!
इन्हें तो बड़ी चिंता है
खोते नहीं अपना सम्मान…..!!
5-
दबे पाँव आकर उलट दिया
घूँघट पगले सूरज ने रात
लजा कर छुप गयी सखी भोर के पीछे।
हड़बड़ा के उठ गयी भोर
सोई थी जो अँखियाँ मीचे
इधर रश्मियाँ भी शरारती
रात का पल्लू खींचें…..!
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रेलवे में एडी. चीफ मेडिकल सुपरिंटेंडेंट. के पद पार तैनात
लिखना , पढ़ना , अभिनय करना तथा पेंटिंग करना बेहद पसंद है
संपर्क – 09001197505
प्रकृति के करीब की बहुत सरल और सहज कविताएँ ।बहुत उम्दा ।
बेहद गम्भीर लेखन बधाई