आखिर किसान को क्या चाहिए ?

 – राधा मोहन सिंह –

poor-farmers-of-india,poor-लातूर, मराठवाड़ा, महाराष्ट्र में तीन साल के सूखे के बाद जुलाई के आखिर में जब बारिश हुई तो किसानों ने खुशियां मनाईं। देश के बाकी हिस्सों में भी काले बादल झमाझम बरस रहे हैं। कई साल के सूखे के बाद बेजान पड़ी धरती पर टप-टप पड़ती बारिश की बूंदें जैसे खेतों में अमृत घोल रही हैं। घिर आई बरसात ! घन घिर आए, घिर-घिर छाए, छाए री –  दिन रात, फिर आई बरसात!

खेत किसी भी किसान की जिंदगी का अहम हिस्सा होता है। खेत से किसान को जीवन की उष्मा और ऊर्जा मिलती है। किसानों की यही ताकत देश को मजबूती देती है। देश में लगभग 14 करोड़ किसान हैं। जब सारे किसानों के खेतों में एक साथ फसलें लहलहातीं हैं तो पूरा देश अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा होता है।

किसान इस देश का अन्नदाता है। अगर अन्नदाता तकलीफ में हो तो राष्ट्र में खुशी का माहौल नहीं रह सकता। अन्नदाता को ज्यादा देर तक तकलीफ में भी नहीं छोड़ा जा सकता। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को इसका एहसास है तभी वह पूरी ईमानदारी से किसानों के कल्याण के लिए काम कर रहा है।

आखिर किसान को क्या चाहिए ? उसकी समस्याएं क्या-क्‍या हैं? माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इन पर विचार किया और फिर  उसकी हर परेशानी का समाधान लेकर आए। समस्या चाहे खेत के पानी की हो, उन्नत बीज- रोपण सामग्री की हो, खाद- उर्वरक की हो, फसल की सुरक्षा की हो, बाजार की हो या बाजार में उपज का बढ़िया दाम दिलाने की हो-  प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों की अलग – अलग परेशानी के लिए अलग – अलग योजना बनायी और उन्हें लागू की। अब इन योजनाओं के अच्छे परिणाम आने लगे हैं।

प्रधानमंत्री ने सबसे पहले किसान के खेत की मिट्टी पर ध्यान दिया। किसानों के खेत की मिट्टी के स्वास्थ्य की जांच और उसकी रक्षा के लिए उन्होंने सॉयल हेल्थ कार्ड का उपाय सुझाया  और साथ में नीम लेपित यूरिया का विचार दिया। अभी तक 2.4 करोड़ से ज्यादा किसानों को हेल्थ कार्ड मिल चुके हैं  और बाकी किसानों को कार्ड मुहैया कराने का काम भी तेजी से चल रहा है। सॉयल हेल्थ कार्ड की वजह से किसान अब अपने खेत में उतना ही उर्वरक और रसायन डालता है जितनी मिट्टी को जरूरत है। अब 100 किलो यूरिया की जगह 80 किलो नीम लेपित यूरिया में किसान का काम चल जाता है। सॉयल हेल्थ कार्ड और नीम लेपित यूरिया की बदौलत किसानों के खेत को जरूरी पोषक तत्व मिल रहे हैं और लागत खर्च में भी कमी आ रही है। किसान पर बोझ कम पड़े, इसके लिए केन्द्र सरकार ने डीएपी उर्वरक और पोटाश के दाम भी घटा दिए हैं। इस साल यूरिया का भी देश में रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। यहां यह बताना जरूरी है कि किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड देने में कई राज्य बड़ी धीमी गति से काम कर रहे हैं।

अब बात पानी की। यह प्रकृति की कृपा है कि इस बार मानसून हम पर मेहरबान है लेकिन देश के हर हिस्से में बारिश एक समान नहीं होती है और देश के ज्यादातर हिस्सों में किसान मानसून पर ही निर्भर रहते हैं। मानसून पर निर्भरता कम करने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक दीर्घकालिक उपाय सुझाया और जुलाई 2015 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) शुरू की। इस योजना का मकसद है हर खेत को पानी। इस योजना की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे लागू करने में तीन – तीन मंत्रालय लगे हुए हैं। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 27 जुलाई, 2016 को पीएमकेएसवाई को मिशन मोड में लागू करने की स्वीकृति दी है। मिशन के अनुसार सिंचाई की लंबित 99 परियोजनाओं को 2019-20 तक 77595 करोड़ रुपये (48546 करोड़ रुपये प्रोजेक्ट कार्य एवं 29049 करोड़ रुपये कमांड क्षेत्र विकास के लिए) की अनुमानित लागत से पूरा किया जाएगा। यह राशि नाबार्ड द्वारा ऋण के रूप में उपलब्ध कराई जाएगी,जिसमें 20,000 करोड़ रुपये का सिंचाई फंड सृजित करने की घोषणा 2016-17 के बजट में की गई है। इनमें से 23 परियोजनएं इसी वर्ष पूरी की जा रही हैं। इन परियोजनाओं के माध्यम से 76.03 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई के अंतर्गत लाने का लक्ष्य है। सरकार ने अब कॉफी, चाय, रबर जैसी अन्य व्‍यावसायिक फसलों को भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत लाने का फैसला किया है। सरकार किसानों को उच्च पैदावार के बीज, रोपण सामग्री के साथ यांत्रिक उपकरण और सब्सिडी पर मशीन भी उपलब्ध करा रही है, ताकि उनकी फसल अच्छी और भरपूर हो।

सरकार कृषि लागत कम कर उत्पादन बढ़ाना चाहती है। लागत कम करने के लिए सरकार ने परम्परागत कृषि विकास योजना शुरू की है जिसमें पूर्वोत्‍तर राज्यों सहित देश भर में जैविक खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जा रहा है। जैविक खेती में रसायनों की जगह प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल होता है।

अब बात फसलों की सुरक्षा की। किसानों की फसलों को सुरक्षित करने के लिए देश भर में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू की जा रही है।  इसमें एक मौसम, एक दर का प्रावधान है। खरीफ के लिए 2 प्रतिशत, रबी के लिए 1.5 प्रतिशत और व्यावसायिक और बागवानी फसलों के लिए 5 प्रतिशत प्रीमियम रखा गया है। यह अब तक की सबसे न्यूनतम प्रीमियम दर है। इस योजना में बुआई से पहले और कटाई के बाद भी फसलों की सुरक्षा का प्रावधान है। मुआवजों के आकलन के लिए स्मार्ट फोन के साथ सैटेलाइट तकनीक वाले देशी ड्रोन के इस्तेमाल की तैयारी भी हो रही है। खरीफ 2016 की फसलों के लिए देश के ज्यादातर राज्यों में यह योजना लागू की जा रही है।

सरकार ने आपदा राहत के मानकों में भी परिवर्तन किया है। पहले 50 प्रतिशत से अधिक फसल के नुकसान पर जो मुआवजा मिलता था, वह अब 33 प्रतिशत के फसल नुकसान पर मिलेगा। भुगतान की राशि को भी डेढ़ गुना कर दिया गया है। अतिवृष्टि से खराब हुए टूटे और कम गुणवत्ता वाले अनाज का भी पूरा समर्थन मूल्य देने का फैसला सरकार ने किया है। प्राकृतिक आपदाओं में मृतकों को पहले मात्र 1.5 लाख रुपये मिलता था, अब मोदी सरकार ने उसे बढ़ाकर 4 लाख रुपये कर दिया है।

वर्ष 2010-2015 के लिए राज्य आपदा राहत कोष में 33580.93 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गये थे जबकि वर्ष 2015-2020 के लिए यह राशि बढ़ाकर 61,220 करोड़ रुपये कर दी गयी है। वर्ष 2016-17 के लिए एसडीआरएफ से सूखा प्रभावित 10 राज्यों को पहली किस्‍त के तौर पर 2551 करोड़ रुपये जारी किए गये हैं।

सूखा एवं ओलावृष्टि से प्रभावित राज्यों को यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान चार वर्षों 2010-11, 2011-12, 2012-13, 2013-14 में एनडीआरएफ से जहां राज्यों द्वारा 92043.49 करोड़ रुपये की सहायता राशि की मांग की गयी, वहीं उन्हें 12516.20 करोड़ की राशि स्वीकृत की गयी। एनडीए सरकार द्वारा मात्र एक वर्ष 2014-15 में राज्यों द्वारा मांगे गये 42021.71 करोड़ रुपये के सापेक्ष 9017.998 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गये। वर्ष 2015-16 में राज्यों द्वारा 41,722.42 करोड़ रुपये की मांग के सापेक्ष अब तक रु 13,496.57 करोड़ रुपये स्वीकृत किए जा चुके हैं।

एनडीआरएफ के तहत केन्द्र शासित राज्यों के लिए सहायता की कोई योजना नहीं थी। मोदी सरकार ने 2015-16 में केन्द्र शासित आपदा राहत कोष (यूटीडीआरएफ) के लिए 50 करोड़ का आवंटन किया।

अब बात बाजार की। किसान बड़ी हसरत से अपने खेत में बुआई करता है, फसल तैयार करता है, महीनों बाद, तैयार फसल देख कर उसकी हसरतें परवान चढ़ने लगती हैं। वह फसल काट कर  मंडी ले जाता है, और वहां जब उसकी फसलों के औने – पौने दाम लगते हैं तो उसका दिल डूब जाता है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों की सदियों पुरानी इस समस्या को समझा और फसलों की ऑनलाइन बिकवाली के लिए देश भर में कृषि बाजार या यूं कहें ई- मंडी खोल दी,  नाम दिया – राष्ट्रीय कृषि बाजार। 14 अप्रैल, 2016 को खुले राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-मंडी) के जरिए अब किसान अच्छी कीमत पर अपनी उपज कहीं भी बेच सकते हैं। अब वे बिचौलियों और आढ़तियों पर निर्भर नहीं हैं। 16 जुलाई तक ई- मंडी से 17 हजार से ज्यादा किसान जुड़ चुके हैं और हर दूसरे दिन उनकी संख्या बढ़ती जा रही है। मार्च 2018 तक 585 मंडियों को राष्ट्रीय कृषि बाजार से जोड़ दिया जाएगा। सरकार किसानों को बाजार मुहैया कराने के साथ कृषि उत्पाद के भंडारण और बेहतर आपूर्ति श्रृंखला आधारित कृषि विपणन की भी व्यवस्था कर रही है ताकि जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पाद को बचाया जा सके और किसान को अच्छी कीमत दिलाने में उनकी मदद की जा सके।

इस बीच, अच्छी बात यह हुई है कि किसानों को राष्ट्रीय कृषि बाजार से अपनी फसलों की अच्छी कीमत मिलनी शुरू हो गयी है। अब धीरे–धीरे उसके पास खेती के अन्य दूसरे साधनों से भी पैसे आएंगे। किसानों को पारम्परिक खेती के साथ पशुपालन, डेयरी, बागवानी, कृषि वानिकी, मछली पालन, कुक्कुट पालन, मधुमक्खी पालन आदि की भी जानकारी दी जा रही है ताकि वे यदि चाहें तो इन्हें अपनाएं और अपनी आमदनी बढ़ाएं। इसके लिए उन्हें आर्थिक मदद भी दी जा रही है। देश में पहली बार देशी नस्लों के संरक्षण और संवर्धन के लिए एक नई पहल “राष्ट्रीय गोकुल मिशन” शुरू की गयी है। दो नये राष्ट्रीय कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर, एक उत्तर भारत और एक दक्षिण भारत में खोले जा रहे हैं। सरकार ने मछली पालन के  क्षेत्र में नीली क्रान्ति का आह्वान किया है जिसके जरिए अंतर्देशीय एवं समुद्री मात्‍स्‍यिकी के एकीकृत विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके तहत मछली उत्पादन बढ़ाया जा रहा है और मछुआरों का सशक्तिकरण किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य दिया है जिसे हासिल करने के लिए कृषि मंत्रालय हर मुमकिन कोशिश कर रहा है। किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए रणनीति बनाने के लिए सरकार ने डा़. अशोक दलवई, अपर सचिव की अध्‍यक्षता में कृषि मंत्रालय में एक समिति का गठन किया है। नाबार्ड भी इसमें पूरा सहयोग दे रहा है।

कृषि मंत्रालय देश भर में दलहन और तिलहन का उत्पादन बढाने के लिए विशेष योजनाएं चला रहा है। सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत दलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए 13981.08 लाख रुपये की लागत से 93 सीड हब बनाने जा रही है। देश भर में ऐसे 150 सीड हब बनाए जाएंगे। इन सीड हब से दलहन का उत्पादन बढ़ेगा और चावल और गेहूं की तरह हम जल्द ही दलहन में भी आत्मनिर्भर हो जाएंगे।

कृषि शिक्षा, अनुसंधान एवं विकास को नयी गति दी जा रही है। पूर्वी भारत में दूसरी हरित क्रान्ति में तेजी लाने के लिए बिहार में देश के दूसरे राष्ट्रीय समेकित कृषि अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई है। गंगटोक, सिक्किम में देश के सबसे पहले राष्ट्रीय जैविक कृषि अनुसंधान संस्थान की स्थापना की जा रही है। साथ ही इस वर्ष के बजट में भारी वृद्धि की गई है। कृषि शिक्षा को व्‍यावहारिक, गतिशील और रोजगारोन्मुख बनाने के लिए स्नातक स्तर के कृषि विज्ञान के पाठ्यक्रम में व्यापक बदलाव किए गये हैं। कृषि विज्ञान के स्नातक स्तर के सभी पाठ्यक्रमों को प्रोफेशनल डिग्री घोषित कर दिया गया है। राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय बना दिया गया है। इसके साथ ही देश में अब केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालयों की संख्या तीन हो गयी है।

केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय खेती–बाड़ी को लाभ का पेशा बनाने के साथ इसे नये रोजगार सृजित करने का जरिया बनाने के लिए पूरी निष्ठा से काम कर रहा है। कृषि चूंकि राज्य का विषय है इसलिए बिना राज्यों के सहयोग के कृषि योजनाओं को पूरे देश में लागू करना संभव नहीं है। कृषि मंत्रालय को उम्मीद है राज्य किसान और देश हित में योजनाओं को लागू करने में केन्द्र का सहयोग करेंगे। कृषि मंत्रालय यह आशा भी करता है कि खरीफ की फसलों के साथ किसानों के घर खुशियां लौटेंगी और रबी के बाद भी यह सिलसिला यूं ही जारी रहेगा।

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राधा मोहन सिंह

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री भारत सरकार

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