डॉ. मधु प्रधान के गीत
1 नमन तुम्हें
नमन तुम्हें मेरे भारत,
तुमको हर साँस समर्पित है !!यह चन्दन सी माटी मधुमय,
जो जीवन सुमन खिलाती है !
भीनी-भीनी मलयानिल भी
होले-होले दुलराती है !कण-कण में बिखरी सुन्दरता,
षडऋतुओं पर मन मोहित है !
नमन तुम्हें मेरे भारत,
तुमको हर साँस समर्पित है !!और कहाँ हम पायेंगे
ममता-करुणा से भीगे मन
रंग-बिरंगे फूलों से
सजा झूमता हुआ चमनहै धर्म यहाँ का मानवता
शुभ गंगा-जमुनी संस्कृति है
नमन तुम्हें मेरे भारत,
तुमको हर साँस समर्पित है !!वन्दनीय है वर्तमान
गौरवमय है जिसका अतीत
सोपान प्रगति के छू लेगा
आगत भी, है मन में प्रतीतइसकी गुरुता गरिमा पर
सम्पूर्ण विश्व आकर्षित है !
नमन तुम्हें मेरे भारत,
तुमको हर साँस समर्पित है !!
2 ममता का स्वाद
माँ
मैने माँ
शब्द सुना है
पर नहीं जानती माँ को
मुझें तुम्हारी कुछ झलकें याद हैं
केवल कुछ छोटी- छोटी बातें
बुखार से तपती हुई मेरी हथेलियों को
धीरे- धीरे सहलाना
मेरा थोड़ी देर के लिये भी तुम्हारी आँखों से
ओझल होने पर
तुम्हारी बेचैनी,
मुझे सामने देख
तुम्हारा प्यार से मुस्कुराना,
मैने जिया है एक ऐसा जीवन
जिसमे ममता की छाँह नहीं थी
लोग कहते हैं
मै तुम्हारा प्रतिबिम्ब हूँ
शायद सच होगा,
मैने अपने मन मे प्यार का
उमड़ता सागर पाया है
जिसे उलीचती हूँ दोनो हाथों से ,
बादलों की तरह
बिना यह देखे कि
यह अंगार है कि रेत
तालाब है या खेत,
कभी कभी कुछ अंखुएं मुस्कुराते देख
मै खिल उठती हूँ,
कभी तपती रेत पर पानी कि तरह
गुम नेह का प्रतिफल देख ,
स्वयं को निष्फल मान पीड़ा होती है ,
कुछ ठिठकती हूँ
पर रुकती नहीं,
क्योंकि मै हूँ एक
अविरल बहने वाली नदी की एक प्रतिछाया/फिर भी ,
अपने कोख जनों की
पीड़ा से मैं बेहाल हो जाती हूँ,
उनकी खुशियाँ देख निहाल हो जाती हूँ/तब,
सोचती हूँ शायद ,तुम भी ऐसा ही करती ,
आज मै भी माँ हूँ पर
जी चाहता है कि,
एक बार फिर से बेटी हो जाऊं,
चख लूँ माँ की ममता का स्वाद
3
लाया फागुन डाकिया, वासन्ती उपहार।
गोरी ने कुछ मुदित हो, खोले मन के द्वार।।
जाने क्या उसने कहा, वन-वन खिले पलाश।
पी कर जैसे वारूणी, झूम रहा मधुमास।।
दिन रंगोली रच रहे, रातें हुई सितार।
सुधियाँ अक्सर छेड़ती, मन के सोये तार।।
हर दिन फागुन सा लगे, फूलों का त्योहार।
ढाई आखर में बसा, ये सारा संसार।।
प्रीति पगी पाती पढ़ी, जब जब आई याद।
वर्तमान का विगत से, हुआ मौन संवाद।।
नित-नित बदले रंग ये, मौसम की चैपाल।
इन्द्र धनुष की छटा सी, हरी गुलाबी लाल।।
4
आओ बैठे नदी किनारे
गीत पुराने फिर दोहराएँ
कैसे किरणों ने पर खोले
कैसे सूरज तपा गगन में
कैसे बादल ने छाया दी
कैसे सपने जगे नयन में
सुधियाँ उन स्वर्णिम दिवसों की
मन के सोये तार जगायें
जल में झुके सूर्य की आभा
और सलोने चाँद का खिलना
सिंदूरी बादल के रथ का
लहरों पर इठला के चलना
बिम्ब पकड़ने दौड़े लहरें
खुद में उलझ उलझ रह जाएँ
श्वेत पांखियों की कतार ने
नभ में वंदन वार सजाये
प्रकृति नटी के इन्द्र जाल में
ये मन ठगा ठगा रह जाये
धीरे धीरे संध्या उतरी,
लेकर अनगिन परी कथाएं
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डॉ. मधु प्रधान
शिक्षा – एम.ए.(हिंदी), बी.एड., एम.बी.ई.एच.
बाल साहित्य – बाल साहित्य संग्रह, बाल कथा संग्रह, बाल उपन्यास, राष्ट्र गीत संग्रह, दूरदर्शन से अनेकों बार गीत ग़ज़ल प्रसारण
2014 – उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा वर्ष 2013 में प्रकाशित कृति ‘नमन तुम्हें,मेरे भारत’ पर नज़ीर अकबराबादी सर्जना पुरस्कार ,2013 – पं. बाल मुकुंद द्विवेदी स्मृति सम्मान ,2012 – मानस परिषद् द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान ,2009 – मानव विकास शिक्षा समिति द्वारा प्रख्यात गीतकार सम्मान,2003 – भारतीय बाल कल्याण संस्थान, उत्तर प्रदेश द्वारा बाल साहित्यकार सम्मान ,2001 – उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा राजभाषा सम्मान प्रशस्ति पत्र,2000 – अमेरिकन बायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट द्वारा रिसर्च बोर्ड आफ एडवाईजर्स में नामांकन, 1999 – सांस्कृतिक साहित्य खनन श्रंखला, सावनेर, नागपुर द्वारा काव्य वैभव श्री सम्मान ,1998 – जैमनी अकादमी, पानीपत हरियाणा द्वारा अखिल भारतीय लघु कथा प्रशस्ति पत्र ,1997 – पानीपत अकादमी हरियाणा द्वारा मानद आचार्या उपाधि ,प्रकाशित कृति – नमन तुम्हें, मेरे भारत राष्ट्र गीत संग्रह
संपर्क – 3ए/58ए , आजाद नगर , कानपूर मोब. 08562984895, 08187945039