– तनवीर जाफरी –
विश्व में बढ़ती बेरोज़गारी कहें,पुण्य कमाने की लालसा समझें,जन्नत या स्वर्ग जाने जैसी महती आकांक्षा कहें या अपने पूर्वजों से मिली विरासत, जो भी हो आज ‘धर्म उद्योग’ पूरी दुनिया में खूब फल-फूल रहा है। चूंकि प्रत्येक धर्मावलंबी अपने-अपने धर्म के विषय में यही दावा करते सुने जाते हैं कि उन्हीं का धर्म पृथ्वी का सर्वश्रेष्ठ धर्म है लिहाज़ा इस कथन के अनुसार तो पूरी धरती पर चारों ओर अमन,शांति,प्यार, मोहब्बत, सद्भाव,सत्य,अहिंसा,सहयोग तथा परमार्थ का वातावरण होना चाहिए। पृथ्वी पर कहीं भी भष्टाचार, हत्या,लूटपाट, बलात्कार,चोरी,झूठ,फरेब,मक्कारी,चरित्रहीनता जैसी बातें तो होनी ही नहीं चाहिए। परंतु हालात तो ठीक इसके विपरीत हैं। पूरे विश्व में त्राहि-त्राहि मची हुई है। आए दिन इंसान के हाथों इंसानों की बेरहमी से हत्याएं की जा रही हैं। चरित्रहीनता तो ऐसे चरम पर पहुंच गई है कि आम आदमी की तो बात ही क्या करनी बड़े-बड़ े,राजनेता, अधिकारी व ‘धर्माधिकारी’ आए दिन किसी न किसी दुव्र्यसन,व्याभिचार व सेक्स स्कैंडल में शामिल होते देखे जा रहे हैं। ज्ञान व धर्म की शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थान तथा इनके गुरू जिनको भगवान के बाद का दूसरा दर्जा दिया गया है वे भी चरित्रहीनता में लिप्त पाए जा रहे हैं। हद तो यह है कि कई-कई घंटे अथवा सारा-सारा दिन अपने आराध्य की पूजा का ढोंग रचने वाले क्या धर्मगुरु,क्या राजनेता तो क्या व्यवसायी वर्ग के लोग सभी भ्रष्टाचार,लूट- खसोट,चरित्रहीनता,जमाखोरी,स्वार्थ,मिलावटखोरी,पराए माल अथवा सरकारी अथवा किसी कमज़ोर व्यक्ति की ज़मीन-जायदाद को हड़पने जैसी बुराईयों का शिकार हैं।
ऐसे में एक प्रश्र यह है कि क्या इतने अधिक धर्म प्रचार के बाद व समाज में बेतहाशा बढ़ते उपदेशकों के प्रवचनों को सुनने के बाद तथा दुनिया में आए दिन नए-नए बनते जा रहे चर्च,मस्जिद,मंदिर,गुरुद्वारे आदि के संचालन के बाद तथा इनमें प्रवचन कर्ताओं की आई बाढ़ के बावजूद आिखर इंसान इतना अधिक क्यों गिरता जा रहा है? कहां तो प्रत्येक समाज के व्यक्ति का दावा है कि उसी का धर्म सर्वश्रेष्ठ है उसी के धर्म की शिक्षाएं सर्वोत्तम हैं। और कहां उसी के समाज के लोग अनेकानेक सामाजिक बुराईयों के शिकार भी हैं। आिखर ऐसा क्यों?धर्म के आधार पर एक-दूसरे की आलोचना करने में दिलचस्पी रखने वाले लोग प्राय: आंखें मूंदकर यह ‘फतवा’ जारी कर देते हैं कि चूंकि अमुक व्यक्ति अथवा उसके समाज की धार्मिक शिक्षाएं ही गलत हैं अत: उसी कारण से वह व्यक्ति या समाज तमाम बुराईयों का शिकार है। उसका धर्मग्रंथ उसे गलत शिक्षा देता है, उसके शिक्षण संस्थानों में गलत शिक्षा दी जाती है जिसके परिणामस्वरूप वह व्यक्ति या उसका समाज गलत रास्ते पर है और नाना प्रकार की बुराईयों का शिकार है। क्या यह धारणा सही है? अथवा ऐसी धारण ही समाज में और अधिक वैमनस्य पैदा करती है? किसी भी धर्म को संचालित करने वाले व्यक्ति ने अथवा अवतार या महापुरुष ने आिखर अपनी शिक्षओं को यह सोचकर लोगों के बीच क्यों प्रचारित किया होगा कि समाज में बुराईयां फैलें या एक-दूसरे से नफरत करें अथवा लड़ाई-झगड़ा करें? उन महापुरुषों,अवतारों,पैगंबरों आदि ने आिखर यह क्योंकर चाहा होगा कि उनके अनुयायी भ्रष्ट हों,व्याभिचारी हों, किसी कमज़ोर को दबाएं या सताएं अथवा दूसरे चरित्रहीनता व अमानवीय कार्यों में सलिप्त हों?
यदि हम किसी भी धर्म से संबंधित किसी भी महापुरुष या अवतार के विषय में अध्ययन करें तो हमें किसी के भी जीवन चरित्र में अथवा उनकी शिक्षाओं या संदेशों में किसी भी प्रकार की कमी अथवा त्रुटि नहीं मिलेगी। बजाए इसके ऐसे महापुरुष,अवतार या पैग़ंबर केवल अपने अनुयाईयों के लिए ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बनकर पृथ्वी पर अवतरित हुए दिखाई देते हैं। उनमें स्वार्थ,हिंसा,चरित्रहीनता के बजाए त्याग,तपस्या,परमार्थ,सद्भाव तथा सौहाद्र्र के दर्शन होते हैं। इसी प्रकार सभी धर्मों के धर्मग्रंथ भी हमें सीधे व सच्चे रास्ते पर चलने की शिक्षाएं देते हैं। यहां एक बात और भी काबिलेगौर है कि पृथ्वी पर विभिन्न धर्मों में स्वीकार्य चार पुस्तकों को आसमानी किताबें बताया गया है। अर्थात् इनमें वह बातें संकलित हैं जो ईश्वर की ओर से संदेश के रूप में इंसानों को भेजी गई हैं। अब यहां एक प्रश्र यह है कि जब ईश्वर की ओर से इंसानों को उपलब्ध कराई जाने वाली जीवन की सर्वोपयोगी चीज़े ऑक्सीजन,हवा,पानी तथा सूर्य के प्रकाश पर किसी धर्म विशेष के लोगों का अधिकार नहीं और खुदा की दी हुई यह सबसे बेशकीमती जीवनोपयोगी चीज़ें जिनके बिना किसी भी प्राणी के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती वह किसी की निजी जागीर अथवा मिलकियत नहीं हो सकतीं तो फिर आिखर यह कैसे मान लिया जाए कि किसी भी आसमानी किताब में किसी समुदाय विशेष के लोगों द्वारा संकलित किया गया आसमानी संदेश उसके अपने समुदाय की निजी मिलकियत है? ज़ाहिर है ईश्वर की सभी चीज़ों पर समस्त प्राणियों का समान अधिकार है। और जो ईश्वर अपने प्राणियों के जीवन के लिए प्रत्येक संभव ज़रूरी चीज़ें उपलब्ध करा सकता है वह अपने किसी भी आसमानी संदेश में नफरत अथवा किसी भी प्रकार की कोई भी बुराई का संदेश कतई नहीं दे सकता।
फिर वही सवाल कि आिखर इन सब बातों के बावजूद दुनिया में बुराईयां आिखर क्योंकर बढ़ती जा रही हैं? ज़ाहिर है यह बात तो किसी भी रूप में स्वीकार नहीं की जा सकती कि किसी का धर्म या धर्मग्रंथ बुरा है या उसकी शिक्षाएं बुरी हैं। परंतु यह तो एक कड़वी सच्चाई है ही कि समाज में पहले से कहीं अधिक बुराईयां बढ़ती जा रही हैं जबकि दूसरी ओर धर्म प्रचार,धर्मगुरु,धार्मिक संस्थान, धार्मिक आयोजन आदि भी बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं? इस विमर्श का अंत्तोगत्वा यही निष्कर्ष निकलता है बुराई न तो किसी धर्म या धर्मग्रंथ में है न ही उसकी शिक्षाओं में। बल्कि बुराईयां व कमियां किसी भी व्यक्ति में हो सकती हैं चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित हो यहां तक कि चाहे वह कथित धर्मगुरु हो किसी धार्मिक अथवा शैक्षणिक संस्था का शिक्षक हो,ऊंचे से ऊंचे पद पर बैठा धर्माधिकारी या राजनेता हो, बड़े से बड़े पद पर बैठा सरकारी अधिकारी हो कोई भी व्यक्ति अपनी बुराईयों का व्यक्गित् रूप से स्वयं जि़म्मेदार है। हज़रत ईसा जैसे महान तपस्वी,त्यागी तथा परमार्थी महापुरुष द्वारा दिखाया गया मार्ग यानी ईसाईयत समाज में भेद-भाव मिटाने,छूआछूत समाप्त करने, परमार्थ तथा सेवाधर्म का मार्ग दिखाने का एक सबसे बड़ा ज़रिया है। परंतु यदि आज हज़रत ईसा की शिक्षा का अनुसरण करने वाला कोई पादरी चरित्रहीनता के आरोप में पकड़ा जाए या उसके अनुयायी महाशक्तियों के रूप में विश्व में बमबारी करते फिरें या परमाणु हथियारों का संग्रह करने लगें तो इसे हज़रत ईसा या बाईबल की शिक्षा तो नहीं कहा जा सकता? इसी प्रकार कुरान शरीफ पढऩे वाले तथा पैगंबर हज़रत मोहम्मद के अनुयायी यानी मुसलमान यदि सच्चे इस्लाम धर्म पर चलें तो उनसे इस बात की तो उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे आत्मघाती हमलावर बनें या आए दिन धर्म के ही नाम पर एक-दूसरे की हत्याएं करते फिरें। परंतु ऐसा होता तो दिखाई दे रहा है। ज़ाहिर है इसके लिए भी या तो ऐसे मिशन में शामिल लोग जि़ममेदार हैं या फिर धर्म और धर्मग्रंथ के नाम पर गलत तरीके से अपने गिरोह को भडक़ाने वाले वह लेाग जो अनेक आक्रमणकारी शासकों की ही तरह अपना राजनैतिक उल्लू सीधा करने के लिए धर्म के नाम का सहारा ले कर दुनिया में आतंक का पर्याय बनते जा रहे हैं।
यही स्थिति हिंदू धर्म में भी है। भगवान राम ने अपने आचरण से ऐसी मर्यादा प्रस्तुत की कि उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के नाम से जाना गया। अपनी सौतेली मां के वचन का पालन करते हुए अपने सौतेले भाई को राजगद्दी देकर चौदह वर्षों तक एक राजा का जंगलों में वनवास काटना और उन्हीं चौदह वर्षों में बड़ी से बड़ी परेशानियों व कठिनाईयों का सामना करना किसी भी आम व्यक्ति की कल्पना से भी परे हैं। क्या हिंदू धर्म का वह महान नायक आज अपने नाम का मंदिर बनाने के लिए बेगुनाह लेागों की लाशों का ढेर लगाने का निर्देश दे सकता है? या उनकी शिक्षाएं इस बात की इजाज़त दे सकती हैं? क्या आज इसी धर्म के कई बलात्कारी,भ्रष्ट,लोभी तथा अकूत धन संपत्ति इक_ा करने वाले तथाकथित धर्माचार्य इस योग्य हैं कि उन्हें हिंदू धर्म के देवी-देवताओं या हिंदू धर्मग्रंथों की शिक्षाओं पर अमल करने वाला संत या धर्माचार्य कहा जा सके? ज़ाहिर है कतई नहीं बल्कि यह तो कहा जा सकता है कि सभी धर्मों में पाए जाने वाले इस प्रकार के कलंक रूपी लोग अपने-अपने धर्मों,अपने-अपने धर्म के महापुरूषों तथा अपने धर्मग्रंथों को ही कलंकित करते हैं और उसकी बदनामी का भी एक बड़ा कारण बनते हैं। लिहाज़ा इनकी व्यक्तिगत् करतूतों या काले कारनामों की सज़ा निजी तौर पर ऐसे ही लोगों को दी जानी चाहिए। बजाए इसके कि इनके धर्म,उसकी शिक्षाओं या उनके धर्मग्रंथों को इसके लिए दोषी ठहराया जाए या उन्हें बदनाम किया जाए।
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Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities
Email – : tanveerjafriamb@gmail.com – phones : 098962-19228 0171-2535628
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तनवीर जी,
आप ने सही कहा है की बुराई किसी भी धर्म में नहीं है. बुराई उन धर्म के माननेवालों में है. आप ने जी चार आसमानी किताबों की बात कही तो आप को यह भी पता ही होगा की उन सारी किताबों में शैतान का ज़िक्र भी किया गयाहै. बुराई ना होती तो अच्छाई की पहचान ही नहीं होती. मुझे ग़लत मत समझना. मैं बुआरआई का पक्ष नहीं ले रहा. ले भी नही शकता.
महा भारत में भी तो वही है. बुराई के खिलाफ अच्छाई की जंग. यदि रावण ना होता तो राम की पहचान कैसे होती?
अच्छाई की महानता की पहचान बुराई के कारण है यह बात माशूर रायटर, चिंतक, कवि, पेंटर ख़लील जिब्रान ने अपनी किताब’ब्रोकन विंग्स’ में एक चर्च और पादरी के बीच हुए वार्तालाप के ज़रिए बहुत ही अच्छे अंदाज़ में कही है.
२०१३ में मेरे एक गुजराती लेख में मैने लिखा था की धर्म इंसानों के लिए बने हैं और ना की इंसान धर्मों के लिए.
धर्मों ने अच्छाई और बुराई के दोनों रास्ते हमें बता दिए हैं. चुनना इंसान को है. और चुनने के लिए अकल, सोच, साँझ बूझ दी है. आज भी और पहले भी इंसान इन दोनों के बीच उलझा हुआ है. अच्छाई और बुराई की यह जंग तो कभी ना ख़त्म होने वाली जंग है.
खैर, यह चर्चा तो चलती रहेगी. और चलनी भी चाहिए. आप ने अच्छा लेख लिखा है. बधाई.
फ़िरोज़ ख़ान
सीनियर एडिटर, कालमिस्ट, मोटीवेटिंग स्पीकर, ह्यूमन राईट एक्टिविस्ट
टोरोंटो, केनेडा.