देश के आधुनिक इतिहास को सर्वाधिक महत्व देना क्यों आवश्यक है

– सुनील दत्ता – 

invc-newsदेश के आधुनिक युग का इतिहास इस देश में 16 वी शताब्दी में यूरोपीय शक्तियों के आगमन के साथ शुरू होता है | और वह ईस्ट इंडिया कम्पनी के व्यापार एवं राज्य के विस्तार के साथ निरंतर बढ़ता है | | फिर वह इतिहास 1858 में ब्रिटिश महारानी द्वारा देश की सत्ता की बागडोर सम्भालने तथा 1947 में उस सत्ता की बागडोर देश के प्रतिनिधियों के हाथ आने के बाद से वर्तमान समय तक चलता आ रहा है | आधुनिक युग के हमारे समाज की जड़ो का इतिहास देश के प्राचीन काल के इतिहास के बाद के दौर में उसमे होते रहे परिवर्तनों का इतिहास मध्य युग के इतिहास में समाहित है |

उन दोनों युगों का इतिहास भी इस राष्ट्र व समाज के उद्भव एवं निर्माण तथा उसके क्रमिक विकास को जानने समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है | लेकिन आधुनिक युग का इतिहास उन युगों की अपेक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है | क्योकि यह इतिहास नही बल्कि लगभग 300 सालो से लेकर वर्तमान में चलते रहे आधुनिक युग का विस्तार है | यह इतिहास भी और वर्तमान भी है | आज की बहुतेरी उपलब्धियों और सारी समस्याओं का चलता रहा इतिहास है |

आधुनिक युग के इतिहास की दूसरी प्रमुख खूबी यह है कि यह इतिहास यूरोपीय शक्तियों खासकर ब्रिटेन द्वारा इस देश की श्रम सम्पदा की लुट के लिए आधिपत्य जमाने के इतिहास के साथ – साथ इस समाज की संरचना में आमूल परिवर्तन किये जाने का भी इतिहास है | प्राचीन काल से लेकर मध्य काल तक बनते और विकसित होते समाज और सामाजिक सम्बन्धो को खड़ा किये जाने का इतिहास है | यह एक ऐसे परिवर्तन का इतिहास है जहा युगों से चले आ रहे राष्ट्रीय एवं सामाजिक विकास – उत्थान की प्रक्रिया से हमारा बहुत हद तक सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है | इतिहास के इस परिवर्तन ने हमे प्रकृति पर आधारित कृषि व दस्तकारी की उत्पादन व्यवस्था वाले युग से आधुनिक मशीनों तकनीको वाले पूंजीवादी उत्पादन की बाजार व्यवस्था के युग में पहुचा दिया | बदलते उत्पादन विनिमय उपभोग के साथ राजनितिक सामाजिक सम्बन्धो को , मान्यताओं एवं दृष्टिकोणों को निरंतर बदलने का काम किया है |

नि:संदेह यह सामाजिक परिवर्तन समाज का गुणात्मक एवं क्रांतिकारी परिवर्तन है | लेकिन यह परिवर्तन इस देश की किसी अग्रगामी या प्रगतिशील शक्तियों के क्रांतिकारी उद्देश्यों एवं प्रयासों के चलते नही , बल्कि इस देश की श्रम सम्पदा को लुटने – पाटने और उस पर प्रभुत्व स्थापित करने के लक्ष्य से विदेशी साम्राज्यी शक्ति द्वारा लाया गया था |

यही कारण है कि न केवल यह सामाजिक परिवर्तन इस देश में निरंतर चलने – बढने वाली भारी तबाही – बर्बादी के साथ आता रहा बल्कि वह परिवर्तन धीरे धीरे करके तथा पुरानी व्यवस्था को यथासम्भव बचाते टिकाते और उसे धीरे धीरे तोड़ते हुए आ रहा है | यही कारण है कि प्राचीन एवं मध्ययुगीन प्रतिक्रियावादी एवं प्रतिगामी संबंधो मनोवृत्तियो के अवशेष प्रभावकारी रूप में आज तक चलते आ रहे है | यह राष्ट्र व समाज आधुनिक एवं पुरातन व मध्यकालीन सम्बन्धो समस्याओं के खिचड़ी समाज के रूप में चलता चला आ रहा है | इसीलिए आधुनिक युग का इतिहास इस राष्ट्र के सामाजिक परिवर्तन की अत्यंत गहरी एवं पीडादायक कमजोरी का भी इतिहास है | इसके वावजूद आधुनिक युग का इतिहास उस गुणात्मक एवं सामाजिक परिवर्तन का इतिहास है इसलिए उसके अधूरेपन एवं विकृतियों को दूर करते हुए उसे आगे बढाये जाने का ऐतिहासिक दायित्व हमारे सामने खड़ा है |
इस दायित्व को उठाने और आगे बढने के लिए भी आधुनिक युग के समग्र इतिहास को तथा उसमे हुए आर्थिक राजनितिक एवं सामाजिक परिवर्तनों के इतिहास को जानना समझना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है | फिर उससे यह निचोड़ निकालना और भी आवश्यक है की आखिर सामाजिक परिवर्तन की कौन सी दिशा निर्धारित की जाए , जिससे इस राष्ट्र व समाज को आधुनिक युग के अनुसार विकसित , शक्तिशाली व समृद्द बनाया जा सके | इस वांछित परिवर्तन की दिशा के सन्दर्भ में इतिहास से यह सबक कोई भी निकाल सकता है कि यह परिवर्तन ब्रिटेन अमेरिका जैसी लुटेरी साम्राज्यी शक्तियों से साठ – गाठ व सहयोग करते हुए सम्भव नही है | क्योकि ये साम्राज्यी ताकते अपने लुट व प्रभुत्व को बढाने के लक्ष्य से ही राष्ट्र को ताभी बर्बादी की तरफ धकेलने का काम शुरू से आज तक करती आ रही है | 1947 के समझौते से पहले की साम्राज्यवाद बिरोधी राष्ट्रवादी धारा के साथ समाज सुधार की धारा को आगे बढाना आवश्यक व अनिवार्य है \

अत: इस राष्ट्र के स्वतंत्रत एवं आत्मनिर्भर विकास के लिए वांछित राष्ट्रीय व सामाजिक परिवर्तन का दायित्व अब मुख्य रूप से देश के शारीरिक एवं मानसिक श्रमजीवी हिस्सों पर ही है | इसीलिए ही राष्ट्र के आधुनिक इतिहास को तथा उसमे होते रहे राष्ट्रीय सामाजिक परिवर्तनों को जानने की सबसे बड़ी जरूरत है |

दीवाना पूछता है यह लहरों से बार बार

कुछ बस्तियाँ यहाँ थीं बताओ किधर गयीँ

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sunil-duttaपरिचय:-

सुनील दत्ता

स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक

वर्तमान में कार्य — थियेटर , लोक कला और प्रतिरोध की संस्कृति ‘अवाम का सिनेमा ‘ लघु वृत्त चित्र पर  कार्य जारी है

कार्य 1985 से 1992 तक दैनिक जनमोर्चा में स्वतंत्र भारत , द पाइनियर , द टाइम्स आफ इंडिया , राष्ट्रीय सहारा में फोटो पत्रकारिता व इसके साथ ही 1993 से साप्ताहिक अमरदीप के लिए जिला संबाददाता के रूप में कार्य दैनिक जागरण में फोटो पत्रकार के रूप में बीस वर्षो तक कार्य अमरउजाला में तीन वर्षो तक कार्य किया |

एवार्ड – समानन्तर नाट्य संस्था द्वारा 1982 — 1990 में गोरखपुर परिक्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक द्वारा पुलिस वेलफेयर एवार्ड ,1994 में गवर्नर एवार्ड महामहिम राज्यपाल मोती लाल बोरा द्वारा राहुल स्मृति चिन्ह 1994 में राहुल जन पीठ द्वारा राहुल एवार्ड 1994 में अमरदीप द्वारा बेस्ट पत्रकारिता के लिए एवार्ड 1995 में उत्तर प्रदेश प्रोग्रेसिव एसोसियशन द्वारा बलदेव एवार्ड स्वामी विवेकानन्द संस्थान द्वारा 1996 में स्वामी
विवेकानन्द एवार्ड
1998 में संस्कार भारती द्वारा रंगमंच के क्षेत्र में सम्मान व एवार्ड
1999 में किसान मेला गोरखपुर में बेस्ट फोटो कवरेज के लिए चौधरी चरण सिंह एवार्ड
2002 ; 2003 . 2005 आजमगढ़ महोत्सव में एवार्ड
2012- 2013 में सूत्रधार संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह
2013 में बलिया में संकल्प संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह
अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन, देवभूमि खटीमा (उत्तराखण्ड) में 19 अक्टूबर, 2014 को “ब्लॉगरत्न” से सम्मानित।

प्रदर्शनी – 1982 में ग्रुप शो नेहरु हाल आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो चन्द्र भवन आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो नेहरु हल 1990 एकल प्रदर्शनी नेहरु हाल 1990 एकल प्रदर्शनी बनारस हिन्दू विश्व विधालय के फाइन आर्ट्स गैलरी में 1992 एकल प्रदर्शनी इलाहबाद संग्रहालय के बौद्द थंका आर्ट गैलरी 1992 राष्ट्रीय स्तर उत्तर – मध्य सांस्कृतिक क्षेत्र द्वारा आयोजित प्रदर्शनी डा देश पांडये आर्ट गैलरी नागपुर महाराष्ट्र 1994 में अन्तराष्ट्रीय चित्रकार फ्रेंक वेस्ली के आगमन पर चन्द्र भवन में एकल प्रदर्शनी 1995 में एकल प्रदर्शनी हरिऔध कलाभवन आजमगढ़।

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