गीत
1-
गीत हूँ मैं जन्म से ही
ज़िंदगी की खोज में हूँ
लक्ष्य जन-कल्याण है
भागीरथी की खोज में हूँ
जो अनय की हर चुनौती
को सहज स्वीकार कर ले
वन गमन, परिवार संकट
सहज अंगीकार कर ले
ऋषिजनों के अस्थि पंजर
देखते भुजदंड जिसके
फड़कने लग जाएँ , उस
मर्दानगी की खोज में हूँ
दर्द हो तो चीख गूँजे
हो विकम्पन मूरतों में
हर्ष हो तो दृष्टिगोचर
हो हज़ारों सूरतों में
हर कृतिमता से किनारा
आतंरिक लय का सहारा
ग्राम बाला की हँसी-सी
सादगी की खोज में हूँ
चाहता हूँ नित नया
आयाम ले आये सवेरा
और आगे, और आगे
हो कहीं अगला बसेरा
पीत पत्तों की जगह पर
जन्मते ज्यों नए पत्ते
मैं उन्हीं नव कोपलों की
ताज़गी की खोज में हूँ ……………
2-
बेटा कुछ बदला दिखता है
माँ डरती है
गणित नहीं, गीता पढता है
माँ डरती है
छोडी मेले झूले के जिद
नए खिलौने खेल तमाशे
गाँठ जोड़ बैठा कबीर से
बोध गया की क्षमा दया से
कच्ची वय साखी लिखता है
माँ डरती है
पैर दबाता माँ के प्रतिदिन
मंदिर मस्जिद कम जाता है
माँ को थका देखकर वह भी
टूटा सा खुद को पाता है
माँ को सर -माथे रखता है
माँ डरती है
कैसे हुयी प्रदूषित धारा, खोज
रहा वह असल वजह को
चाह रहा कूदे गहरे जल
वह तलाशने कालीदह को
भयानकों से जा भिड़ता है
माँ डरती है
बहस नहीं करता, तलाशता
राह दुखों के समाधान की
गाँव गली के दुःख के आगे
फिक्र न अपने पके धान की
फेंटा कस कर चल पड़ता है
माँ डरती है ……..
______________________
श्याम श्रीवास्तव
कवि व् लेखक
शिक्षा – एम.ए. स्नातकोत्तर डिप्लोमा (लोक प्रशासन ) लखनऊ विश्वविद्यालय
प्रकाशित कृतियाँ – चेतना के गीत, गीत राष्ट्र के, कविता: बदलते सन्दर्भ, अन्वेषिका, काव्य सरिता 1999, काव्य संकलनों के सहयोगी रचनाकार सम्मान व पुरस्कार – प्रतिष्ठा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, चेतना साहित्य परिषद् , काव्य कला संगम, साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध प्रतिभा
सम्मान -:
प्रकाशन द्वारा साहित्य शिरोमणि सम्मान
संप्रति –
सेवानिवृत वरिष्ठ लेखाधिकारी, रक्षा लेखा विभाग
संपर्क – 94157792326