– घनश्याम भारतीय –
‘हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा‘
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा‘

एक समय था जब उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में कांग्रेस का एक छत्र राज था। उस दौरान सांसद होते हुए जिनकी तूती बोलती थी वह रामप्यारे सुमन तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के अत्यंत करीबियों में शुमार थे। आज वह हमारे बीच नहीं हैं परंतु वाकपटुता, योग्यता, कार्य कुशलता तथा अपनी शालीनता के लिए हृदय में रचे बसे हैं। उनका जन्म आजादी प्राप्ति के 3 माह पहले 6 मई 1947 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के अकबरपुर कस्बे के निकट रावीपुर कल्याणी गांव में एक साधारण दलित परिवार में हुआ था। आज उनका पैतृक गांव अंबेडकरनगर जिला मुख्यालय की नगरपालिका का एक अहम मोहल्ला है।
बाल्यकाल में ही दलित समाज की दयनीय दशा से जूझते और उपेक्षा की त्रासदी झेलते हुए उन्होंने समाजशास्त्र से स्नातकोत्तर और कानून में स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद समाजसेवा का व्रत लिया। उनका मत था कि नौकरी से धनार्जन तो हो सकता है परंतु सामाजिक परिवर्तन संभव नहीं है। उन्हें अपनी नहीं पूरे समाज की चिंता सता रही थी। बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने अपने पिता बुधिराम से आशीर्वाद लेकर 1970 में अकबरपुर तहसील में वकालत प्रारंभ की।
महज कुछ वर्षों में ही गरीबों, दलितों के लिए कानूनी लड़ाई लड़कर वे समाज में लोकप्रिय हो गए। पूर्वांचल के गांधी कहे गए जयराम वर्मा से प्रभावित होकर अकबरपुर के विधायक प्रियदर्शी जेटली के सानिध्य में सियासी डगर पर कदम रखा तो फिर 1974 में जिला परिषद फैजाबाद के सदस्य चुन लिए गए। फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सन् 1984 में राजीव गांधी के नेतृत्व में लड़े गए लोकसभा के आम चुनाव में रामपियारे सुमन अकबरपुर सुरक्षित सीट से पहली बार में कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुनकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचे। जहां से उन्होंने उलझे सामाजिक ताने बाने को दुरुस्त करने के लिए आवाज बुलंद की। अपनी नीतियों और व्यवहार से उन्होंने ज्ञानी जेल सिंह, अर्जुन सिंह, वी पी सिंह, नारायण दत्त तिवारी के अलावा तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का दिल जीत लिया, और प्रधानमंत्री के करीबियों में शुमार हो गए। परिणाम यह हुआ कि इनके प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री ने अकबरपुर में दूरभाष केंद्र और दूरदर्शन प्रक्षेपण केंद्र सहित कई अन्य परियोजनाओं को मंजूरी दी।
रामप्यारे सुमन को प्रधानमंत्री राजीव गांधी के अत्यंत करीबियों में शुमार बताए जाने पर जिन्हें आपत्ति है वह शायद नहीं जानते कि राजीव गांधी ने ही उन्हें सांसद रहते हुए उद्योग मंत्रालय सलाहकार समिति, कल्याण मंत्रालय सलाहकार समिति, गृह मंत्रालय सलाहकार समिति, अनुसूचित जाति जनजाति के कल्याण के लिए बनी संसदीय समिति का सदस्य बनाते हुए क्यूबा जाने वाले संसदीय शिष्टमंडल में भी शामिल किया था। इस जिम्मेदारी का गुरुतर भार सुमन जी ने निभाया भी। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में सभी के लिए शिक्षा परियोजना परिषद के सदस्य, प्रदेश कांग्रेस व अखिल भारतीय अनुसूचित जाति परिषद के महासचिव के साथ-साथ अखिल भारतीय अनुसूचित जाति जनजाति कर्मचारी परिषद के अध्यक्ष रहते हुए दूरसंचार सलाहकार समिति, उत्तर प्रदेश सड़क सुरक्षा परिषद के सदस्य भी रहे। इसके अलावा अंबेडकर सेवा संस्थान के अध्यक्ष सहित कई शिक्षण संस्थानों की प्रबंध कार्यकारणी में भी विभिन्न पद पद रहकर हमेशा उसके विकास को गति दी।
मुझे याद है सन 1991 में जब मैं इंटरमीडिएट का छात्र था तब सुमन जी से मेरी मुलाकात हुई। पहली मुलाकात में ही उन्होंने मुझे अपने असीम स्नेह का कायल बना लिया। फिर पत्रकारिता में आने के बाद मेरे उनके संबंध और भी गहरे हुए। वे मुझे पत्रकारिता की बुलंदियों पर देखना चाहते थे। उनकी मित्र मंडली में सुरेंद्र उपाध्याय, राम उजागिर लाल, डॉ. श्यामलाल सरल, दयाराम, डॉ.उदय राज, राजेंद्र प्रसाद, डॉ रमाकांत मिश्र का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
दलितों शोषितों व पीड़ितों की हमेशा आवाज बुलंद करते रहे रामपियारे सुमन ने बंद पड़ी मरैला कताई मिल के लाचार मजदूरों के हक की लड़ाई के साथ अकबरपुर को जिला बनाने के लिए समिति के संयोजक के रुप में बृहद आंदोलन किया। इस दौरान कई बार जेल यात्राएं भी की। अकबरपुर में ऊपरगामी सेतु व कलवारी पुल की कल्पना इन्होने ही की थी। रामनगर, सैदापुर, पटेल नगर,व अकबरपुर में स्पेशल कंपोनेंट प्लान के तहत गरीबों के लिए दुकानों का निर्माण और आवंटन का श्रेय इन्हें ही जाता है। यह अलग बात है कि सन 1989 के लोकसभा चुनाव में मात खाने के बाद इन्हें फिर सफलता नहीं मिली। क्योंकि कांग्रेस के दिन लग चुके थे।
दलितों शोषितों व पीड़ितों की हमेशा आवाज बुलंद करते रहे रामपियारे सुमन ने बंद पड़ी मरैला कताई मिल के लाचार मजदूरों के हक की लड़ाई के साथ अकबरपुर को जिला बनाने के लिए समिति के संयोजक के रुप में बृहद आंदोलन किया। इस दौरान कई बार जेल यात्राएं भी की। अकबरपुर में ऊपरगामी सेतु व कलवारी पुल की कल्पना इन्होने ही की थी। रामनगर, सैदापुर, पटेल नगर,व अकबरपुर में स्पेशल कंपोनेंट प्लान के तहत गरीबों के लिए दुकानों का निर्माण और आवंटन का श्रेय इन्हें ही जाता है। यह अलग बात है कि सन 1989 के लोकसभा चुनाव में मात खाने के बाद इन्हें फिर सफलता नहीं मिली। क्योंकि कांग्रेस के दिन लग चुके थे।
इसी बीच सन् 1999 में सपा में शामिल हुए पर मायावती के मुकाबले चुनाव हार गए। कालांतर में इन्होंने बसपा का झंडा थामा परंतु शारीरिक अस्वस्थता के चलते सक्रिय राजनीति से विरत हो गए। डायबिटीज से पीड़ित होने के चलते 23 जनवरी 2015 को कानपुर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने सदा के लिए आंखें मूंद लीं। और अब हमारी स्मृति के कोने में विराजमान हैं। वास्तव में रामपियारे सुमन व्यक्ति नहीं विचारों के एक समूह का नाम है। वे पहली ही मुलाकात में गैर को अपना बना लेते थे और खुद गैर के भाई बन जाते थे। उनका जीवन आसान होकर भी एक पेचीदा किताब था। जिसे पढ़ना तो आसान था मगर समझना कठिन…।
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घनश्याम भारतीय
स्वतंत्र पत्रकार/स्तम्भकार
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ग्राम व पोस्ट-दुलहूपुर
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