– निर्मल रानी –
हमारे देश में ढोंग-ढकोसला करने और चाटुकारिता तथा आत्म मुग्धता जैसी फुज़ूल व निरर्थक बातों में समय गंवाने का प्रचलन बहुत पुराना है। देश में तमाम तथाकथित नेता व स्वयंभू सामाजिक कार्यकर्ता इन्हीं कामों में पेशेवर तरीके से व्यस्त दिखाई देते हैं। जिन लोगों का हमारे धार्मिक महापुरुषों अथवा मार्गदर्शक व राष्ट्रनिर्माता राजनेताओं के बताए हुए मार्गोी पर चलने का कोई सरोकार ही नहीं, ऐसे लोग उन्हीं महापुरुषों व राजनेताओं के जन्मदिन अथवा पुण्यतिथि के समारोहों में बढ़चढ़ कर भाषण करते हैं तथा स्वयं को उनके आदर्शों पर चलने वाला साबित करने का प्रयास करते नज़र आते हैं। गोया हमारे ही देश में प्रचलित मशहूर कहावत-‘मुंह में राम बगल में छुरी’ जैसी कहावत को इसी प्रवृति के लोग चरितार्थ करते हैं। मिसाल के तौर पर भगवान राम को अपना आदर्श मानने का प्रदर्शन करने वाले उन्हीं के नाम पर अराजकता व हिंसा फैलाने में व्यस्त दिखाई देंगे तो गांधी की आराधना का ढोंग करने वाले झूठ और हिंसा में लिप्त नज़र आएंगे। बातें बुद्ध और शांति की करेंगे परंतु काम समाज में नफरत और अशांति फैलाने का ।
हमारे देश की ऐसी ही एक परम सम्मानित शिख्सयत का नाम है बाबा साहब भीमराव अंबेडकर। दलित समाज में जन्म लेने वाले इस महापुरुष ने अपनी काबिलियत के बल पर भारतीय संविधान सभा के प्रमुख के रूप में ऐसी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसे भारतीय इतिहास कभी फरामोश नहीं कर सकता। आज हमारा देश उसी संविधान के कारण पूरे विश्व में आदर व सम्मान की नज़रों से देखा जाता है। देश के बुनियादी ढांचे का निर्माण करने में डा० अंबेडकर जैसे महान संविधान निर्माता की अहम भूमिका तो अवश्य थी परंतु केवल दलित समाज में पैदा होने की वजह से उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त दलित विरोधी मानसिकता की जिस हालत का अध्ययन किया और जिन वास्तविकताओं से उन्हें रूबरू होना पड़ा उसी का यह परिणाम था कि डा० अंबेडकर ने 14 अक्तूबर 1956 को नागपुर में लाखों दलितों के साथ हिंदू धर्म को त्यागने तथा बुद्ध धर्म को स्वीकार करने की घोषणा कर दी। आज भी धर्म परिवर्तन के विश्व के इतिहास में इसे संसार में अब तक हुई धर्म परिवर्तन की सभी घटनाओं में सबसे बड़े पैमाने पर हुआ धर्म परिवर्तन माना जाता है।
दलित उत्पीडऩ का इतिहास निश्चित रूप से हमारे देश में उतना ही पुराना है जितना कि हिंदू धर्म में मनुस्मृति का इतिहास। जिस प्रकार कुरान शरीफ पर उंगली उठाने वाले आलोचक उस धर्मग्रंथ में ढूंढ-ढंूढ कर ऐसी आयतों को अपनी आलोचना का निशाना बनाते हैं जिसमें कािफरों पर ज़ुल्म ढाने का जि़क्र किया गया है। उसी प्रकार मनुस्मृति में भी शूद्रों के लिए ऐसी आपत्तिजनक व हिंसा को उकसाने वाली तथा ब्रहमण समुदाय के महिमामंडन को प्रमाणित करने का प्रयास करने वाली अनेक बातें लिखी गई हैं जिनसे हमारे समाज में ऊंच-नीच की गहरी खाई पैदा हो गई। उदाहरण के तौर पर मनुस्मृति में दर्ज एक श£ोक सहासनमभिप्रेप्सुरुत्कृष्टस्यापकृष्टज्ञा। कटघां कृतांगको निर्वासय: स्फिचं वास्यावक्रर्त येतु।। 281।। अर्थात् – ‘जो नीच वर्ण ब्रह्मणादि वर्ण के साथ आसन पर बैठना चाहे, तो राजा उसकी कमर में चिन्ह करके देश से निकाल दे अथवा उसके चूतड़ के मांस कतरवा ले। एक दूसरा श£ोक जो ऊंच-नीच तथा वैमनस्य को बढ़ावा देने वाला है वह इस प्रकार है। -‘पाणिमुद्यम्य दंडं वा पाणिच्छेदनमर्हति। पादेन परहरन्कोपात्पादच्छेदनमर्हति।। 280।। अर्थात् यदि द्विज को मारने के लिए हाथ उठाया हो या लठ ताना हो तो उसका हाथ काट लेना चाहिए और क्रोध से ब्राह्मण को लात मारे तो उसका पैर काट डालना चाहिए।
निश्चित रूप से इस प्रकार की नफरत फैलाने वाली अनेक पौराणिक शिक्षाओं ने आज हमारे समाज में ऊंच-नीच,भेद-भाव व छुआछूत का जो ज़हर घोला है उसके प्रभाव को हम समाप्त कर पाने में पूरी तरह से असफल हैं। परंतु जब हम बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का जन्मदिन अथवा उनकी पुण्यतिथि मनाने चलते हैं तो मनुस्मृति की इन्हीं शिक्षाओं को शिरोमणि समझने वाले तमाम राजनेता बाबा साहब की मूर्ति पर इस प्रकार माल्यार्पण करते हैं तथा उनकी शान में ऐसे लंबे-चौड़े भाषण देते हें गोया डा० अंबेडकर का इनसे बड़ा भक्त,शुभचिंतक व उनके मार्गदर्शन पर चलने वाला कोई दूसरा नेता ही इस देश में न हो? परंतु इस प्रकार के पाखंड और प्रदर्शन के बाद पुन: जब हमें यह सुनाई देता है कि कभी किसी दलित प्रोफेसर को अपमानजनक दौर से गुज़रना पड़ा तथा तथाकथित ऊंची जाति के लोगों ने उसे मानसिक पीड़ा पहुंचाई तो उस समय डा० अंबेडकर की शान में उनका कसीदा पढऩे वालों की नीयत पर संदेह पैदा होता है।
अभी कुछ ही दिन पूर्व मध्यप्रदेश राज्य में जहां शिवराज सिंह चौहान की सरकार जो समरसता व सामाजिक सद्भाव का ढिंढोरा पीटते नहीं थकती यहां तक कि इसी मध्यप्रदेश में कुछ समय पूर्व आयोजित हुए सिहंस्थ महाकुंभ में देश में सामाजिक समरसता का बीड़ा उठाने वाले लोगों द्वारा इसी महाकुंभ में समरसता स्नान आयोजित कर ऊंच-नीच समाप्त करने का प्रदर्शन किया गया था इसी प्रदेश के दमोह जि़ले में जेपीवी माध्यमिक सरकारी स्कूल के एक दलित अध्यापक हरि बाबू द्वारा अपने ही स्कूल की उसी कक्षा में फांसंी लगाकर आत्महत्या कर ली गई जिसमें वह शिक्षण का कार्य करता था। मृतक हरि बाबु ने फांसी लगाने से पहले एक सुसाईड नोट भी लिखा है जिसमें उसने अपनी मौत के लिए अपने ही स्कूल के प्रिंसीपल व हेडमास्टर को जि़म्मेदार ठहराया है। हरि बाबू ने लिखा है कि उनके स्कूल के प्रिंसीपल व हेडमास्टर दोनों ही उसे बार-बार दलित व चमार कहकर प्रताडि़त किया करते थे। और उसे अनेक झूठे प्रकरण में फंसाने की धमकी देते रहते थे। जिसकी वजह से वह काफी परेशान हो गए थे।
सवाल यह है कि जब हमारे समाज में दलित समाज से संबंध रखने वाले प्रोफेसर,उच्चाधिकारी तथा शिक्षक जैसे प्रतिष्ठित पदों पर काम करने वाले लोगों को अपमान के एक ऐसे निम्रस्तरीय दौर से गुज़रना पड़े कि उन्हें आत्महत्या करने जैसे आिखरी रास्ते के सिवा कोईदूसरा रास्ता ही नज़र न आए तो इस बात का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है कि देश में दूर-दराज़ के इलाकों ेमें रहने वाले गरीब,असहाय व बेसहारा दलित समाज के लोगों पर क्या गुज़रती होगी? इसी मध्यप्रदेश में एक दलित महिला सरपंच को अपमानित करने की खबर आ चुकी है। इसी ‘शिवराज’ में दलित दूल्हे को घोड़ी से उतारने तथा दलित की बारात पर पत्थरबाज़ी करने की कई ख़बरें आ चुकी हैं। परंतु हमारी केंद्र सरकार व मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार अपनी पीठ थपथपाने में ही इतना व्यस्त हैं कि उन्हें समाज की वास्तविक तस्वीर देखने का वक्त ही नहीं मिलता। लिहाज़ा अंबेडकर प्रेम का झूठा प्रदर्शन करने वालों को चाहिए कि वे दलित समाज से नफरत करने के बुनियादी कारणों पर नज़र डालें और वास्तव में सामाजिक समरसता कायम करने के लिए वैमनस्य की जड़ों पर प्रहार करें। केवल डा० अंबेडकर का गुणगान करने से या उनकी मूर्ति पर माला चढ़ाने जैसे नाटक करने से अथवा समरसता स्नान करने या प्रतीकात्मक रूप से दलितों के साथ सहभोज आयोजित करने जैसे नाटकों से समाज में समरसता नहीं आने वाली। इसके लिए समाज के ठेकेदारों को गहन चिंतन-मंथन करना पड़ेगा अन्यथा देश की तरक्की और विकास का ढोल पीटना निरर्थक है l
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निर्मल रानी
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
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