अब तो यह सिद्ध हो गया है कि हम वाकई पिछड़े हैं। लोग 21वीं सदी की हाईटेक सिस्टम से हर क्रियाएँ करने लगे हैं और एक हम हैं कि वही कलम-कागज, वही पुराना लकड़ी का पैड जो वर्षों से इस्तेमाल करते चले आ रहे हैं, अब भी हमारे लेखनकक्ष (स्टडी रूम) में मौजूद है। लोगों के हाथों में भिक्षा-पात्र (कटोरा) सरीखा लम्बा-चौड़ा एण्ड्रायड फोन/स्मार्टफोन होता है, और एक हम है कि इस आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से महरूम हैं। लोग व्हाट्स एप्प, फेसबुक, ट्विटर……आदि के एकाउण्ट क्रिएट करके अपने दोस्तों से हमेशा 63 के आँकड़े में बने रहते हैं, और हम हैं कि एण्ड्रायड फोन न होने की वजह से अपने कथित/तथाकथित दोस्तों से 36 की पोजीशन बना रहे हैं।
यहाँ मैं उस व्यक्ति से बात कर रहा था, जो निरक्षर है और एन्ड्रायड फोन लिए उसमें नेट पैक डलवाकर गन्दी फिल्मों का अवलोकन करने के साथ-साथ उसके गाने सुन रहा था। अश्लील फोटो देखने और फूहड़ गानों का श्रवणकर आनन्द लेने के लिए शिक्षित होना कोई जरूरी नहीं है। बहरहाल यह सब सोच ही रहा था तभी वह बोल उठा और क्या पूँछना है जल्दी पूँछो। मैं चैतन्य हो गया फिर पूँछा कि इसको कितने में खरीदा? वह फिर सीना फुलाकर बोला 10 हजार में, फिर इतना कहकर वह उक्त मोबाइल सेट की स्क्रीन को हाथ की उँगलियों से टच करके लम्बा, छोटा और सीधा तिरछा करके कुछ देखने लगा था।
उसकी उक्त स्मार्टफोन सेट पर की जाने वाली हरकत मुझे असहज बना रही थी। फिर मैंने कहा कि इस पर इन्टरनेट पैक डलवाते हो तो वह बोला हाँ यह पूंछने पर कि क्यों तो उत्तर दिया गाने एवं हालिया रिलीज फिल्मों की डाउनलोडिंग करके उनका आनन्द उठाने के लिए। मैं उसकी स्पष्ट बयानी से संतुष्ट हो गया था फिर आगे चल पड़ा। उसने क्या-क्या सोचा होगा हमने इस पर ज्यादा जोर नहीं डाला।
एक दुकान है परचून की। कभी-कभार वहाँ शाम को 10-15 मिनट गुजारता हूँ। उस दुकान पर एक परिचारक है जिसकी उम्र 15-20 की बीच होगी यानि टीनएजर है। उसके पास भी एक बड़ा बेगिंग बाउल देखा जी हाँ वही स्मार्टफोन। पूँछा क्यों बेटा कितने का लिए वह बोला साढ़े सात हजार का। मासिक पगार यही कोई ज्यादा से ज्यादा 3 हजार रूपए होगी। माँ-बाप ने अपने लाडले को शहर के किराना दुकान पर इसलिए बतौर नौकर रखवाया कि वह जो कुछ भी कमाएगा, उससे घर का कुछ खर्च चलेगा, लेकिन यहाँ तो वह लड़का पगार से ज्यादा पैसे कपड़े व मोबाइल सेट में खर्च कर दे रहा है।
मैं समझ सकता हूँ कि आप यही सोच रहे होंगे कि हैसियत नहीं है वर्ना यह भी एन्ड्रॉयड फोन जिसे ‘बेगिंग बाउल’ कह रहा हूँ रख कर ठीक उसी तरह उसका उपयोग/प्रयोग करता जैसा कि अधिकाँश लोग कर रहे हैं, और तब बकवास न लिखता। यहाँ अपने पिछड़ेपन का गुबार निकाल रहा हूँ। आप यह भी सोच रहे होंगे कि मैं वाकई पिछड़ा व्यक्ति हूँ। सोच-सोच की बात है आप के सोचने पर पाबन्दी लगाना मेरे वश की बात भी नहीं। सोचना एक अच्छी क्रिया है, इसे करते रहने से व्यक्ति की परसनैलिटी परिवर्तित होती है। आप सोचिए और मैं लिखूँ।
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परिचय :
डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
वरिष्ठ पत्रकार/टिप्पणीकार
रेनबोन्यूज प्रकाशन में प्रबंध संपादक
संपर्क – bhupendra.rainbownews@gmail.com
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर (उ.प्र.) मो.नं. 9454908400
##**लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।