अंबरीश राणा की कविताएँ

अंबरीश राणा की कविताएँ 

1. नारी की विवशता

आज दो आँखे सिसकती देखी
इस कड़ी धुप में तपती देखी
जिंगदी से हताश और निराश
उठ चला सबसे उसका विश्बास |
कुछ सोच रही थी मन में वो
इस हवनकुण्ड में जला के लौ
शायद सती होना चाहती थी
या वलवती होना चाहती थी |
कुछ असमंजस दुविधा में थी
या जटिल किसी पीड़ा में थी
मुख से ना समझा पायी वो
आँखों से कहना चाहती थी |
बोली घृणा में करती हुँ
इस सभ्य मनु नर जाति से
क्यों श्रेस्ट समझते है खुद को
जन्मे क्या किसी और धाती से |
अपने को सदा ये उच्च समझ
मुझपे अधिकार जमाते है
क्या क्रय-विक्रय की चीज हो में
जो मोल भाव कर जाते है |
ये दुनिया की रीति नीति
सब इनकी बनायीं होती है
देते है सदा दोयम दर्जा
अबलाये बस दुःख ढोती है |
कब तक इनकी उम्मीदों पर
कितना और खरा उतरे
सीता ही अगनि परीक्षा दे
क्यों राम ना आके यहाँ उतरे |
इसलिए आज में खुद की नई
परिभाशा रचने आई हुँ
या तो में जीने आई हुँ
या तो में मरने आई हुँ |
जी जाओगी तो अपने अधिकारों
को हासिल कर पाओगी
मर जाओगी तो इस आदम
को सबक नया सिखलाऊगी |
नारी बिन ना ये जग कल्पित
आशाओ का दर्पण खंडित
जब धीरज ही ना होगा यहाँ
तो क्या होगा फिर आनंदित |
फिर मुझे मिले सम्मान यहाँ
और ना हों फिर अपमान यहाँ
तब ही मेरा जीना है सफल
बरना तो ये जीवन नशवर |
इस लिए ही मेने हवन-कुण्ड
आज यहाँ पर जलाया है
एक नया जन्म पाने के लिए
सती होने का संकल्प उठाया है ||

2. ये अमन जल रहा है

ये अमन जल रहा है
चमन जल रहा है
इन कब्रों पे देखो
कफन जल रहा है ||
ये वहशीपना है
या है ये इबादत
ये जो भी हो मेरा
वतन (संसार) जल रहा है ||
इन गोली इन तोपों
की चिंग़ारीओ से
ये सहमा हुआ
बचपन जल रहा है ||
ये मुरझाये चेहरे
ये बेबश सी आँखे
ना जाने क्यों मेरा
ये मन जल रहा है ||||
3.चाँदनी
आज चाँदनी छत पर ऊपर
घूँघट अपना खोल रही है
अपने इस आभामंडल से
प्रीत का रस वो घोल रही है ||
चंचल चपल और सकुंचाती
मन के भीतर ही उकसाती
मृगनयनी वो सबके दिल पर
छाप अजब सी छोड़ रही है ||
चंद्र से मिलकर यु चमकी है
जैसे गागर से छलकी है
प्रेम मिलन की इस वेला में
सबका मन वो तोल रही है ||
आज चाँदनी छत पर ऊपर
घूँघट अपना खोल रही है ||||

4.साहिब सुन ले मन की बात

साहिब मेरे सुन ले मेरे मन की बात
रोती है ये आँखे और घायल है जज्बात
खेल रहा है तु क्यों मेरे इन जख्मो के साथ
साहिब मेरे सुन ले मेरे मन की बात ||
पिया- पिया रटती-रटती बन बैठी में बाबरिया
तेरी लगन में डूबी रहती , ओ मेरे साँवरिया
हाथ बढ़ा दे अब तो कही , छूट ना जाये साथ
साहिब मेरे सुन ले मेरे मन की बात ||
रात का चाँद जब आये छत पर ले पूनम को साथ
पूछ रही में उससे क्यों करता मेरा उपहास
कहता पगली तु विरहिन है , मेरा प्रीतम पास
साहिब मेरे सुन ले मेरे मन की बात ||
सावन बीता बीता भादौ बीता हर एक मास
कागा भी मेरी मुंडेर पे बोला दिन और रात
तु ना आया फिर भी लेकिन ,ना भेजी कोई पात
साहिब मेरे सुन ले मेरे मन की बात ||||

5.एहसास

साँसों की गहराइयो में तु है शामिल
रूह की परछाइयों को करके हासिल
संगमरमर की कोई मूरत बनाऊँ
या कलम से अपनी में बस लिखता जाऊ ||
जन्मो के सारे में ये बंधन मिटा दूँ
तेरे हर एक गम को दिल में छिपालु
तेरे चेहरे में नई मुस्कान लाऊ
ठंड की इस धुप में बस डूब जाऊँ ||
तु ही मौला, तु ही रब, तु ही खुदा है
जिंदगी से मुझको बस तु ही मिला है
तूने ही मुझको यहाँ जीना सिखाया
मेरे हर एक दर्द को तूने मिटाया ||
तु ही हाथो की है ये तक़दीर मेरी
रोज बनती और बिगड़ती तस्वीर मेरी
अब्र से बहता हुआ तु जैसे झरना
तेरे ही तो साथ है अब जीना मरना ||||||

ambrish rana परिचय- :
अंबरीश राणा
विधा – कविता लेखन

मूल निवास – ग्राम- भामौरी, तहसील- सरधना ,जिला -मेरठ . बर्तमान पता-  नई दिल्ली

ईमेल- ambrishrana@gmail.com

शिक्षाः- M.C.A FORM (NOIDA INSTITUTE OF ENGINEERING AND TECHNOLOGY)
व्यवसाय :- Software Engineer in a private company of NOIDA

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