रेल पर व्यंग्य : सिर्फ ‘उम्मीदों’ से ही लबरेज लोकतन्त्र में रेल बजट से ‘हमने’ भी उम्मीदें लगा रखी हैं…..
अब से थोड़ी देर बाद रेल-बजट आ जाएगा …. मीडिया से लेकर आम जनता के बीच अटकलों का बाजार गर्म है …. इलेक्ट्रोनिक-मीडिया ने तो पिछले दो-चार दिनों में प्रस्तुति के पहले ही इसका विश्लेषण भी कर डाला …. स्वाभाविक भी है हमारे सारे चैनल्स ‘सबसे तेज’ जो हैं , ‘कल’ ही नहीं ‘परसों’ की खबर भी ‘आज’ ही दिखला देते हैं ….
किराया बढ़ाए जाने की बातें हो रही हैं ….. मीडिया को तो मसाला मिला हुआ है लेकिन मेरे जैसे ‘दाल -रोटी’ भी सोच-समझ कर खाने वाले ‘आम (निरीह)आदमी’ का तो किराया बढ्ने के नाम से ही ‘ब्लड-प्रेशर’ बढ़ जाता है ….. बुद्धिजीवी कहते हैं (मैं भी कभी-कभी इस श्रेणी में शामिल होने की कोशिश तो करता हूँ लेकिन अक्सर ‘पेट व जेब’ आकांक्षा को धमकाने में कामयाब हो जाते हैं ) “किराया बढ़ाए जाने के साथ सुविधाएं भी बढ़ायी जानीं चाहिए”….. सब कहते हैं तो चलिए ऊपर – मन से मैं भी मान लेता हूँ लेकिन ……?
सिर्फ ‘उम्मीदों’ से ही लबरेज लोकतन्त्र में रेल बजट से ‘हमने’ भी उम्मीदें लगा रखी हैं…..हमारे -आपके सबके मन में एक ही सवाल है “कहीं किराया बढ़ ना जाए?”
अब बात हो जाए कि ‘हम’ मुफ़्फ़लिसी में जीने वाले चाहते क्या हैं ?? :-
रेलवे स्टेशन हो या ट्रेन साफ-सफाई अच्छी होनी चाहिए
ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए
यात्री किराया कम हो
अगर जेब ढीली करना मजबूरी ही है तो सुविधाएं भी बढ़ें, टॉयलेट और ट्रेनों के अंदर गंदगी नहीं हो
दिए जाने वाले खानों में कॉकरोच का तड़का ना हो
टिकटों की कालाबाजारी खत्म होरेलवे स्टेशनों पर हमारे ठहरने की समुचित व किफ़ायती व्यवस्था हो
टिकट के लिए लंबी लाइन में लगने की परेशानी से निजात मिले
टिकटों की खरीद -बिक्री में दलाली व कालाबाजारी बंद होयात्रा के दौरान सुरक्षा चाक-चौबन्द हो
अवैध हॉकरों से छुटकारा मिले
और अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात रेलवे के कर्मचारी हमें भेड़-बकरी ना समझें
ये तो हुईं मुझ जैसे निरीह , निठाह-गँवार प्राणी की समझ में आने वाली बातें (जिन्हें पूरा होते देखने का सौभाग्य तो शायद इस जन्म में मुझे नहीं ही मिले …!!) बाकी बातें बुद्धिजीवियों के हवाले …..
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परिचय – :
आलोक कुमार
वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक
बिहार की राजधानी पटना के मूल निवासी। पटना विश्वविद्यालय से स्नातक (राजनीति-शास्त्र), दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नाकोत्तर (लोक-प्रशासन)l लेखन व पत्रकारिता में बीस वर्षों से अधिक का अनुभव। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सायबर मीडिया का वृहत अनुभव। वर्तमान में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के परामर्शदात्री व संपादकीय मंडल से सम्बद्ध !
*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.