लोकतंत्र का महामेला सर्कस मेला के आगे पड़ा फीका

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unnamed{रीता विश्वकर्मा**}
आप यदि उत्तर प्रदेश के निवासी हैं, और समस्याग्रस्त हैं तो तनाव से मुक्ति पाने के लिए मनोरंजन का सहारा लीजिए। 3 घण्टे में आपको थोड़ी-बहुत राहत जरूर मिलेगी। यह बात दीगर है कि आप किसानों के गन्ने का भुगतान नहीं हो रहा है, गेहूँ की सरकारी रूप से खरीद नहीं हो रही है, बिजली नहीं मिल रही है, भूगर्भ-जलस्तर गिर गया है, प्राकृतिक आपदाओं के शिकार है, फटे एवं तंगहाल हैं, ऐसी हालात में रहने वालों के लिए सिनेमा/सर्कस/जादू/नाच-गाने का प्रदर्शन किया जाता है। यह संजोग भी अच्छा है कि लोकतंत्र का महामेला चुनाव 2014 सिर पर है। मतदाता अपने काम में मशगूल होते हुए भी मई महीने में होने वाले मतदान को लेकर उत्सुक है। 

नेता एवं पूर्व घोषित प्रत्याशीगण चुनाव आयोग की सख्ती के भय से शान्तढंग से गाँव-देहात में खाक छान रहे हैं, पसीने बहा रहे हैं, और मतदाताओं से चुनावी मिन्नतें कर रहे है। इसी लोकतंत्रीय महाकुम्भ के बीच जिला प्रशासन द्वारा जिला मुख्यालय में एक सर्कस प्रदर्शन की अनुमति दी गई है, जिसमें थके-हारे पार्टी प्रत्याशी एवं उनके समर्थक तथा समस्या एवं तनावग्रस्त मतदाता/आमजन तीन शो चलाकर भरपूर जीवन्त मनोरंजन देने वाले सर्कस के तम्बू में घुसेंगे और कुछ देर के लिए तनावमुक्त रहेंगे। तब वे भूल जाएँगे कि उन्हें चुनाव लड़ना है, जीत हासिल करनी है, किसानों के गन्ने का बकाया मूल्य लेना है, खून-पसीने की कमाई गेहूँ सरकारी समर्थन मूल्य पर क्रय केन्द्रों पर बेंचना है। 

यद्यपि नेता मत प्राप्ति के लिए 10.20 लाख मतदाताओं से हाथ जोड़कर विनती कर रहे हैं। किसान चीनी मिल, गन्ना विकास विभाग एवं जिला प्रशासन से गन्ना मूल्यों के भुगतान हेतु अदना प्रजा की तरह सानुरोध भीख मांग रहा है। बिजली के लिए विद्युत विभाग, जिला प्रशासन की गणेश परिक्रमा कर रहा है। हाकिम है कि वातानुकूलित कक्षों में बैठकर अपने को कथित मीटिंग्स में बिजी किए हुए हैं। लब्बो-लुआब यह है कि जिले के गाँव से लेकर शहर तक के वाशिन्दे अनेकानेक मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं। प्रशासन है कि आसन्न चुनाव 2014 के तहत आदर्श आचार संहिता की बात कहकर समस्याग्रस्त लोगों की समस्या में और इजाफा कर रहा है। 

सरकारी हुक्मरानों को अपनी मनमानी करने से कोई नहीं रोक सकता। मनोरंजन कर अधिकारी की अनुशंसा पर बड़े हाकिम ने एक सर्कस प्रदर्शन की अनुमति तो दे दिया है, लेकिन वे कहीं न कहीं इस बात को अवश्य भूल गए होंगे, या रहे हैं कि जिले की जनता पूर्णतया समस्याग्रस्त है। पहले उनकी समस्या का निराकरण करें, उन्हें बिजली, पानी, खाद, बीज, उर्वरक उपलब्ध कराएँ। क्रय केन्द्रों को सक्रिय करें ताकि किसान आढ़तियों/बिचौलियों के शोषण का शिकार होने से बच सके। जब यह सब हो जाएगा तब अवाम खुशहाल होगा, और उसे सिनेमा, सर्कस, नृत्य-संगीत का भरपूर आनन्द मिलेगा। 

सर्कस प्रदर्शन की अनुमति के बारे में कई नेताओं का कहना है कि आखिर जिला प्रशासन को हो क्या गया है? चुनाव के ऐन मौके पर सर्कस प्रदर्शन की अनुमति देना हम लोगों के पक्ष मे नाइंसाफी है। हम अपना खून-पसीना बहाकर गाँव-गाँव, घर-घर जाकर जनसम्पर्क कर रहे हैं, ऐसे में जिले में सर्कस का आना सुनकर लोग सर्कस देखने चले जाएँगे तो हमारी बात कौन सुनेगा? हम किससे अपना पक्ष कहेंगे? यह कहा जाता है कि यहाँ के लोग घर फूंक तमाशा देखने वालों की तरह हैं। विगत चार दशकों में अब तक यहाँ कई दर्जन बड़े और छोटे सर्कस का प्रदर्शन हो चुका है, जिनमें सभी सर्कस के प्रबन्धक बड़े-बड़े बोरों में भरकर रूपए ले जा चुके हैं। 

बहरहाल! कुछ भी हो जिला प्रशासन ने अनुमति दे दिया है। सर्कस चल रहा है। दर्शकों की भीड़ उमड़ रही है और सर्कस संचालक पैसों से अपनी जेबें भर रहे हैं। लोकसभा क्षेत्र के लोग प्रतिदिन 3 शो में सर्कस के खेल का आनन्द उठाने के लिए निजी व किराए के वाहनों/साधनों से पहुँच रहे हैं। लोकतंत्र का महामेला चुनाव 2014 सर्कस मेला के आगे फीका पड़ गया है।

इससे किस प्रकार लोगों को लाभ और हानि होगी आइए एक नजर इस पर डाली जाए।
रिक्शा, टैम्पो चालक, डीजल, पेट्रोल पम्प वालों को आर्थिक लाभ पहुँचेगा। क्योंकि इन पर सवार होकर दर्शक ‘सर्कस’ तक पहुँचेंगे। यह आर्थिक लाभ सामान्य किराए से कई गुना अधिक का होगा। 

चोर-उचक्के शोहदे, लफंगों की पौ-बारह होगी। ऐसे में स्थानीय पुलिस बल को अपना ध्यान अप्रिय घटनाएँ रोकने में लगाना पड़ेगा। इन सबके अलावा बिजली विभाग को भी राजस्व लाभ मिलेगा, क्योंकि 10 किलोवाट का अस्थाई कनेक्शन दिया गया है।  चूँकि मनोरंजन कर से ‘सर्कस’ मुक्त होता है, इसलिए विभागीय राजस्व में बढ़ोत्तरी नहीं होगी, फिर भी इस विभाग के कर्मचारियों/अधिकारियों का रूतबा बुलन्द रहेगा। 

फायदे में माँस विक्रेता रहेंगे क्योंकि सर्कस के माँसाहारी जानवरों को खिलाने के माँस की खरीद-फरोख्त में इजाफा होगा।  चुनावी माहौल में सर्कस देखने वाले शराबी लोग मदिरापान करेंगे, जाहिर सी बात है कि इससे आबकारी राजस्व में बढ़ोत्तरी होगी।  किसान अपने उत्पादों को  बिचौलियों के हाथों औने-पौने दामों में बेंचकर ‘सर्कस’ का जीवन्त प्रदर्शन देखकर आनन्दित होंगे।  पार्टी प्रत्याशी अपने समर्थकों के साथ ‘सर्कस’ का आनन्द उठाएँगे, दिन भर जनसम्पर्क करने पर आई थकान मिटाएँगे। 

नोट:- यह आलेख हमें एक पत्रकार ने उत्तर प्रदेश के जनपद अम्बेडकरनगर से भेजा है। समाचार प्रेषक ने यह उल्लेख किया है कि चुनाव के समय में समस्याग्रस्त जनपद वासियों की समस्याओं की अनदेखी करते हुए जिला प्रशासन द्वारा सर्कस प्रदर्शन की अनुमति दिया जाना अत्यन्त शोचनीय विषय है। उक्त सर्कस अम्बेडकरनगर जनपद के मुख्यालयी शहर अकबरपुर में प्रदर्शित हो रहा है। यह आलेख हम हुबहू आपको अग्रेसित कर रहे हैं। यदि चाहें तो अपने सम्मानित प्रकाशन में प्रकाशित करें।

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Reeta-2*रीता विश्वकर्मा
मो. नं. 8765552676
*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

1 COMMENT

  1. I do believe all of the ideas you have offered in your post. They are really convincing and will certainly work. Still, the posts are too brief for novices. May just you please lengthen them a bit from next time? Thank you for the post.

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