नई दिल्ली : ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (AICTE) एवं देश के विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के संयुक्त तत्वावधान में ‘यूनाइटेड नेशंस के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स एवं यूनिवर्सल ह्यूमन वैल्यूज’ (United Nations sustainable development goals and Universal Human Values) पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस ऑनलाइन सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ एवं डिजिटल डिप्लोमेट डॉ. डी.पी. शर्मा ने इंटरनेशनल पैनल डिस्कशन में हिस्सा लिया।
वैश्विक मूल्य, स्थानीय समाधान
डॉ. शर्मा ने अपने संबोधन में इस बात पर जोर दिया कि मानवीय मूल्य स्वभाव से ‘यूनिवर्सल’ (वैश्विक) होते हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन और समाधान ‘लोकल’ (स्थानीय) होना चाहिए। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत से अलग दुनियां के हर हिस्से में नैतिकता की परिभाषाएं अलग-अलग हैं। उन्होंने कहा, “हर व्यक्ति का अपना एक संदर्भ, समाज और सभ्यता होती है। उनकी समस्याएं विशिष्ट होती हैं, इसलिए समाधान भी उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि के अनुरूप ही होने चाहिए।”
उन्होंने डिजिटल डिवाइड एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस डिवाइड के माध्यम से यूनाइटेड नेशंस के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि सब कुछ बदल रहा है सिर्फ अगर स्थाई है तो परिवर्तन। परिवर्तन के इस दौर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं तकनीक का गुलाम बनने के बजाय मनुष्य को स्वयं को रीइन्वेंट करना होगा और यूनाइटेड नेशंस को अपने मेंबर कंट्रीज के लिए ऐसे फ्रेमवर्क एवं रोड मैप बना कर देने होंगे।
एआई (AI) के अति-उपयोग पर चिंता
युवाओं में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बढ़ते चलन पर चिंता व्यक्त करते हुए डॉ. शर्मा ने कहा कि एआई पर अत्यधिक निर्भरता के कारण युवाओं का प्राकृतिक बौद्धिक विकास बाधित हो रहा है। उन्होंने आगाह किया कि तकनीक का उपयोग सहायक के रूप में होना चाहिए, न कि मस्तिष्क के विकल्प के रूप में।
पाठ्यक्रम निर्माण में ‘ग्राउंड रियलिटी’ की आवश्यकता
देश के विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान में पाठ्यक्रम अक्सर ‘एयर कंडीशन’ कमरों में बैठकर तैयार किए जाते हैं, जो जमीनी हकीकत से दूर होते हैं। उन्होंने अपने दक्षिण कोरिया और जर्मनी के अनुभवों को साझा करते हुए सुझाव दिया कि पाठ्यक्रम निर्माण में केवल विषय विशेषज्ञों को ही नहीं, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विद्वानों को भी शामिल किया जाना चाहिए।
सर्वांगीण विकास का रोडमैप
डॉ. शर्मा के अनुसार, एक बेहतर नागरिक बनने के लिए शिक्षा में
तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ नैतिक ज्ञान, प्राकृतिक एवं धार्मिक दृष्टि, अस्तित्व और धर्म के सामाजिक ज्ञान जैसे तत्वों का समावेश अनिवार्य है।
सम्मेलन के अंत में उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तकनीकी ज्ञान के साथ नैतिकता और सामाजिकता का मेल होगा, तभी युवा एक जिम्मेदार और सजग नागरिक बन पाएंगे। इस पैनल डिस्कशन में देश-विदेश के कई अन्य विद्वानों, कुलपतियों एवं वैज्ञानिकों ने भी अपने विचार साझा किए।















