ग्रामीण विद्युतीकरण को ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिये एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम माना जाता है। यह अब सहज स्वीकार्य है कि बिजली अब एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता बन चुकी है और प्रत्येक घर में बिजली की सुविधा होनी ही चाहिए। ग्रामीण भारत में, व्यापक प्रभाव वाले आर्थिक और मानव विकास हेतु विद्युत आपूर्ति की आवश्कयता है। राष्ट्रीय विद्युत नीति में ग्रामीण क्षेत्रों में 24 घंटे बिजली देने की बात कही गई है। ग्रामीण विद्युतीकरण नीति का उद्देश्य सभी घरों में बिजली की सुविधा प्रदान करना है।
ग्रामीण विद्युतीकरण की परिभाषा को अब और सख्त बना दिया गया है ताकि किसी गांव को विद्युतीकृत घोषित करने के पूर्व पर्याप्त विद्युतीय अधोसंरचना की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। जनगणना 2001 के अनुसार देश में करीब 1.2 लाख गांवों में बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।
राज्यों द्वारा ग्रामीण विद्युतीकरण की मंथर गति को देखते हुए भारत सरकार ने मार्च 2005 में अपना अग्रगामी कार्यक्रम राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना (आरजीजीवीवाई) की शुरूआत की। इसका उद्देश्य एक लाख अविद्युतीकृत गांवों में बिजली पहुंचाना और 2.31 करोड़ ग्रामीण बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले) परिवारों को मुपऊत बिजली कनेक्शन प्रदान करना है। इस योजना के तहत जो बुनियादी ढांचा खड़ा किया जा रहा है, वह सभी घरों में बिजली का कनेक्शन देने के लिये पर्याप्त है। एपीएल (गरीबी रेखा से ऊपर) परिवारों को बिजली आपूर्ति करने वाली कम्पनी की शर्तों आदि के फार्म भर उनसे बिजली के कनेक्शन लेने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है।
योजना- योजना में परियोजनाओं के लिये 9 प्रतिशत पूजीगत राज सहायता (सब्सिडी) दी जाती है और इसमें निम्नलिखित गतिविधियां शामिल हैं – ग्रामीण विद्युत वितरण मेरुदंड (बैकबोन)(आरईडीबी), ग्रामीण विद्युतीकरण अधोसंरचना का सृजन (वीईआई), विकेन्द्रीकृत वितरित उत्पादन (डीडीजी) और आपूर्ति तथा गरीबी रेखा से नीचे परिवारों को ग्रामीण परिवार विद्युतीकरण। विकेन्द्रीकृत वितरण उत्पादन (डीडीजी) योजना के तहत राज्य उन क्षेत्रों में नवीन एवं नवीकरणीय स्रोतों पर आधारित परियोजनायें भी हाथ में ले सकते हैं, जहां इनको लगाने में खर्च कम हो। आरजीजीवीवाई के तहत डीडीजी परियोजनायें लगाने के लिये विस्तृत दिशानिर्देश जारी किये जा चुके हैं।
ग्यारहवीं योजना में भी आरजीजीवीवाई जारी है- योजना के अंतर्गत 68,763 गांवों में बिजली पहुंचाने और 83.1 लाख बीपीएल परिवारों को बिजली के मुपऊत कनेक्शन के लिये 97 अरब 32 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 234 जिलों की 235 परियोजनाओं की मंजूरी दी गई थी। दसवीं योजना के अंत तक 38.525 गांवों में बिजली पहुंचाई जा चुकी थी।
ग्यारहवीं योजना में आरजीजीवीवाई को जारी रखने की मंजूरी भारत सरकार ने 3 जनवरी, 2008 को दी और इसके लिये 2 लाख 80 अरब रूपये की पूंजीगत सब्सिडी देने का प्रावधान किया गया। वे राज्य जिनमें अविद्युतीकृत गांवों और परिवारों की संख्या काफी ज्यादा है, उनपर इस योजना के तहत ज्यादा जोर दिया गया है। ये राज्य हैं – असम, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल। जिन अन्य क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है वे हैं पूर्वोत्तर के विशेष श्रेणी वाले राज्य, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर तथा उत्तराखंड, अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगने वाले जिले और नक्सल प्रभावित जिले। सौ से अधिक जनसंख्या वाली आबादियों को योजना में शामिल किया गया है।
ऊर्जा मंत्रालय ने अब तक 534 जिलों के 118,146 गांवों में बिजली पहुंचाने और 2.45 करोड़ ग्रामीण बीपीएल परिवारों को नि:शुल्क कनेक्शन देने की मंजूरी दी है। 15 जुलाई 2009 तक 63,040 गांवों में बिजली पहुंचाई जा चुकी है और 63.6 लाख बीपीएल परिवारों को बिजली के मुपऊत कनेक्शन दिये जा चुके थे। मार्च 2012 तक सभी स्वीकृत परियोजनाओं को पूरा करने का लक्ष्य है।
क्रियान्वयन- ग्रामीण विद्युतीकरण निगम योजना पर अमल करने वाली नोडल एजेंसी है। परियोजना पर तेजी से अमल के लिये पावर ग्रिड, एनटीपीसी, एनएचपीसी, और डीवीसी जैसे केन्द्रीय विद्युत उपक्रमों की सेवाओं को 4 राज्यों की बिजली कम्पनियों को उपलब्ध कराया गया है। परियोजनाओं पर प्रभावी और उम्दा क्रियान्वयन के लिये, मंत्रालय ने क्रियान्वयन की टर्न काद्ग (पूर्ण रूप से तैयार करके दी जाने वाली) पध्दति, त्रि-स्तरीय निगरानी व्यवस्था और मील का पत्थर आधारित परियोजना निगरानी का तरीका अपनाया है। इस योजना के तहत राज्यों से विद्युतीकृत गांवों को न्यूनतम 6 से 8 घंटे बिजली देने को कहा गया है। आरजीजीपीवाई के तहत विद्युतीकृत गांवों में वितरण के प्रभावी प्रावधान के लिये फ्रैंचाइजियों (अधिकृत एजेटों) की नियुक्ति अनिवार्य कर दी है। वितरण प्रबन्धन के लिये अधिकृत एजेंसियों (फ्रैंचाइजी) की व्यवस्था से ग्रामीण युवाओं को रोजगार के अच्छे अवसर मिल रहे हैं। अब तक 99,643 गांवों में अधिकृत एजेंट नियुक्त किये जा चुके हैं।
निगरानी – मंत्रालय ने राज्यों से मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय समन्वय समिति गठित करने और त्वरित क्रियान्वयन पर विपरीत प्रभाव डालने वाली अन्तर्विभागीय समस्याओं के निराकरण के लिये इसकी नियमित बैठक आयोजित करने को कहा है। मंत्रालय ने स्थानीय मुद्दों को निपटाने और परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा के लिये राज्यों को संसद सदस्यों और विधायकों सहित सभी दावेदारों (स्टैक होल्डर) को लेकर जिला स्तरीय समितियां गठित करने को कहा है। यह अनुभव रहा है कि जिन राज्यों में ये समितियां सक्रिय हैं और जिनकी नियमित बैठकें होती रहती हैं, वहां प्रगति अन्यों के मुकाबले बेहतर है।
योजनान्तर्गत, मंत्रालय ने राज्यों के बिजली उपक्रमों और उनके एजेंटों के ‘ग’ और ‘घ’ वर्ग के कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना भी शुरू किया है। ग्यारहवीं योजना के दौरा 75,000 कर्मचारियों और 40,000 फ्रैंचाइजियों (एजेंटों) को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य रखा गया है। वर्ष 2009-10 के दौरान 2500 कर्मचारियों और 5000 एजेंटों को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य है।
आरजीजीवीवाई के अन्तर्गत राज्यों से न्यूनतम 6 से 8 घटों के लिये बिजली की आपूर्ति करने, लाइनों में बिजली दोड़ाने के लिये पर्याप्त विद्युत (ऊर्जा) का प्रबंध करने और योजनान्तर्गत सृजित वितरण अधोसंरचना को विद्युत आपूर्ति के लिये उप-पारेषण अधोसंरचना की स्थापना करने की प्रतिप्रबध्दता के तौर पर अपनी ग्रामीण विद्युतीकरण योजनायें अधिसूचित करने को कहा गया है। दस राज्यों को ग्रामीण विद्युतीकरण की अपनी अधिसूचनायें अभी जारी करनी बाकी है। ये राज्य हैं – आंध्र प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, केरल, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखंड।
वेबसाइट – मंत्रालय ने एक वेबसाइट http://rggvy.gov.in शुरू की है, जिसमें आरजीजीवीवाई परियोजनाओं के बारे में सम्पूर्ण ब्यौरा जैसे योजना के तहत शामिल और विद्युतीकृत गांवों आदि का विवरण दिया गया है। ‘पब्लिक फोरम’ नाम से एक पृथक विन्डो बनाई गई है, जिसमें अपने विचार और शिकायतें दर्ज कराई जा सकती है। इस वेबसाइट पर व्यापक विचारों एवं प्रश्नों का उत्तर सम्बंधित जिले में परियोजना पर अमल की उत्तरदायी एजेंसी तुरंत देती है।
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