मानसून की दस्तक – सरकारी योजनाएं – डूबते शहर

निर्मल रानी
लेखिका व सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
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उत्तर भारत में मानसून दस्तक देने जा रहा है। निश्चित रूप से जो लोग भीषण गर्मी के प्रकोप से त्राहि त्राहि कर रहे हैं उन्हें वर्षा ऋतु से होने वाले मौसम परिवर्तन के बाद होने वाले तापमान में गिरावट से काफ़ी राहत महसूस होगी । परन्तु प्रकृति प्रदत्त यही राहत प्रायः उस समय मानव संकट में भी बदल जाती है जबकि मानसून में होने वाली यही बारिश इंसानों को सुकून व राहत देने के बजाये उसकी परेशानी,तबाही व बर्बादी का कारण बन जाती है। देश के कई राज्य आज भी ऐसे हैं जहाँ सरकार चाहते हुये भी बाढ़ के प्रकोप से इंसान व उसे होने वाले नुक़्सान को नहीं बचा पाती है। मानसून शुरू होते ही विभिन्न राज्यों की अनेक उफ़नती हुई नदियां प्रत्येक वर्ष मानवीय तबाही का नया इतिहास लिखती हैं। कहीं पुल बह जाते हैं ,कहीं बाँध टूट जाते हैं,कहीं पूरे के पूरे गांव बाढ़ की विनाशलीला की भेंट चढ़ जाते हैं। हम प्रत्येक वर्ष ऐसा हालत से जूझने के लिये मजबूर रहते हैं तथा इसे प्रकृतिक बाढ़ प्रकोप या इससे उपजी विनाश लीला समझकर इसे स्वीकार कर लेते हैं। हालांकि इसतरह की अनियंत्रित बाढ़ में भी भ्रष्टाचार एक बड़ा कारक होता है। मिसाल के तौर पर नदियों के किनारे बनने वाले बांधों के निर्माण में बड़े पैमाने पर होने वाला भ्रष्टाचार,अवैध खनन, कमज़ोर पुलों व पुलों के खम्बों का घटिया स्तर का निर्माण आदि। परन्तु बाढ़ के प्रकोप को ‘प्रकृतिक प्रकोप’ मानकर सरकार स्वयं को किसी तरह की ज़िम्मेदारी से बचा ले जाती है।
परन्तु शहरी इलाक़ों के डूबने की ज़िम्मेदार जहां मानवनिर्मित अनेक समस्यायें हैं वहीं सरकार की ग़लत  योजनायें भी इसके लिये कम ज़िम्मेदार नहीं। उदाहरण स्वरूप शहरों में बनाई या मरम्मत की जाने वाली गलियां बार बार ऊँची से ऊँची की जाती हैं। और उनके दोनों तरफ़ की नालियों की गहराई को कम कर उसे और छिछला कर दिया जाता है। परिणाम स्वरूप अनेक मकानों का मुख्य स्तर गलियों व सड़कों से भी नीचे हो जाता है। इसकी वजह से थोड़ी सी भी बारिश का पानी मकानों में प्रवेश कर जाता है। और अगर बारिश तेज़ हो फिर तो गली मोहल्लों में बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती है। उधर हरियाणा के अंबाला जैसे विभिन्न राज्यों के विभिन्न शहरों में बरसाती तथा नालों के माध्यम से जल निकासी हेतु अनेक नये नालों का निर्माण किया गया है। इसी तरह प्रायः फ़्लाई ओवर्स के नीचे भी नाले बनाये गये हैं। आज यदि पूरी ईमानदारी के साथ इन नवनिर्मित नालों की स्थिति पर नज़र डाली जाये तो यह अधिकांश जगहों पर न केवल क्षति ग्रस्त मिलेंगे बल्कि ज़्यादातर नाले अवरुद्ध भी नज़र आयेंगे। तमाम जगहों पर यह नाले नालियां पूरी तरह ढके होंगे। इतने ढके कि इनकी न तो सफ़ाई की जा सकती है न ही इनमें जमे कीचड़ मलवे को निकाला जा सकता है। गोया सरकार, निर्धारित योजनानुसार निर्माण तो कर देती है। परन्तु उसे सुचारु रूप से प्रवाहित करने की ओर ध्यान नहीं देती। यदि करोड़ों रूपये ख़र्च करने के बावजूद नालों व नालियों से गन्दा पानी प्रवाहित नहीं हो रहा है और बजाये इसके यही नाली नाले शहरों में आने वाली बढ़ का कारण भी बने फिर जनता के पैसों की बर्बादी का आख़िर क्या औचित्य है ?
शहरों के डूबने में सरकार के साथ साथ जनता भी कम दोषी नहीं है। जो गंदे नाले व नालियां गंदे घरेलू पानी या वर्षा जल को प्रवाहित करने के लिये होते हैं उन्हीं नालों में आपको मरे हुये जानवर,रज़ाई,गद्दे,कंबल,कपड़े,कांच व प्लास्टिक की बोतलें पॉलीथिन,प्लास्टिक,ईंट-पत्थर,जूते चप्पल,घरेलु कूड़ा करकट आदि न जाने क्या क्या पड़ा नज़र आयेगा। ज़ाहिर है यह ‘कारगुज़ारी’ सरकार की नहीं बल्कि आम लोगों की है। हमारी और आप की है। हमें यह समझना होगा कि हम नालियों का इस्तेमाल केवल गंदे जल के प्रवाह करने के मक़सद तक ही करें।  इन्हें हम कूड़ा घर क़तई न बनने दें। हम स्वयं भी ऐसा न करें और यदि कोई ऐसा करते दिखाई दे तो उसे भी मना करें। इन्हीं लापरवाहियों के चलते बरसात के दिनों में शहरों में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। और जो लोग नालों व नालियों को कूड़ाघर बनाते हैं उन्हीं के मकानों में वर्षा जल नालों के गंदे पानी के साथ प्रवेश करता है जोकि परेशानी व असुविधा के साथ साथ विभिन्न बीमारियों को भी दावत देता है।
इसके साथ साथ सरकार का भी कर्तव्य है कि वह युद्धस्तर पर शहरी नालों व नालियों की समुचित सफ़ाई करवाये। टूटे फूटे नालों व नालियों की मरम्मत कराये। इनमें जमी गाद व कचरा कूड़ा आदि पूरी तरह साफ़ करवाकर नाले नालियों के पानी की प्रवाह पूर्ण स्थिति सुनिश्चित करे। जिन लोगों ने अपनी सुविधानुसार अथवा सरकारी ठेकेदारों द्वारा नालों को इतनी दूर तक ढक दिया गया है कि उसके नीचे सफ़ाई कर पाना ही संभव नहीं,नालों के ऐसे ढके हिस्से को तुड़वाकर इन्हें खोलने की व्यवस्था की जाये ताकि सफ़ाई कर्मचारी सुगमता से इनकी सफ़ाई कर सकें। वर्तमान मशीनी युग में ऐसे नालों नालियों की सफ़ाई के लिये भी मशीनों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। नालों व नालियों का निर्माण या इनकी मरम्मत स्तरीय होनी चाहिये। भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी ऐसी योजनाएं भी जहाँ बाढ़ का कारण बनती हैं वहीँ नालियों की गुणवत्ता की कमी से लोगों के घरों में भी नाले नाली के पानी का रिसाव होता है। इसकी वजह से मकान की नींव तो कमज़ोर होती ही है साथ ही घरों में सीलन भी पैदा होती है।
गली निर्माण व मुरम्मत के लिये भी सरकार स्पष्ट निर्देश जारी करे कि कोई भी गली पुरानी गली को खोद कर गली के उसी स्तर पर तैय्यार की जाये जो स्तर पूर्व में था। और यदि कोई ठेकेदार किसी गली को नये स्तर पर ऊँचा करता है इसका अर्थ है कि वह भ्रष्ट है और शहरवासियों को संकट में डालना चाहता है। ऐसे ठेकेदारों को काली सूची में डाला जाये और यदि किसी अधिकारी की मिलीभगत से वह ऐसा कर रहा हो तो उस अधिकारी को भी पदमुक्त किया जाना चाहिये। यदि समय रहते सरकार ने नालों व नालियों की समुचित सफ़ाई नहीं करवाई तो मानसून अपनी दस्तक दे चुका है और निःसंदेह बिना रखरखाव वाली यही ग़लत सरकारी योजनायें प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष की वर्षा ऋतू में भी डूबते हुये शहरों का करक बन सकती हैं।

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