अविश्वास,वर्चस्व व विस्तारवाद है हर युद्ध का कारण

– तनवीर जाफ़री – 

आख़िरकार पिछले कई महीनों से रूस व यूक्रेन के मध्य चल रही युद्ध की दुर्भाग्यपूर्ण आशंका हक़ीक़त में बदल ही गयी। 1922 से लेकर 1991 तक यूनियन ऑफ़ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक अर्थात (USSR) के रूप में एक साथ रहने वाले रूस व यूक्रेन का एक दूसरे देशों से ऐसा विश्वास उठ जायेगा कि दोनों देश युद्ध के उस मोड़ पर जा खड़े होंगे जहाँ से तीसरे विश्व युद्ध की चर्चा होने लगेगी,यह सोचा भी नहीं जा सकता था। परन्तु आज यह दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति दुनिया के सामने है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि एक देश अथवा संघ के रूप में कभी साथ रहे ऐसे देश जब कभी भौगोलिक दृष्टि से अलग होते हैं तो किसी न किसी कारण उन्हीं देशों में परस्पर ऐसी रंजिश हो जाती है कि बात युद्ध की विभीषिका तक आ पहुँचती है। युद्ध नामक इस ‘सामूहिक नरसंहार ‘ को भी समय समय पर अलग अलग नाम दिये जाते हैं। कभी यह तेल के लिये होने वाली लड़ाई बताई जाती है तो कभी इसे हथियार उत्पादक देशों द्वारा अपने हथियारों की बिक्री के लिये रचा गया चक्रव्यूह बताया जाता है। कोई इसे ईसाई -मुस्लिम के बीच छिड़ा सभ्यता का संघर्ष परिभाषित करता है तो कोई इसे रंग भेद की संज्ञा देता है। यहाँ तक कि कुछ लोग अभी से यह भी भविष्यवाणी करने लगे हैं कि भविष्य में पानी के लिये भी विश्व युद्ध हो सकता है।
युद्ध की विभीषिका का सामना करने वाले देशों में जब बच्चों,बुज़ुर्गों व लाचार महिलाओं की चीत्कार सुनाई देती है। उस समय ज़ेहन यह सोचने के लिये मजबूर हो जाता है कि संयुक्त राष्ट्र में बैठे एक से बढ़कर एक बुद्धिजीवी,दुनिया का बड़े से बड़े ‘थिंक’ टैंक संगठन,दुनिया के देशों में शासन करने वाले तथाकथित रणनीतिकार व राजनीतिज्ञ, कूटनीज्ञ गोया स्वयं को दुनिया का सबसे संभ्रांत व अभिजात वर्ग समझने वाले ‘सफ़ेद पोश ‘ लोगों के पास किन्हीं दो देशों के बीच पैदा होने वाली किसी भी समस्या के समाधान के लिये आख़िर युद्ध ही एकमात्र रास्ता क्यों बचता है? और यदि युद्ध ही किसी विवाद का एकमात्र हल है ऐसे में युद्ध में मारे जाने वाले लोग जिनकी युद्ध के लिये न तो सहमति होती है ,न ही वे युद्ध में हिस्सा ले रहे होते हैं,ऐसे साधारण नागरिकों को बम बारी का शिकार बनाना,पूरा देश तबाह कर देना,बसे-बसाये आबाद शहरों को खंडहर में तब्दील कर देना,इंसानों की लाशों को चील कौवों का शिकार बनने के लिये छोड़ देना,क्या यही सब डरावनी परिस्थितियां दुनिया के अभिजात्य वर्ग के हाथों में होने का परिणाम हैं ? दुनिया के कई देश तो वहां के ‘सनकी’ शासकों की ज़िद व उनकी हठधर्मिता की वजह से बर्बाद हो चुके हैं।
इसी तथाकथित ‘अभिजात ‘ वर्ग की एक और ‘वैश्विक स्तर’ की चतुराई देखिये। जिन हथियारों से बेगुनाह निहत्थों को मारा जाता है वह हथियार भी इन्हीं निरीह लोगों के टैक्स के पैसों से बनाये या ख़रीदे जाते हैं। परन्तु दुनिया के चंद गिने चुने लोग इन्हीं हथियारों से जब और जहाँ चाहें लाखों करोड़ों लोगों को मारने का फ़ैसला कर बैठते हैं। जनता के पैसों से हथियार ही नहीं बनाया या ख़रीदा जाता बल्कि युद्ध थोपने या युद्ध का निर्णय लेने वाले इस राजनैतिक व प्रशासनिक रणनीतिकारों का शाही ख़र्च,इनका सारा ऐश-ो-आराम,सभी सुविधायें भी जनता के टैक्स के पैसों से ही पूरी की जाती हैं ? प्रायः पूरी दुनिया में करदाताओं द्वारा टैक्स अपने अपने देश के विकास व प्रगति के लिये दिया जाता है। परन्तु अनेक देश इन्हीं पैसों का इस्तेमाल अपने देश के रक्षा बजट पर करते हैं। यदि कोई देश परमाणु संपन्न देश बन गया तो वह अपनी उसी ‘नरसंहारक ‘ उपलब्धि पर इतराता फिरता है। वह अपने प्रतिस्पर्धी अथवा दुश्मन देशों को ‘परमाणु ‘ बम की गीदड़ भपकी देता रहता है।
ताज़ातरीन रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर जो थ्योरी बताई जा रही है उसके अनुसार यूक्रेन को भरोसा था कि पश्चिमी देश विशेषकर अमेरिका ‘नाटो’ सदस्य देशों के साथ मिलकर उसकी मदद करेंगे। नेटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने यह कहा भी है कि रूस ने यूरोप में शांति भंग कर दी है। परन्तु फ़िलहाल अमेरिका या नाटो की ओर से किसी तरह की सहायता यूक्रेन को नहीं पहुंची है। उल्टे रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने ही अमेरिका सहित नाटो देशों को चेतावनी दे डाली है कि वे दूर रहें अन्यथा परिणाम प्रलयकारी होंगे। नतीजतन यूक्रेन जो कि हर लिहाज़ से रूस के मुक़ाबले एक कमज़ोर देश है,को अकेले ही युद्ध की त्रासदी झेलना पड़ रही है। यूक्रेन के हज़ारों लोग अपनी जान बचाने के लिए पोलैंड, रोमानिया, हंगरी और स्लोवाकिया जैसे पड़ोसी देशों की ओर पनाह लेने के लिये जा रहे हैं। इस बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदीमीर ज़ेलेंस्की इस बात को लेकर भयभीत हैं कि राजधानी कीव पर रूस भीषण हमला कर सकता है। यूक्रेन में लोग पश्चिमी देशों की मदद की आस लगाये बैठे हैं। राजधानी कीव में हथियारों की दुकानों में बंदूक़,गोलियां व अन्य शस्त्र समाप्त हो चुके हैं। इन हालात में 1971 के उस भारत पाक के युद्ध की याद आती है जब पाकिस्तान अमेरिका द्वारा भेजे गये सातवें युद्ध पोत का इंतेज़ार ही करता रह गया और भारत की मदद से पाकिस्तान दो हिस्सों में बंट गया। गोया कोई विकसित देश किसी दूसरे  देश की लड़ाई अव्वल तो लड़ता नहीं और यदि युद्ध में कूदता भी है तो अपना हित व स्वार्थ देखकर। वैसे भी वियतनाम से लेकर इराक़,अफ़ग़ानिस्तान जैसे कई देशों में पूर्व में किये गये अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप व उनके परिणाम उसे बहुत कुछ सोचने के लिये मजबूर करते हैं।
ज़रा सोचिये कि यदि दुनिया का शासक वर्ग वास्तव में ज़िम्मेदार,संभ्रांत,अभिजात व बुद्धिजीवी वर्ग के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करे तो यह दुनिया कितनी सुंदर,प्रगतिशील,विकसित,ख़ुशहाल व संपन्न होगी। ऐसे सुन्दर विश्व के निर्माण के लिये दुनिया के शासकों को अपनी उन पारंपरिक सोच का त्याग करना होगा जो आमतौर पर युद्ध का कारण बनती हैं। और वह सोच है अविश्वास,वर्चस्व तथा विस्तारवाद की।आज अधिकांश पड़ोसी देश एक दूसरे पर संदेह करते हैं। विस्तारवाद की नीति पर चलते हुये अनेक देश एक दूसरे की ज़मीन हड़पने की जुगत में रहते हैं। कुछ देश कभी अपना क्षेत्रीय तो कभी वैश्विक वर्चस्व बनाने के लिये युद्ध लड़ते हैं जैसे ताज़ातरीन रूस-यूक्रेन युद्ध जोकि रूस द्वारा यूक्रेन को बहाना बनाकर वैश्विक वर्चस्व के लिये लड़ा जा रहा है।

दुनिया के युद्ध विरोधी व अमन पसंद लोगों के लिये हर दौर में ‘साहिर’ लुधियानवी की यह नज़्म कितनी प्रासंगिक प्रतीत होती है कि –

ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मशरिक़ में हो कि मग़रिब में
अम्न-ए-आलम का ख़ून है आख़िर
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूह-ए-तामीर ज़ख़्म खाती है
खेत अपने जलें कि औरों के
ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है
टैंक आगे बढ़ें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
ज़िंदगी मय्यतों पे रोती है
जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
आग और ख़ून आज बख़्शेगी
भूख और एहतियाज कल देगी
इसलिए ऐ शरीफ़ इंसानों
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शम्मा जलती रहे तो बेहतर है।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social  activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Contact – : Email – tjafri1@gmail.com –

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