एकादशी व्रत और चावल खाना क्यों है वर्जित

एकादशी के व्रत अहम माना जाता है. हर माह दो एकादशी पड़ती हैं. एक कृष्ण पक्ष के दौरान दूसरे शुक्ल पक्ष में. एकादशी का व्रत सभी व्रतों में सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है.

ऐसी मान्यता है कि हर एकादशी के व्रत का अपना अलग महत्व होता है. मगर सभी एकादशी के व्रत के लिए नियम एक ही है. गौरतलब है कि एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है. एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को खुश करने उनकी कृपा के लिए रखा जाता है. ऐसी मान्यता है कि एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है. इतना ही नहीं, इस दिन व्रत दान पुण्य आदि से व्यक्ति को मृत्यु के बाद भी मोक्ष प्राप्त होता है. गौरतलब है कि एकादशी का व्रत दशमी तिथि से शुरू होकर द्वादशी के दिन खत्म हो जाता है. ऐसी मान्यता है कि अगर एकादशी के व्रत का पालन नियमों के साथ किया जाए तो इससे व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता. इस दौरान चावल खाना वर्जित होगा. आइए जानिए इसके पीछे की कथा.

एकादशी पर इसलिए नहीं खाते चावल ?

पौराणिक कथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद अगला जन्म जीव का मिलता है. वहीं, ऐसा कहा जाता है कि अगर द्वादशी के दिन चावल खाए जाएं तो इस योनि से मुक्ति मिल जाती है. पुराणों में कहा गया है कि माता शक्ति के क्रोध से बचाव को लेकर महर्षि मेधा ने अपने शरीर को त्याग दिया था. महर्षि मेधा चावल जौ के रूप में उत्पन हुए इसलिए तब से चावल जौ को जीव माना जाने लगा. गौरतलब है कि एकादशी के दिन ही महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया था. अतः चावल जौ को जीव रूप में माना जाता है. वहीं एकादशी के दिन इन्हें खाना वर्जित हो गया. एकादशी के दिन इसे न खाकर व्रत पूर्ण माना जाता है.

क्या है मान्यता

चावल में जल का तत्व अधिक होता है. जल पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक होता है. इसे खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ जाती है इससे मन चंचल होता है. ऐसे में व्रत के नियमों का पालन करने में कठिनाई होती है. वहीं, पुराणों में इस बात का जिक्र है कि एकादशी के व्रत में मन पवित्र सात्विक भाव का पालन करना आवश्यक है. ऐसे में इस दिन चावल से बनी चीजें नहीं खानी चाहिए PLC

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here