कश्मीर पर ट्रम्प कर चुके हैं मध्यस्थता !

– प्रेम कुमार –

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले से संबोधन में पाकिस्तान का नाम नहीं लिया, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का नाम नहीं लिया। एक दिन पहले ही पड़ोसी देश की धमकी और आशंकाओं का जवाब नहीं दिया। क्या यह सामान्य बात है? ऐसा कहकर प्रधानमंत्री ने क्या ‘हाथी चले बाज़ार कुत्ते भूंके हज़ार’ वाली कहावत को चरितार्थ किया है? ऐसा कहकर उन्होंने जम्मू-कश्मीर के मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण होने की आशंका को कम किया है? क्या कारण है? क्यों लालकिले से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पड़ोसी देश को कोई नसीहत नहीं दी?

ट्रम्प की पहल पर अभिनन्दन की रिहाई !

अब एक बात साफ हो चुकी है कि भारत कुछ भी एक्शन लेता है तो वह अमेरिका को पता होता है, उसकी सहमति होती है। क्या धारा 370 को निष्प्रभावी बनाने और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के मामले में भी ऐसा ही था? इसका उत्तर ‘हां’ में दिया जाए, इससे पहले चंद उदाहरणों पर गौर करना जरूरी होगा। जब बालाकोट एअर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तानी हमलावर विमान को खदेड़ते हुए अभिनन्दन पाकिस्तान की सीमा में पहुंच गये और दो दिन के भीतर उनकी रिहाई हुई, तो उस दिन डोनाल्ड ट्रम्प का ट्वीट याद कीजिए। इस ख़बर की सूचना सबसे पहले डोनाल्ड ट्रम्प ने ही दी थी।तब वे वियतनाम में थे। किम जोंग से वार्ता कर रहे थे। अभिनन्दन को लेकर पाकिस्तानी संसद में इमरान ख़ान की घोषणा से भी पहले ट्रम्प के एलान का अपना अंदाज था-

“हम उन्हें (भारत और पाकिस्तान को) रोकने के लिए मदद करने की कोशिश करते रहे हैं और हमारे पास अब इस संबंध में शानदार ख़बर है।”

"We have been involved in trying to help them (India and Pakistan) stop and we have some reasonably decent news"

बालाकोट एअर स्ट्राइक भी अमेरिका से पूछकर!

भारत में पुलवामा हमला 14 फरवरी को हुआ और भारत ने इसका जवाब बालाकोट एअर स्ट्राइक के रूप में 26 फरवर को तड़के इसका जवाब दिया। मगर, इस बारे में 23 फरवरी को ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प संकेत दे चुके थे।

“अभी भारत और पाकिस्तान के बीच बहुत-बहुत बुरी स्थिति है…भारत कुछ बहुत कड़ा करने की सोच रहा है। भारत ने हमले में लगभग 50 लोग खोए हैं। मैं भी उस स्थिति को समझ सकता हूं।”- डोनाल्ड ट्रम्प, 23 फरवरी, 2019

On February 23, he hinted, “Right now, between Pakistan and India, there is a very, very bad situation…. “India is looking at something very strong. India just lost almost 50 people in the attack. I can understand that too.”

दुनिया नहीं जानती कि बालाकोट एअर स्ट्राइक में हुआक्या?

एक बात और चौंकाती है कि अगर अमेरिका को बालाकोट एअर स्ट्राइक की जानकारी थी और अमेरिका-पाकिस्तान के बीच जो संबंध हैं उसे देखते हुए कहीं ऐसा तो नहीं कि अमेरिका ने इसकी गोपनीय जानकारी पाकिस्तान को दे रखी थी! बालाकोट एअर स्ट्राइक के प्रभाव को लेकर भारत की ओर से कोई आधिकारिक और पुख्ता दावा सामने नहीं आया है। भारतीय सेना की ओर से भी कहा गया था कि उन्होंने पाकिस्तान में घुसकर एक्शन लिया, वे लाशें गिनने नहीं गये थे। कभी योगी आदित्यनाथ ने 400 से ज्यादा आतंकियों के मारे जाने की बात कही, तो कभी किसी और ने कुछ और दावे रखे। नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (एनटीआरओ) ने दावा किया था कि बालाकोट एअर स्ट्राइक के वक्त वहां 300 मोबाइल सक्रिय थे। पाकिस्तान की ओर से यह हास्यास्पद दावा सामने आया था कि केवल पेड़ों को नुकसान पहुंचा है। अगर बालाकोट एअर स्ट्राइक, अमेरिका को इसकी जानकारी, हमले के नतीजों को लेकर परस्पर विरोधी दावे- इन सबको मिलाकर देखें तो ऐसा लगता है कि सबको सब बात पता थीं। एक तरह की मैच फिक्सिंग थी।

कश्मीर के बारे में संकेत दे चुके थे ट्रम्प!

अब अनुच्छेद 370 और 35ए पर लौटें तो भारत का गोपनीय प्लान शुरू हुआ जब 2 अगस्त को अमरनाथ यात्रा रोकने का एलान हुआ और विदेशी पर्यटकों के लिए एडवाइजरी सामने आयी। धारा 144 लागू हो गयी। स्थानीय नेता गिरफ्तार कर लिए गये। 5 अगस्त को गोपनीय प्लान सार्वजनिक हो गया जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में इस बाबत बिल पेश किए। मगर, अमेरिका को यह बात बहुत पहले से पता थी। भारत की ओर से प्लान पर अमल करने की पहल शुरू होने से 10 दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इमरान ख़ान के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर जम्मू-कश्मीर को लेकर बड़ा संकेत दे दिया था।तो

ट्रम्प ने कहा, “तो मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दो हफ्ते पहले था और हमने इस विषय पर बात की। और, वास्तव में उन्होंने कहा, ‘क्या आप मध्यस्थता करना चाहेंगे?’ मैंने कहा- कहां?, उन्होंने कहा ‘कश्मीर’…क्योंकि यह बहुत-बहुत लम्बे समय से चला आ रहा है। मैं चकित था कि यह कितने लम्बे समय से है (इमरान ख़ान ने कहा-70 साल). (इतने लम्बे समय से) यह चला आ रहा है।मैं समझता हूँ कि वे (भारतीय) इसे हल करना चाहते हैं। मैं समझता हूं कि आप भी इसे हल करना चाहते हैं….और अगर मैं मदद कर सकता हूं तो मैं मध्यस्थता करना चाहूंगा। यह होना चाहिए।”

“So, I was with Prime Minister Modi two weeks ago and we talked about this subject. And he actually said ‘would you like to be a mediator or arbitrator?’ I said ‘where?’, he said ‘Kashmir’… Because this has been going on for many, many years. I am surprised by how long (Khan says 70 years). It has been going on (for long). I think they (Indians) would like to see it resolved. I think you would like to see it resolved…and if I can help, I would love to be a mediator.”

खंडन की कूटनीति

ट्रम्प के इस बयान पर हंगामा बरप गया। कश्मीर मुद्दे पर भारत मध्यस्थता की बात करे, इस पर कोई विश्वास नहीं कर सकता था। भारत के विदेश मंत्रालय ने इसका खंडन किया। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी अपने ही राष्ट्रपति की बात का खंडन किया। मगर, ये वास्तव में खंडन की पॉलिटिक्स थी जिसे वक्त ने साबित किया है। एक नयी शैली विकसित हुई है जिसमें जो कहना होता है कह दिया जाता है, संदेश दे दिया जाता है और औपचारिक रूप से उसका खंडन करके विवाद को शांत कर दिया जाता है।

न ट्रम्प ने खंडन किया, न मोदी ने सहमति जताई

न तो डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने मुंह से कभी अपनी बात का खंडन किया और न ही भारतीय प्रधानमंत्री ने कभी डोनाल्ड ट्रम्प के बयान पर अपने मुंह से कोई प्रतिक्रिया दी। भारतीय मीडिया खंडन पॉलिटिक्स का हिस्सा बनकर ट्रम्प को झूठा बताता रहा। कूटनीतिक सियासत मीडिया का इस्तेमाल करता रहा।

एक बार फिर इमरान ख़ान की ओर से 14 अगस्त को पाक अधिकृत कश्मीर की विधानसभा में जो गर्जना हुई है उस पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुप हैं। उनके अलावा समूचा हिन्दुस्तान इमरान ख़ान और पाकिस्तान पर आक्रामक हैं। मोदी की चुप्पी के साफ मायने हैं कि जब सहमति से ही हो रहा है और इमरान की आक्रामकता उसी का हिस्सा है तो उस पर प्रतिक्रिया क्यों दी जाए।

PoK में इमरान, PoK पर अमित शाह के दिखावटी तेवर

इमरान ख़ान के PoK की विधानसभा में जाने और वहां दिखावटी गुस्सा करने के भी साफ संकेत हैं। इसकी तुलना गृहमंत्री अमित शाह के उस बयान से की जा सकती है जिसमें उन्होंने PoK और अक्साई चीन को लेकर जान देने की बात कही थी। भारत की ओर से यह बनावटी ललकार लगता है।

यूएन में चीन की पहल पर जम्मू-कश्मीर का जो मसला उठ रहा है वह कूटनीतिक है। इसका नतीजा कुछ निकलने वाला नहीं है। यह बस दिखावे का प्रतिरोध मात्र है। यही वजह है कि भारत इस पहल से बहुत चिन्तित नहीं है।

अब बात समझ में आ रही है कि जम्मू-कश्मीर के मसले पर जो घटनाएं घटी हैं उससे डोनाल्ड ट्रम्प, इमरान ख़ान और नरेंद्र मोदी कोई भी अनजान नहीं रहा है। सबको सब बात पता थी, ऐसा साफ लग रहा है। सब अपने-अपने हिस्से की भूमिका निभा रहे हैं। मगर, इसका मतलब ये भी है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने जैसे युग का अंत करने को पाकिस्तान और भारत के बीच अमेरिकी की मध्यस्थता में सहमति बन गयी है। लाइन ऑफ कंट्रोल ही वास्तविक सीमा रेखा रहेगी। रही बात कश्मीर के लोगों से राय लेने की, तो भारत ने निश्चित रूप से यह दुनिया को समझा दिया है कि यह उनका अंदरूनी मामला है और वह इससे निपट लेगा।

 

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Prem Kumar

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