– तनवीर जाफ़री –
भारत को विभाजित कर एक अलग इस्लामी राष्ट्र का गठन करने वाले कुछ मुस्लिम नेताओं ने जब इस राष्ट्र का नामकरण "पाकिस्तान" करने का निर्णय लिया होगा उस समय हो सकता है उन्होंने इस बात की कल्पना की हो कि भविष्य में यह देश अर्थात पाकिस्तान दुनिया का सबसे शक्तिशाली इस्लामी राष्ट्र बनेग। इन्होंने यह भी सोचा होगा कि पाकिस्तान भविष्य में मुस्लिम राष्ट्रों का नेतृत्व करेगा। संयुक्त भारत में रहने वाले मुसलमानों को वरग़लाने के लिए इन चंद नाम निहाद मुस्लिम नेताओं ने इस प्रस्तावित देश का नाम "पाकिस्तान" रखकर यह जताना चाहा था कि यह एक "पाक" अर्थात "पवित्र आस्तां" अर्थात "पवित्र लोगों का घर" बनेगा। परन्तु जब इतिहास से मुझे यह जानकारी मिली कि पाकिस्तान के गठन के सबसे बड़े किरदार और मुख्य संस्थापक यानी मोहम्मद अली जिन्नाह उस समय के एक ऐसे इस्माइली शिया मुसलमान थे जो शराब पिए बिना रात का भोजन नहीं करते थे। इतना ही नहीं बल्कि सूअर के मांस के उपयोग से भी उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी,उसी समय से मेरे ज़ेहन में यह बात उठने लगी थी कि भले ही इस नए नवेले देश का नाम "पाक" आस्तां क्यों न रख दिया गया हो परन्तु दरअसल इसकी बुनियाद डालने वाले पाक के सबसे लोकप्रिय नेता इस्लामी नज़रिये से स्वयं में ही न केवल "नापाक" थे बल्कि ग़ैर इस्लामी भी थे। उनकी जीवनी से पता चलता है कि इस्माइली शिया मुसलमान होते हुए भी उन्होंने कभी हज यात्रा नहीं की। उनकी किसी भी जीवनी में नमाज़ पढ़ने और रोज़े रखने आदि इस्लामिक गतिविधियों का पालन करने का भी कोई ज़िक्र नहीं है। उनके विषय में उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़ वे सूअर व शराबख़ोरी लुक छुप कर नहीं करते थे बल्कि उनकी पत्नी रतन बाई जिन्ना के लिए अपने हाथों से सूअर का मांस बनाती थी। सूअर का मांस व शराब के सेवन को इस्लाम में हराम माना जाता है। वे अक्सर समारोहों में भी शराब पीते थे। बल्कि यह चीज़ें उनके सामान्य जीवन का हिस्सा थीं ।
क्या अजब इत्तेफ़ाक़ है कि आज तक उन्हीं जिन्नाह को तथाकथित इस्लामिक देश, पाकिस्तान के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। वे मुस्लिम लीग के भी सर्वोच्च नेता थे। पाकिस्तान के गठन के बाद वे वहां के पहले गवर्नर जनरल बने। पाकिस्तान में उन्हें क़ायदे-आज़म यानी महान नेता और बाबा-ए-क़ौम अर्थात राष्ट्र पिता के लक़ब से नवाज़ा जाता है। उनके जन्म दिन पर पाकिस्तान में अवकाश भी रहता है।पाकिस्तान और दुनिया के तमाम लोग आज भी उनकी मज़ार पर फ़ातिहा पढ़ने जाते हैं। यहाँ मैं यह भी स्पष्ट करता चलूँ कि किसी भी आम व्यक्ति का खान पान निश्चित रूप से उसका अति व्यक्तिगत विषय है। लिहाज़ा एक व्यक्ति के नाते जिन्नाह साहब के किसी भी शौक़ पर आपत्ति करने का किसी को भी कोई हक़ नहीं। परन्तु चूँकि वे एक तथाकथित इस्लामी राष्ट्र के संस्थापक थे इसलिए उनका इस्लामी शिक्षाओं व संस्कारों का अनुसरण करना ज़रूरी था। और निश्चित रूप से इस्लामी शिक्षा किसी भी मुसलमान को शराब और सूअर नोशी की इजाज़त नहीं देती।
बहरहाल ग़ैर इस्लामी चाल चलन रखने वाले रहनुमाओं की कोशिशों के नतीजे में बने देश का हश्र भी आज वैसा ही होता दिखाई दे रहा है जैसी कि इस देश की बुनियाद रक्खी गई है। अपने अस्तित्व में आने के मात्र 24 वर्षों बाद ही पाकिस्तान के इस्लामी राष्ट्र होने के दावे की हवा पूरी तरह उस समय निकल गई जबकि पूर्वी पाकिस्तान ने इस्लाम के नाम पर इकठ्ठा रहने के बजाए क्षेत्र व भाषा के नाम पर अलग रहना ज़्यादा लाभदायक और ज़रूरी समझा। आख़िर जब इस्लामी राष्ट्र का सपना दिखा कर भारत को विभाजित किया गया था तो उस स्थिति को क्योंकर बनाए नहीं रक्खा गया?1971 से पहले भी पाकिस्तान के स्थानीय मुसलमानों द्वारा भारत से 1947 में व उसके बाद पहुँचने वाले मुसलमानों के साथ काफ़ी ज़ुल्म,ज़्यादती व अन्याय करने की ख़बरें आती रही हैं। उन्हें आज तक मुहाजिर कहा जाता है। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान को जनरल ज़ियाउलहक़ के रूप में एक ऐसा कट्टर शासक मिला जिसने पाकिस्तान को कट्टरपंथ के मार्ग पर आगे बढ़ाया। ज़िया के समय ही पाकिस्तान में ईश निंदा क़ानून बना जिसका आज तक दुरूपयोग होता आ रहा है। आज पाकिस्तान अलग अलग विचारधारा के कट्टरपंथियों का गढ़ बन चुका है। हिन्दू,सिख,ईसाई,शिया,अहमदिया,बरेलवी तथा सूफ़ी मत के लोग वहां पूरी तरह असुरक्षित हैं। तालिबानों का भी पाकिस्तान के बड़े क्षेत्र में गहरा प्रभाव है। कश्मीर सहित पूरे भारत में कई दशकों से आतंक फैलाने की पाकिस्तान की जो कोशिशें हैं वह भी इस्लामी शिक्षाओं का हिस्सा क़तई नहीं हैं। इस्लाम धर्म में झूठ बोलना भी गुनाह है। परन्तु पाकिस्तान तो भारत में प्रायोजित की जा रही दहशतगर्दी को लेकर भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से झूठ बोलता रहता है। यह तथाकथित इस्लामी राष्ट्र पाकिस्तान ही है जहाँ जुलाई 2007 में इस्लामाबाद में इतना बड़ा लाल मस्जिद हादसा हुआ जिसकी पूरी दुनिया में दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती। ग़ौर तलब है कि परवेज़ मुशर्रफ़ के राष्ट्रपति काल में लाल मस्जिद में सेना द्वारा एक बड़ा आतंकवाद विरोधी ऑप्रेशन छेड़ा गया था। 3 से 11 जुलाई 2007 तक चले 8 दिन के इस ऑपरेशन में 154 लोग मारे गए थे जबकि 50 आतंकी हिरासत में लिए गए थे। इस मस्जिद का एक जेहादी इमाम मारा गया था जबकि दूसरा फ़ौजियों से अपनी जान बचाने के लिए बुर्क़ा ओढ़ कर भागते हुए पकड़ा गया था।
क्या उपरोक्त घटनाओं व इनके पात्रों के बारे में पढ़कर यह सोचा जा सकता है कि यह उस इस्लामी मत के लोगों या किसी ऐसे इस्लामी देश की बातें हैं जो इस्लाम हज़रत मोहम्मद,हज़रत अली व हज़रत इमाम हुसैन व इमाम हसन की शिक्षाओं का इस्लाम है? झूठ,मक्कारी,क़त्लोग़ारत,साम्प्रदायिकता,भ्रष्टाचार,बेईमानी,रिश्वतख़ोरी,आतंकवाद को सरपरस्ती देना जैसी बातें क्या "पाक" व "इस्लामिक रिपब्लिक" जैसे शब्द अपने देश के नाम के साथ जोड़ने की इजाज़त देती हैं। पिछले दिनों पाकिस्तान के बारे में सिलसिलेवार तरीक़े से छपी ख़बरों ने पूरी दुनिया को चौंका कर रख दिया। ख़बर यह थी कि इस "पाक" और "इस्लामी" देश के एक पूर्व राष्ट्रपति व दो पूर्व प्रधानमंत्री रिश्वत,धनशोधन,पद के दुरूपयोग तथा भ्रष्टाचार के मामले में जेल की सलाख़ों के पीछे पहुँच चुके हैं जबकि दो अन्य पूर्व प्रधानमंत्री ऐसे ही आरोपों में मुक़ददमों का सामना कर रहे हैं। इस समय जहाँ आसिफ़ ज़रदारी के रूप में एक पूर्व राष्ट्रपति पाकिस्तान की जेल की शोभाबढ़ा रहे हैं वहीँ नवाज़ शरीफ़ और शाहिद ख़ाकान अब्बासी जैसे पाक के दो पूर्व प्रधानमंत्री भी जेलों की रौनक़ में इज़ाफ़ा कर रहे हैं। सभी पर भ्रष्टाचार व आर्थिक अनियमिताओं तथा इसके लिए पद का दुरूपयोग करने का इलज़ाम है। आसिफ़ अली ज़रदारी को तो उनकी पत्नी बेनज़ीर भुट्टो के प्रधानमंत्री रहते हुए ही "मिस्टर 10 परसेंट" की उपाधि मिल गयी थी।आश्चर्य तो यह है की बदनाम व्यक्ति होने के बावजूद उनकी पार्टी ने बेनज़ीर की हत्या के बाद उन्हें कैसे राष्ट्रपति बना दिया। इन तीन "नापाक रहनुमाओं " के अलावा दो और पूर्व"पाक" प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी और राजा परवेज़ अशरफ़ भी ऐसे ही मामलों का अदालती सामना कर रहे हैं। यदि अदालत ने इन्हें भी "नापाक " साबित कर दिया तो पाकिस्तान "नापाक रहनुमाओं " के सज़ा पाने व जेल जाने के अपने ही मौजूदा 3 के रिकार्ड को तोड़ कर 5 "नापाक रहनुमाओं " तक पहुंचा देगा।
भ्रष्टाचार,रिश्वतखोरी के अलावा भी हैवानियत व अराजकता जैसे ग़ैर इस्लामी व ग़ैर इंसानी मामलों में भी पाकिस्तान का रेकार्ड पूरी तरह नापाक है। कभी इस देश ने राजनैतिक मतभेदों के चलते प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो को फांसी के फंदे पर लटकते देखा तो कभी औरत होने के बावजूद तथाकथित इस्लाम परस्तों द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो को हलाक कर दिया गया। मस्जिदों,इमामबारगाहों,दरगाहों आदि को निशाना बनाकर हज़ारों लोगों की जानें जाना तो इस "पाक" देश में आम बात हो गयी है। कभी नमाज़ियों पर हमला,कभी मुहर्रम के जुलूस पर आत्मघाती हमला,कभी फ़ौजियों और उनके मासूम बच्चों की सामूहिक हत्याएं यही वह हालात हैं जिसने पाक को "नापाक" देश के रूप में प्रचारित कर दिया है। पिछले दिनों पाकिस्तान पर आए भयंकर आर्थिक संकट पर प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की मार्मिक अपील ने यह सोचने के लिए मजबूर किया कि आख़िर पड़ोसी देश की दुर्दशा की वजह क्या है। तो पीछे मुड़कर देखने पर यही नज़र आया कि जिस तरह इस की बुनियाद ही नापाक थी उसी तरह आगे चलकर भी यहाँ के रहनुमाओं ने भी नपाकीज़गी में और इज़ाफ़ा करने में कोई कसर बाक़ी नहीं रक्खी। पाकिस्तान की रुसवाई का सबसे बड़ा कारण ही यही है।
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About the Author
Tanveer Jafri
Columnist and Author
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He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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