– डॉ नीलम महेंद्र –
तो फिर इलाहाबाद के नाम परिवर्तन पर ऐतराज क्यों?
क्या इलाहाबाद नाम से विशेष लगाव?
या फिर प्रयागराज नाम से परेशानी?
या फिर कोरी राजनीति?
वैसे भारत जैसे देश में जहाँ योग्यता के बजाए नाम के सहारे राजनैतिक परंपरा आगे बढ़ाई जाती हो, वहां नाम पर राजनीति होना शायद आश्चर्यजनक नहीं लगता।
तो चलिये पहले हम राजनीति से परे इस पूरे विषय का विश्लेषण कर लेते हैं।
यहाँ पर विषय है त्रिवेणी संगम की नगरी को उसका पुराना नाम दिया जाना। दरअसल”प्रयागराज”, तीन शब्दों से मिलकर बना यह शब्द हैं, प्र, याग और राज।
प्र यानी पहला, याग यानी यज्ञ, और राज यानी राजा। भारतीय मान्यता के अनुसार यह वो स्थान है जहाँ ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के पश्चात पहला यज्ञ किया था। इसके अतिरिक्त यहीं पर गंगा यमुना सरस्वती का संगम होने के कारण इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है। इन्हीं कारणों से इसे सभी तीर्थों का राजा कहा गया और इस प्रकार इस स्थान को अपना यह नाम प्रयागराज मिला।ऋग्वेद, मत्स्यपुराण, रामायण, महाभारत जैसे अनेक भारतीय वांग्मय में प्रयागराज का वर्णन मिलता है। महाभारत में इस स्थान की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि,
“सर्वतीर्थेभ्यः प्रभवत्यधिकं विभो।
श्रवनात तस्य तीर्थस्य नामसंकीर्तनादपि मृत्तिकालम्भनाद्वापी नरः पापत प्रमुच्यते।।”
अर्थात सभी तीर्थों में इसका प्रभाव सबसे अधिक है। इसका नाम सुनने अथवा बोलने से या फिर इसकी मिट्टी को अपने शरीर पर धारण करने मात्र से ही मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
तो यह स्थान जो कि प्रयागराज के नाम से जाना जाता था, इलाहाबाद कैसे बन गया?
देखा जाय तो प्रयाग नाम में यहाँ प्रथम यज्ञ करके इसकी रचना का श्रेय ब्रह्मा को दिया गया है जबकि इलाहाबाद नाम से अल्लाह को इसकी रचना का श्रेय दिया गया है। और यह तो हर पंथ में कहा गया है कि ईश्वर एक ही है लेकिन उसके नाम अनेक हैं। इससे इतना तो स्पष्ट ही है कि दोनों ही नाम इस स्थान की दिव्यता को और इसकी रचना में उस परम शक्ति के योगदान को अपने अपने रूप में स्वीकार कर रहे हैं केवल शब्दों का फर्क है, भाव एक ही है। अगर यह कहा जाय कि अकबर ने इस स्थान के नाम में उसके भाव को बरकरार रखते हुए केवल भाषा का परिवर्तन किया था, तो भी गलत नहीं होगा।
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डाँ नीलम महेंद्र
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
समाज में घटित होने वाली घटनाएँ मुझे लिखने के लिए प्रेरित करती हैं।भारतीय समाज में उसकी संस्कृति के प्रति खोते आकर्षण को पुनः स्थापित करने में अपना योगदान देना चाहती हूँ। हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं यह देश हमारा है हम ही इसके भी निर्माता हैं क्यों इंतजार करें किसी और के आने का देश बदलना है तो पहला कदम हमीं को उठाना है समाज में एक सकारात्मकता लाने का उद्देश्य लेखन की प्रेरणा है।
राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय समाचार पत्रों तथा औनलाइन पोर्टल पर लेखों का प्रकाशन फेसबुक पर ” यूँ ही दिल से ” नामक पेज व इसी नाम का ब्लॉग, जागरण ब्लॉग द्वारा दो बार बेस्ट ब्लॉगर का अवार्ड
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