अच्छे दिन आ गए ?

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– अब्दुल रशीद –

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सत्ता सम्भाले हुए चार साल पूरे हो गए। बड़े-बड़े वादों और उम्मीदों के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार “सबका साथ सबका विकास” कहती तो दिखी लेकिन जमीनी स्तर पर वैसी कामयाबी नहीं मिली जैसी आम जनता उम्मीद कर रही थी।

एक कड़वा सच यह भी मौजूदा सरकार ने काम से ज्यादा काम के प्रचार पर ज्यादा ध्यान दिया और इस तरह विज्ञापन पर ख़र्च के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। यह बात हैरान करती है के मई 2014 में सत्ता में आने के बाद से दिसंबर 2017 के बीच मोदी सरकार ने प्रचार पर पौने चार हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च किए हैं जो सफल मिशन ‘मंगलयान’ के कुल ख़र्च से सात गुना अधिक है।

2019 के चुनाव को जीतने के लिए यह प्रचार और बढ़ेगा क्योंकि वायदों का जो पहाड़ 2014 में खड़ा किया गया वह पथरीला ही रह गया आंशिक रूप से ही हरा भरा हो सका। ऐसे में जनता का वह पैसा जो विकास और बुनियादी सुविधाओं के लिए  खर्च होने चाहिए,वोट और सत्ता की राजनीति के नाम पर खर्च होगा।

ऐसा नही के सिर्फ मोदी सरकार ने प्रचार पर जनता के पैसे पानी की तरह बहाए हैं।2013-2014 में यूपीए सरकार ने एक हजार करोड़ रुपए प्रचार पर खर्च किए थे,अब मोदी सरकार डेढ़ करोड़ तक पहुंचाने में लगी है। अरविंद केजरीवाल ने भी यही रास्ता अपनाया और प्रचार पर पिछली कांग्रेस सरकार से चार गुना ज्यादा पैसे लुटा दिए।

बुनियादी सुविधाओं और विकास कार्यो के लिए जनता कर देती है,और उम्मीद करती है की सरकारें उनके बेहतरी के लिए इन पैसों का उपयोग करेगी। यह भी बेहद दिलचस्प है के, सरकारें बुनियादी सुविधाओं और विकास कार्य की जगह जनता को भरमाने के लिए जनता का पैसा जनता पर ही खर्च करती है,और खुद को (नेता) जनता की नजर में पाकसाफ छवि गढ़ वोट का जुगाड़ कर सत्ता पर काबिज़ होने के लिए अनैतिक खेल खेलती है,और जनता को नैतिकता का पाठ पढ़ाती रहती है।

देश मे ऐसे खर्च पर अंकुश लगाने के लिए संसद की लोक लेखा समिति है। लेकिन सवाल तो यही है के,संसद और उसके विभाग निष्पक्ष, राजनैतिक प्रभाव से मुक्त हो कर कार्य करती हैं?यदि करती होती तो क्या इस तरह का खर्चो पे जनता के पैसे लुटाए जाते? शायद नही।

अपने चार साल का रिपोर्ट कार्ड पेश करने के लिए मोदी सरकार ने फिर से विज्ञापनों और लोकलुभावन नारों को ही माध्यम बनाया है। जैसे ‘युवा ऊर्जा से बदलता देश’, ‘युवाओं को आगे बढ़ने के मज़बूत अवसर’, ‘भारत बना विकास का वैश्विक केंद्र’ और ‘पूरे विश्व ने योग को उत्साह के साथ अपनाया’।अब आप विज्ञापन में लिखे इन नारों को नए तरीके से समझते रहिए।

दावा और दावों की हक़ीकत।

रोजगार – पांच साल में करोड़ों के हिसाब से रोजगार देने का वायदा था,सरकार अब रोज़गार के आंकड़ों को गोल कर रही है और ‘विकास के मजबूत अवसर’ जैसे मुहावरों से काम चला रही है।पब्लिक, प्राइवेट और पर्सनल सेक्टर में विभिन्न तरीक़ों से युवाओं को आगे बढ़ने के मज़बूत अवसर है। तो क्या सरकार यह कहना चाह रही है के अवसर तो मज़बूत हैं, काबलियत की कमी शायद युवाओं में है।

जबकी सरकार के अपने ही श्रम मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि रोजगार के हालात बेहद खराब हैं।

नमामि गंगे – इस परियोजना बड़े शोर शराबे , विशाल बजट और नौकरशाहों की फौज के साथ शुरू की गई। अब तक कोई परिणाम सामने नहीं आया।

स्किल इंडिया – मिशन कामयाब हुआ नहीं,तो मंत्री बदले दिए गए, और बाद में मंत्रालय का दर्जा ही कम कर दिया गया।

आदर्श ग्राम योजना – सांसदों की उदासीनता और उपेक्षा का शिकार रहा,न नौ मन तेल हुआ न गांव का विकास हुआ।

मुद्रा योजना – माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी बैंक (मुद्रा) – बड़े दावे, लेकिन आंकडो में झोल, एनपीएन बढ़ने का खतरा।

स्वच्छता – मोदी सरकार को इस बात की ज़रूर प्रसंशा कि जानी चाहिए कि उसने स्वच्छता को राष्ट्रीय एजेंडा बना दिया, रात-दिन के प्रचार से लोगों के रवैए में ज़रूर बदलाव आया है और लोग स्वक्षता के प्रति जागरूक भी हुए हैं। हां,आंकड़ो और जमीनी हकीकत में अंतरविरोध है।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना – उज्ज्वला योजना सरकार की कामयाब योजना है जिसके तहत सरकार ने करीब पौने चार करोड़ गरीब महिलाओं को गैस का कनेक्शन दिया है और अब इसका लक्ष्य बढ़ाकर आठ करोड़ कर दिया गया है जो क़ाबिले तक़रीफ है।लेकिन कड़वा सच यह भी है के, कुछ राज्यों में इस योजना ने काम किया। लेकिन दूसरे सिलेंडर नहीं लिये जा रहे।

ग्रामीण विद्युतीकरण – दावे भरपूर लेकिन आंकडो में गड़बड़ झाला है।देश की ऊर्जा राजधानी कहलाने वाले सिंगरौली के सभी गांव में अब तक बिजली पहुंचा ही नहीं।

मंहगाई- मंहगाई को लेकर मनमोहन सरकार को कोसने वाले आज मौन है। मतलब साफ है,या तब आपका आरोप बेबुनियाद था,या अब आप जनता को जुमलों की चाशनी चटा के ठग रहें है?

नोटबन्दी- इस रहस्य का जवाब भी जनता को नहीं मिला के नोटबंदी से क्या फायदा हुआ?और नोटबन्दी के दौरान जन धन खातों में जमा हुई अकूत राशि।

2जी घोटाला – 2 जी घोटाला जब इतना बड़ा था,तो 2जी घोटालों के सभी आरोपियों को बरी कैसे कर दिया गया।

कालाधन – विदेश से आने वाले कालेधन और पन्द्रह लाख सभी के खाते में आएगा इस बात को तो स्वंय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने एक टीवी के दिए इंटरव्यू में जुमला करार दे दिया है,लेकिन अहमदाबाद के महेश शाह ने 13,000 करोड़ से अधिक का काला धन घोषित किया था,उसके बाद क्या हुआ।

जो कहा सो पूरा किया जैसे दावा पेश करने के बजाय सरकार चार साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद फिर से दिव्यस्वप्न दिखा रही है हम ऐसा कर देंगे, हम वैसा कर देंगे,जनाब जनता जानना चाहती है, जो वायदे आपने 2014 में किए उन वायदों का क्या करें? पिछला वायदा पूरा हुआ नहीं,नए वायदों का मतलब क्या समझे?

बेलाग लपेट- अच्छे दिन आने वाले हैं जैसे लोकलुभावन नारे के सहारे सत्ता में आई सरकार क्या यह दावा भरी जनसभा में कर सकती है के लीजिए अच्छे दिन आ गए।इस सवाल का उत्तर ही सरकार के चार साल की सफलता और असफलता का मूल्यांकन है।

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परिचय -:

अब्दुल रशीद

लेखक  व्  स्वतंत्र पत्रकार

सम्पर्क -:
बाईल नंबर – 9926608025 , ईमेल – : rashidrmhc@gmail.com

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.




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