भारत में लगभग 8-10% गर्भवती महिलाएं प्रीक्लेम्प्शिया से पीड़ित

गर्भावस्था के दौरान होने वाली मां को उच्च रक्तचाप से संबंधित विकारों का सामना करना पड़ता है


पुणे की 13 में से एक 1 महिला उच्‍च रक्‍तचाप से ग्रस्‍त है


भारत में लगभग 8-10% गर्भवती महिलाएं प्रीक्लेम्प्शिया से पीड़ित हैं, यह गर्भावस्था से संबंधित अतिसंवेदनशील विकार है, जो मातृ और प्रसवपूर्व मौतों और बीमारियों के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है।


सरकारी रिपोर्टों के मुताबिक, गुड़गांव की 15 से 49 साल के आयु वर्ग की 8% से अधिक महिलाएं उच्‍च रक्‍तचाप से गस्‍त हैं, जिससे उन्हें प्रीक्लेम्प्शिया होने की संभावना रहती है।


प्रिक्लेम्प्शिया, और इसका उन्नत रूप एक्लेम्पिया है, मधुमेह और अन्य बीमारियों का कारक बन सकता है।


डॉक्टर सलाह देते हैं कि महिलाओं को इस दौरान सक्रिय जीवनशैली मे अपनाने, कैलोरी पर ध्‍यान देने, नमक का सेवन सीमित करने की आवश्यकता है, और उम्मीद है कि माताओं को नियमित रूप से प्रसवपूर्व देखभाल करना चाहिए।


आई एन वी सी न्यूज़
पुणे,

गर्भावस्था का समय महिलाओं के लिए जटिलताओं से भरा है और सार्वजनिक जीवन में गर्भावस्था से संबंधित महत्वपूर्ण पहलुओं पर हमेशा से पर्याप्त जागरूकता का अभाव है। भारत में प्रीक्‍लेम्प्शिया से 8 से 10% गर्भवती महिलाएं पीडि़त हैं, गर्भावस्था से संबंधित एक अतिसंवेदनशील विकार (एचडीपी), उच्च रक्तचाप माताओं की भविष्‍य की अपेक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है।

सरकारी रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि पुणे की 15 से 49 वर्ष के आयु वर्ग की 8% से अधिक महिलाएं उच्‍चरक्‍तचाप से ग्रस्‍त हैं, जिसका यह मतलब है कि शहर में 13 महिलाओं में से 1 महिला उच्च रक्तचाप से पीड़ित है।

गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप के खतरे के बारे में बताते हुए, डॉ. मुक्ता पॉल, सलाहकार,

प्रसूति- गाईनेकोलॉजी, कोलंबिया एशिया अस्पताल, पुणे कहते हैं, “गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप महिलाओं को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, भले ही रोगी गर्भावस्था के दौरान या फिर पहले से ही वह उच्च रक्तचाप से पीड़ित हो। गर्भावस्था से संबंधित कुछ सामान्य उच्‍च रक्‍तचाप विकारों में गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप होना, प्रीक्लेम्प्शिया और एक्लेम्पिया शामिल हैं, जो मां और बच्चे के जीवन को खतरे में डालकर खतरनाक परिणाम सामने ला सकते हैं। इसके अलावा, जीवित माताओं में मधुमेह के विकास का बहुत अधिक जोखिम रहता है।“

आमतौर पर गर्भावस्था के लगभग 20 सप्ताह बहुत संवेदनशील होते हैं, ऐसे में यह विकार बिना किसी लक्षण के विकसित हो सकता है। हालांकि, बढ़ता रक्तचाप कुछ गंभीर संकेत देता है जैसे कि सिर में तेज दर्द, देखने में समस्‍या, मतली और उल्टी, लीवर या गुर्दे से संबंधित समस्याएं, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें मूत्र में प्रोटीन का स्‍तर बढ़ जाता है।

होने वाली मांओं की उम्‍मीदों के लिए यह विकार अधिक जटिलता उत्‍पन्‍न कर सकता है। “यह विकार धमनी को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है जो प्लेसेंटा को रक्त प्रदान करता है। यह भ्रूण के विकास को रोक सकता है। यह विकार भी बच्‍चे के समय-पूर्व जन्म का कारण बन सकता है, दूसरे गंभीर विकार हेल्‍प सिंड्रोम का कारण बन सकता है, अंगों को क्षतिग्रस्त या स्ट्रोक का कारण बन सकता है, और हृदय संबंधी बीमारियों का कारण बन सकता है। यह भूलना नहीं है कि यह एक्लेम्पिया की ओर ले जाता है, जो तब होता है जब प्रिक्लेम्पसिया समय पर नियंत्रित नहीं होता है। दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि प्रिक्लेम्प्सिया को रोकने के लिए कोई ज्ञात रणनीति नहीं है। विकार के कारण होने वाले संभावित नुकसान की सीमा के साथ, सबसे महत्वपूर्ण निवारक उपाय गर्भावस्था से पहले और आसपास महिलाओं में उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करना है।” डॉ. मुक्ता ने कहा।

उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए किये जाने वाले सर्वोत्तम उपायों में सक्रिय जीवनशैली अपनाना और नमक का सेवन कम करना है। जो खाना हम खाते हैं, खासतौर पर ताजे फल और सब्जियों में पर्याप्त प्राकृतिक नमक होता है जिसे हमारे शरीर की जरूरत पूरी होती है। इस स्थिति में कैलोरी सेवन को ध्‍यान में रखने की भी जरूरत होती है। होने वाली मांओं को नियमित रूप से उच्च रक्तचाप की जांच कराने की आवश्यकता है और उनको अच्छी तरह से आराम भी करना चाहिए।



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