– निर्मल रानी –
अनेकता में एकता जैसी विशेषता के लिए जो भारतवर्ष पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता था वही भारतवर्ष इन दिनों सांप्रदायिकतावादी,जातिवादी तथा क्षेत्रवाद जैसी विडंबनाओं का शिकार हो रहा है। जिस देश के अधिकांश लोग धर्मनिरपेक्ष तथा उदारवादी माने जाते रहे हों उसी स्वर्गरूपी देश में इन दिनों नफरत,वैमनस्य तथा हिंसा का ज़हर घुलता जा रहा है। इसके लिए तरह-तरह के बहाने तलाश किए जा रहे हैं। वर्ग विशेष के लोग अपने ही समाज के किसी दूसरे वर्ग के लोगों पर निशाना साधने के कोई न कोई बहाने तलाश कर रहे हैं। ऐसे वातावरण में उन लोगों की भी चांदी हो गई है जो वर्तमान तनावपूर्ण संदर्भों में कोई न कोई विवादित बयान देकर सुिर्खयों में अपनी जगह बनाना चाहते हैं। हालांकि नकारात्मक एवं विवादित बयान देकर अथवा इस प्रकार का ट्वीट कर सुिर्खयां बटोरने की चाह तो कमोबेश हर किसी शख्स में होती है। परंतु ऐसे लोगों की ‘हौसला अफज़ाईर्’ करने में हमारे देश के टेलीविज़न चैनल भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
लाऊडस्पीकर अथवा ध्वनि विस्तारक यंत्र का हमारे देश में अनियंत्रित प्रयोग भी एक ऐसा ही विषय है जिसे लेकर हमारे देश का प्रत्येक समझदार नागरिक परेशान है। बावजूद इसके कि भारतवर्ष के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा ध्वनि को नियंत्रित करने हेतु बाकायदा नियम-कानून बनाए गए हैं। कहां कितना ध्वनि प्रदूषण फैल सकता है या फैलाया जा सकता है इसके लिए चार अलग-अलग परिक्षेत्र (ज़ोन ) बनाए गए हैं। और इन विभिन्न परिक्षेत्र (ज़ोन )में ध्वनि प्रदूषण के विभिन्न स्तर निर्धारित किए गए हैं। मिसाल के तौर पर औद्योगिक क्षेत्र में दिन के समय 75 डेसी बल (डीबी)स्तर का प्रदूषण यदि दिन में रह सकता है तो इसी क्षेत्र में रात के समय 70 डीबी तक के शोर की सीमा निर्धारित है। इसी प्रकार कामर्शियल क्षेत्र में दिन में 65 तो रात के समय 55 डीबी निर्धारित है। रिहायशी इलाके में दिन में 55 डीबी तो रात में 45 डीबी की सीमा निर्धारित है। बोर्ड द्वारा साइलेंस ज़ोन भी निर्धारित किए गए हैं। इस के अंतर्गत् अस्पताल,शिक्षण संस्थान,अदालतें,धर्मस्थान तथा दूसरे वह क्षेत्र आते हैं जो प्रशासन द्वारा आवश्यकतानुसार साईलेंस ज़ोन घोषित किए जाते हैं। इन क्षेत्रों के सौ मीटर की परिधि के बाहर दिन में 50 तथा रात में 40 डीबी तक का प्रदूषण फैलाने की सीमा निर्धारित की गई है। परंतु हमारे देश का आम नागरिक इन नियमों की जानकारी नहीं रखता और ज़ािहर है जब उसे इन नियमों की जानकारी ही नहीं तो इनके पालन करने का सवाल ही कहां पैदा होता है?
हमारे देश में प्रदूषण फैलने के अनेक महत्वपूर्ण कारण हैं। उद्योग,यातायात के अलावा इस विशाल देश में जहां अनेक धर्मों व समुदायों के लोग रहते हों कभी न कभी किसी न किसी समुदाय से जुड़ा कोई न कोई त्यौहार या शादी-विवाह अथवा कोई और खुशी का अवसर आता ही रहता है। ऐसे सभी अवसरों पर आतिशबाज़ी चलाना एक फैशन सा बन गया है। दीवाली,दशहरा तथा शब-ए-बारात जैसे त्यौहारों में तो आतिशबाज़ी ही इन त्यौहारों का मुख्य आकर्षण रहती है। नववर्ष के अवसर पर भी पूरे विश्व के साथ-साथ भारत में भी 31 दिसंबर की रात आतिशबाजि़यों के साथ जश्र मनाया जाता है। परंतु कभी ऐसे ध्वनि एवं वायु प्रदूषण पर चिंता जताते किसी भी बुद्धिजीवी,अभिनेता या राजनेता को नहीं देखा गया है। केवल औपचारिकता के तौर पर दीपावली के अवसर पर लोगों को जागरूक करने की कोशिश मात्र की जाती है कि वे प्रदूषण से बचें और पटाख़ों का इस्तेमाल न करें। परंतु दशकों से होती आ रही इस अपील के बावजूद बाज़ार में पटाखों की बिक्री घटने के बजाए और बढ़ती जा रही है।
परंतु इन सबसे अलग शोर-शराबे के लिए सबसे अधिक जि़म्मेदार हमारे देश में लाखों की तादाद में लगभग पूरे भारतवर्ष में फैले धर्मस्थल माने जाते हैं। इनमें मंदिरों में चलने वाले दोनों समय के भजन व आरती,मस्जिदों में होने वाली पांच वक्त की अज़ान तथा गुरुद्वारों में पढ़े जाने वाले शब्द कीर्तन खासतौर पर शामिल हैं। भारतीय चर्च प्रदूषण फैलाने की श्रेणी में इसलिए नहीं आते क्योंकि उनके धर्म में लाऊडस्पीकर प्रयोग करने की व्यवस्था का प्रचलन भी नहीं है और इबादत करने की उनकी कोई समय सारिणी भी निर्धारित नहीं है। परंतु अन्य धर्मों में पूजा-पाठ,नमाज़ आदि के लिए समय का निर्धारण किया गया है। संभव है कुछ अदूरदर्शी,अंधविश्वासी,धार्मिक कट्टर सोच रखने वाले लोग या ध्वनिप्रदूषण फैलने से लाभान्वित होने वाले चंद लोग शारे-शराबे की इस व्यवस्था का पक्ष लेते हों परंतु हकीकत तो यही है कि यदि किसी मंदिर में अत्यधिक शोर-शराबा होता है तो उस मंदिर के पड़ोस में रहने वाला हिंदू ही उस शोर-शराबे से सबसे ज़्यादा दु:खी है। इसी प्रकार मस्जिद में पांचों वक्त बुलंद की जाने वाली अल्लाह-ो-अकबर की आवाज़ एक मुसलमान को भी उतना ही विचलित करती है जितना कि किसी गैर मुस्लिम को। ऐसे भी कई प्रमाण हैं कि किसी सिख समुदाय के व्यक्ति ने ही गुरुद्वारे में दोनों समय काफी लंबे समय तक पढ़ी जाने वाली गुरुवाणी अथवा शब्द में लाऊडस्पीकर के प्रयोग को लेकर आपत्ति खड़ी की हो या प्रशासन में इसकी शिकायत दर्ज की हो।
लेकिन देश के वर्तमान सांप्रदायिकतापूर्ण वातावरण में ध्वनि प्रदूषण को भी हिंदू-मुसलमान प्रदूषण के रूप में देखा जाने लगा है। यदि किसी हिंदू को अज़ान की आवाज़ बुरी लगती है तो मुसलमान मंदिर में बजने वाले लाऊडस्पीकर की आड़ में मस्जिद की अज़ान की आवाज़ का बचाव करने लग जाता है। देश की कई अदालतें यहां तक कि कई राज्यों के उच्च न्यायालय भी इस प्रकार के अवांछित शोर-शराबे के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश दे चुके हैं। परंतु प्रशासन अदालत के इन आदेशों की पालना करवा पाने में असमर्थ है। वैसे भी जब मामला धर्मस्थलों या किसी धार्मिक कार्यक्रम में ध्वनि प्रदूषण फैलाने का हो तो प्रशासन के लोग भी अदालती निर्देशों की अनदेखी कर जाते हैं। पिछले दिनों गायक सोनू निगम की आज़ान के शोर के संबंध में किया गया ट्विट उन्हें चंद घंटों में ही विवादित शोहरत की उन बुलंदियों पर ले गया जहां वे कोई अच्छे से अच्छा गीत गाकर भी इतनी जल्दी नहीं पहुंच सकते थे। परंतु उन्होंने मस्जिद की अज़ान को खासतौर पर निशाना बनाया और अपने अंतिम ट्वीट में इसे धर्मस्थलों की गुंडागर्दी की संज्ञा दी,उनका यह अंदाज़ और शब्दों का चयन ठीक नहीं था। परंतु वास्तव में यदि उनकी चिंताएं अवांछित शोर-शराबे के संदर्भ में थीं तो यह शत-प्रतिशत वाजिब थीं।
धर्मस्थलों पर नियमित रूप से निर्धारित समय-सारिणी के अनुसार होने वाले इस शोर-शराबे से लगभग पूरा देश दु:खी है। ध्वनि प्रदूषण बच्चों की पढ़ाई खासतौर पर परीक्षा के दिनों में उनकी परीक्षा की तैयारी में अत्यंत बाधक साबित होता है। मरीज़ों तथा वृद्ध लोगों के लिए ध्वनि प्रदूषण किसी मुसीबत से कम नहीं। आए दिन होने वाले जगराते,कव्वालियां या दूसरे शोर-शराबे से परिपूर्ण धार्मिक आयोजन यह सब हमारे समाज के स्वास्थय पर बुरा असर डालते हैं। इस संदर्भ में एक बात ज़रूर प्रशंसनीय है कि मेरी नज़र में ऐसे कई गुरुद्वारे आए हैं जहां पहले तेज़ आवाज़ में लाऊडस्पीकर पर शब्द व गुरुवाणी का पाठ हुआ करता था परंतु पड़ोसियों की आपत्ति के बाद आज उन्हीं गुरुद्वारों में स्पीकर प्रणाली लगा दी गई है जिससे कि शब्द कीर्तन की आवाज़ गुरुद्वारा परिसर के भीतर ही रहती है और इस व्यवस्था के बाद भी गुरुद्वारे में जाने वाले दर्शनार्थियों में कोई कमी नहीं आई है। लिहाज़ा ध्वनि प्रदूषण को धर्म के चश्मे से देखने के बजाए इससे होने वाले नुकसान पर चर्चा की जानी चाहिए। इसे नियंत्रित करने हेतु समान कानून बनाने व इसे समान रूप से लागू करने की भी आवश्यकता है।
_____________
निर्मल रानी
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
संपर्क -:
Nirmal Rani :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana) Pin. 134003 , Email :nirmalrani@gmail.com – phone : 09729229728
Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.