– निर्मल रानी –
दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध रामजस कॉलेज में पिछले दिनों आयोजित होने जा रहे एक सेमिनार का विरोध किया जाना तथा उसके बाद इसी को लेकर छिड़ी स्वतंत्रता की बहस का मुद्दा इन दिनों एक बार फिर चर्चा का विषय बन चुका है। वामपंथी विचारधारा रखने वाले तथा दक्षिणपंथी विचारधारा का विरोध करने वाले कुछ छात्र,बुद्धिजीवी व चिंतक रामजस कॉलेज में एक विचार गोष्ठी आयोजित करने वाले थे। इस गोष्ठी में जेएनयू के विवादित छात्र उमर खालिद भी शामिल था। दक्षिणपंथी विचारधारा के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से संबंधित छात्रों द्वारा इस सेमिनार का विरोध किया गया। यह विरोध हिंसा,धक्कामुक्की व पत्थरबाज़ी तक जा पहुंचा। सेमिनार का विरोध करने वाले दक्षिणपंथी छात्रों का कहना था कि दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालयों में जेएनयू जैसी विचारधारा को परवान नहीं चढ़ाया जा सकता। इस विवाद में कारगिल के शहीद कैप्टन मनदीप सिंह की बेटी गुरमेहर कौर भी कूद पड़ी। वह सेमिनार आयोजन कर्ताओं का पक्ष ले रही थी। इस सेमिनार का पक्ष लेने की सज़ा गुरमेहर कौर को यह भुगतनी पड़ी कि उसे तथा उसकी कई साथी छात्राओं को कथित रूप से बलात्कार की धमकियां दी गईं। उसकी कई साथी छात्राओं को मारा-पीटा गया। आिखरकार इन सब धमकियों से परेशान व भयभीत होकर गुरमेहर कौर ने तो स्वयं को एबीवीपी व दक्षिणपंथी विचारधारा के विरुद्ध भडक़े छात्र असंतोष में सक्रिय होने से पीछे हटा लिया। परंतु इस विषय पर एक बार फिर एक राष्ट्रव्यापी बहस ने जन्म ले लिया है कि आिखर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता क्या है? इसे निर्धारित करने का अधिकार किसको है? इसकी सीमाएं होनी चाहिएं या नहीं? और यदि होनी चाहिएं तो वो सीमाएं क्या हों,कैसी हों और उसे निर्धारित कौन करे और कैसे किया जाए?
इस समय देश में गत् लगभग तीन वर्षों से यह एक नया चलन देखा जा रहा है कि यदि आप केंद्रीय सत्ता अथवा उनके फैसलों से सहमत नहीं हैं तो आपको राष्ट्रविरोधी और ज़रूरत पड़ी तो राष्ट्रद्रोही तक ठहराया जा सकता है। ऐसे विचार रखने वाले लोगों को भारत छोडऩे व पाकिस्तान में जा बसने की सलाह दी जा सकती है। यदि आपने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध टालने,दोनों देशों के मध्य मधुर संबंध बनाने अथवा सीमा पर शांति व सद्भाव जैसे प्रयासों की वकालत की तो आपको राष्ट्रविरोधी अथवा छद्म धर्मनिरपेक्ष या छद्म उदारवादी जैसे तमगे दिए जा सकते हैं। मात्र तीस प्रतिशत वोट 2014 में हासिल करने वाली सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी व उसके समर्थक देश के शेष 70 प्रतिशत उन मतदाताओं की अनदेखी कर रहे हैं जो दक्षिणपंथी विचारधारा से सहमत नहीं हैं। परंतु यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नवाज़ शरीफ को अपने शपथग्रहण समारोह में बुलाकर उनसे शाल व साड़ी का आदान-प्रदान करें तो इसी दक्षिणपंथी ब्रिगेड को कोई आपत्ति नहीं। यदि प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की नातिन की शादी में अचानक पाकिस्तान उनके घर पहुंचकर दावत का लुत्फ उठाएं तो दक्षिणपंथियों को कोई आपत्ति नहीं परंतु यदि गुरुमेहर कौर यह कह दे कि उसके पिता को पाकिस्तान ने नहीं बल्कि युद्ध ने मारा है तो यह बात इन्हीं लोगों को आपत्तिजनक लगने लगेगी?
महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय निश्चित रूप से ऐसे शिक्षण संस्थान होते हैं जहां तरह-तरह की विचारधाराएं,सोच-िफक्र तथा प्रतिभाएं पनपती हैं तथा यहां इन्हें आपस में वाद-विवाद करने व किसी निष्कर्ष पर पहुंचने का एक बेहतर मंच प्राप्त होता है। ज़ाहिर है प्रत्येक छात्र वैचारिक रूप से अपनी अलग सोच व पहुंच रखता है। ऐसे में किसी विचारधारा का हिंसा के स्तर तक जाकर विरोध करना या किसी को अपनी विचारधारा मनवाने के लिए बाध्य करना क्या यही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है? इसका अर्थ तो यह हुआ कि आप दूसरे की बात तो सुनना नहीं चाहते परंतु अपनी बात दूसरों पर थोपना ज़रूर चाहते हैं। बड़े आश्चर्य की बात है कि जो दक्षिणपंथी विचारधारा आज भी देश के संवैधानिक रूप से स्वीकार्य राष्ट्रीय ध्वज के रंग व इसके स्वरूप को पूरी तरह से पचा नहीं पा रही है तथा इसके समानांतर अपना अलग भगवा धर्मध्वज भी समय-समय पर लहराती रहती है वह विचारधारा आज देश के उन सभी भारतीयों को राष्ट्रवाद व राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ा रही है जो राष्ट्रीय ध्वज के अतिरिक्त किसी दूसरे ध्वज के आगे झुकना भी नहीं जानते? गुुरुमेहर कौर के पिता ने देश के लिए अपनी जान न्यौछावर की। आिखर उसकी बेटी से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह राष्ट्रविरोधी ताकतों के साथ खड़ी होगी? परंतु शहीद की इस बेटी का भी बड़े ही निम्म स्तर तक जाकर विरोध किया जा रहा है। क्रिकेट खिलाड़ी, िफल्म अभिनेता तथा दूसरे शहीदों के बेटों व बेटियों को गुरुमेहर कौर की बातों का जवाब देने के लिए सामने लाया जा रहा है। हद तो यह है कि केंद्र सरकार के कई जि़म्मेदार मंत्री भी इस विवाद में कूद पड़े हें तथा अपनी समझ व ज्ञान के अनुरूप तथा अपनी दलीय वैचारिक प्रतिबद्धताओं के अंतर्गत् कुछ न कुछ बयान दे रहे हैं। ऐसे ही लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाएं निर्धारित किए जाने के पक्षधर हैं।
अब ज़रा रामजस कॉलेज के इस ताज़ातरीन विवाद से अलग हटकर इन्हीं दक्षिणपंथी नेताओं के कुछ ‘सद्वचनों’ पर नज़र डालें और यह तय करें कि क्या इन बातों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आना चाहिए? मिसाल के तौर पर पिछले दिनों भाजपा सांसद विनय कटियार ने अयोध्या विवाद पर अपनी टिप्पणी करते हुए कहा कि-राममंदिर बनाना मेरी ‘महाजिद’ है। जब मामला अदालत के विचाराधीन हो तो बहुसंख्य मतों पर निशाना साधकर ऐसी बातें करना क्या स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति है? प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश की एक रैली में क़ब्रिस्तान व शमशान घाट दोनों बनाए जाने की बात कही थी। हालांकि यह विषय ऐसा नहीं था जिसे प्रधानमंत्री स्तर का नेता उठाता। न ही इस विषय को लेकर वहां की जनता में किसी प्रकार का आक्रोश अथवा उसकी मांग थी। परंतु प्रधानमंत्री ने अपने राजनैतिक लाभ के चलते इस मामले को जनसभा में उठाया। दूसरी ओर उन्हीं की पार्टी के उत्तर प्रदेश के ही सांसद साक्षी महाराज ने इससे भी दो कदम आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री के इस बयान पर अपनी असहमति जताई जिसमें उन्होंने शमशान व कब्रिस्तान दोनों ही बनाने की बात कही थी। साक्षी महाराज ने इस विषय पर अपनी ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का प्रयोग इन शब्दों में किया। उन्होंने कहा-‘देश में कब्रिस्तान की कोई ज़रूरत नहीं है सभी को अंतिम संस्कार के तौर पर जलाना ही चाहिए। कब्रिस्तान से जगह की बरबादी होती है’। इस प्रकार की और तमाम बातें दक्षिणपंथी विचारधारा के नेता अक्सर बोलते सुनाई देते हैं। कभी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भाजपाई नेता तो कभी साध्वी प्राची,साक्षी महाराज व आदित्यनाथ योगी जैसे लोग समुदाय विशेष के विरुद्ध तरह-तरह की आपत्तिजनक टिप्पणियां देकर समाज को विभाजित करने तथा इस विभाजन का राजनैतिक लाभ उठाने की िफराक़ में रहते हैं। क्या इन बातों को हम यह सोचकर स्वीकार कर लें कि यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है? और महाविद्यालय व विश्वविद्यालय के प्रतिभावान राष्ट्रभक्त छात्रों व छात्राओं के विचारों का सिर्फ इसलिए गला घोंटा जाए कि वे दक्षिणपंथी विचारधारा से असहमति दर्ज कराते हुए उसका विरोध करते हैं तथा अपनी राष्ट्रवादिता को अपने ही अंदाज़ से प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं?
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निर्मल रानी
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
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