– तनवीर जाफऱी –
देश के सात राज्य 2017 में विधानसभा चुनावों का सामना कर रहे हैं। इन चुनावों में प्रत्येक सत्तारूढ़ दल द्वारा जहां अपनी-अपनी उपलब्धियों का बढ़ा-चढ़ा कर बखान किया जा रहा है वहीं विपक्षी राजनैतिक दल सत्तासीन दलों के शासन की कमियां निकालने तथा भविष्य की अपनी योजना संबंधी घोषणाओं के द्वारा जनता को अपनी ओर लुभाने में लगे हुए हैं। इन चुनावों में जहां क्षेत्रीय विकास संबंधी अनेक मुद्दे उठाए जा रहे हैं वहीं गत् वर्ष 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश में घोषित की गई नोटबंदी भी एक अहम मुद्दा है। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि नोटबंदी जैसा मुद्दा जिसे प्रधानमंत्री ने ‘शुद्धियज्ञ’ का नाम दिया था इस मुद्दे को उठाने से भारतीय जनता पार्टी तो परहेज़ कर रही है जबकि अन्य राजनैतिक दल खासतौर पर भाजपा विरोधी पार्टियां नोटबंदी के मुद्दे को ही भाजपा के विरुद्ध सबसे मज़बूत शस्त्र के रूप में उठा रही हैं। हद तो यह है कि पंजाब जैसे राज्य में जहां भारतीय जनता पार्टी व अकाली दल गठबंधन की सरकार सत्ता में है तथा यही दोनों दल यहां मिलकर वर्तमान विधानसभा चुनाव भी पुन: लड़ रहे हैं यहां अकाली दल के उम्मीदवार यह कहकर नोटबंदी के मुद्दे से अपना पल्ला झाड़ रहे हैं कि यह भाजपा का फैसला था अकाली दल का नहीं। इतना ही नहीं बल्कि पंजाब के भाजपा के उम्मीदवार भी यह कहते सुने गए हंै कि इसके लिए वे स्वयं जि़म्मेदार नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जि़म्मेदार हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजि़मी है कि वास्तव में यदि नोटबंदी ‘शुद्धियज्ञ’ के समान पवित्र योजना थी तोचुनावों में इसका श्रेय लेने के बजाए इससे बचने व इसके लिए सीधे तौर पर प्रधानमंत्री या भाजपा को ही अकेले जि़म्मेदार ठहराने की कोशिश क्यों की जा रही है?
गत् एक फरवरी को देश के वित्त मंत्री अरूण जेटली द्वारा केंद्रीय बजट प्रस्तुत किया गया। इसके पूर्व सरकार ने एक आर्थिक सर्वेक्षण कराया। इस आर्थिक सर्वेक्षण से यह पता चला कि नोटबंदी के कारण देश की विकास दर में एक प्रतिशत से भी ज़्यादा की गिरावट आ चुकी है। विपक्षी दलों के आरोपों को तो दरकिनार कीजिए यदि स्वयं सरकार द्वारा कराए गए आर्थिक सर्वेक्षण से ही यह साबित हो जाए कि देश के विकास में गिरावट का कारण नोटबंदी थी तो सरकार के इस फैसले की नाकामी तथा इस निर्णय को गलत कहे जाने का इससे बड़ा प्रमाण आिखर और क्या हो सकता है? गौरतलब है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी ने नोटबंदी के फैसले को प्रधानमंत्री द्वारा ‘शुद्धियज्ञ’ बताए जाने के जवाब में इसकी तुलना जंगल में लगने वाली उस भयानक अनियंंत्रित आग से की थी जिसके परिणामस्वरूप 118 लोग अपनी जानें गंवा बैठे। देश के अनेक प्रमुख अर्थशास्त्री यह महसूस कर रहे हैं कि नोटबंदी के बाद पैदा हुए हालात से देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है। कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि भविष्य में इसके और भी अधिक दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं। भारतीय जनता पार्टी के वैचारिक एवं प्रमुख राजनैतिक सहयोगी शिवसेना द्वारा भी समय-समय पर नोटबंदी की खुलकर आलोचना की जाती रही है। लोकसभा में केंद्रीय बजट आने के बाद पुन: शिवसेना ने नोटबंदी का जि़क्र करते हुए मोदी सरकार पर इन शब्दों में हमला किया कि-‘भाजपा अच्छे दिन का सपना बेचकर सत्ता में आई थी परंतु इस सरकार द्वारा नए रोज़गार मुहैया कराना तो छोडि़ए, नोटबंदी के चलते देश में 44 लाख लोगों की नौकरियां भी चली गर्इं’। भाजपा की इस सहयोगी शिवसेना ने यह भी पूछा है कि लोकसभा चुनावों के दौरान ‘अच्छे दिन’ के प्रचार-प्रसार में भाजपा ने जो हज़ारों करोड़ रुपये खर्च हुए थे वे पैसे कहां से आए’?
ज़ाहिर है भारतीय जनता पार्टी नोटबंदी के दुष्परिणामों से इस समय बुरी तरह जूझ रही है। सत्ता के अहंकार में चूर होकर भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछली यूपीए सरकार के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डा० मनमोहन सिंह की यह कहकर खिल्ली क्यों न उड़ाई हो कि आपने अपनी शक्ति व सामथर््य के अनुसार चवन्नी का चलन बंद किया तो हमने कुछ नहीं कहा। तो हमने अपनी ताकत के मुताबिक एक हज़ार व पांच सौ की नोट बंद कर दी तो इसमें आपको क्यों तकलीफ हो रही है। प्रधानमंत्री की इस आशय की भाषा भाजपा भक्तों के बीच में ताली बजवाने के काम तो आ सकती है परंतु चुनाव में मतदाताओं के बीच इसी ‘डॉयलॉग‘ को अदा करने का साहस प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा के किसी बड़बोले नेता में आज नज़र नहीं आ रहा। आिखर क्यों? यदि नोटबंदी ने काला धन समाप्त किया है, देश के आर्थिक लुटेरों पर प्रहार किया है,इससे आतंकवाद तथा नकली नोटों का चलन बंद अथवा कम हुआ है, देश की गरीब जनता ने इस फैसले से राहत की संास ली है तो निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी की उपलिब्ध्यों का बखान करने वाला यह पहला मुद्दा होना चाहिए था जिसकी चर्चा 2017 के सभी सात राज्यों के विधानसभा चुनावों में की जाती। परंतु चर्चा तो दूर पंजाब में तो अकाली दल के अनेक उम्मीदवार भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारकों तक को अपनी चुनावी रैलियों से दूर रख रहे हैं तथा उनकी शिरकत के लिए साफतौर पर उन्हें मना कर रहे हैं।
ऐसे में अब भाजपा के पास अपने विपक्षी दलों की आलोचना करने के लिए जब कोई मुद्दा नहीं बचा तो वह कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश में हुए चुनाव पूर्व गठबंधन पर उंगली उठा रही है। इस गठबंधन को अनैतिक,अवसरवादी तथा कांग्रेस की सत्ता के लिए छटपटाहट बता रही है। स्वयं प्रधानमंत्री भी इस समय विभिन्न चुनाव रैलियों में अपनी उपलब्धियां गिनाने से अधिक कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधते देखे जा रहे हैं। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस पार्टी ही अकेली ऐसी पार्टी है जिसने सत्ता के लिए गठबंधन करने का उत्तरप्रदेश में फैसला किया हो? क्या भारतीय जनता पार्टी इस प्रकार के क्षेत्रीय दलों के गठबंधन से परहेज़ करती रही है? पंजाब में अकाली दल, महाराष्ट्र में शिवसेना केंद्र में ममता बैनर्जी,रामविलास पासवान की लोकजन शक्ति पार्टी व राष्ट्रीय लोकदल,झारखंड में मधु कौड़ा जैसे भ्रष्ट नेता व शिब्बु सौरेन की जेएमएम,बिहार में जेडीयू ,तेलंगाना में टीआरएस,असम में एजीपी,आंध्रप्रदेश में टीडीपी जैसी कई अन्य क्षेत्रीय पार्टियों से राजनैतिक गठजोड़ करने वाली भाजपा यदि कांग्रेस-सपा गठबंधन को अनैतिक या अवसरवादी बताए तो यह बड़े आश्चर्य की बात है। इंतेहा तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने कश्मीर में पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती के साथ महज़ कश्मीर में सत्ता हासिल करने के लिए इतना अनैतिक गठबंधन किया जिसकी दूसरी मिसाल देश के किसी राज्य में नहीं मिल सकती।
कुल मिलाकर यह उम्मीद की जा रही थी कि भारतीय जनता पार्टी नोटबंदी को ‘काले धन पर सर्जिकल स्ट्राईक’ व ‘शुद्धियज्ञ’ आदि नए-नए विशेषणों से नवाज़ने की जो कोशिश कर रही थी कम से कम इतनी बड़ी योजना को 2017 के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं के बीच ज़रूर लेकर जाएगी। परंतु भाजपा यह समझ चुकी है कि इस तथाकथित शुद्धियज्ञ के कारण देश के किसानों को बीस हज़ार रुपये से लेकर पचास हज़ार रुपये प्रति एकड़ तक का नुकसान झेलना पड़ा है देश में बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन ठप्प हुआ है तथा बेरोज़गारी बढ़ी है,सौ से अधिक देशवासी अकारण मौत के मुंह में समा चुके हैं, देश की विकास संबंधी तमाम योजनाएं इसके चलते ठप्प हो गई हैं, इसलिए बेहतर यही है कि अपने ‘शुद्धिकरण यज्ञ’ को अपने ही पास रखा जाए और जनता के सामने इस विषय की चर्चा ही न की जाए।
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Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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